छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

सुंदरी बाई का हुआ निधन, किसे मिलेगी रजवार भित्ति की विरासत ? - Chhattisgarh news

सोना बाई (Sona bai) और सुंदरी बाई (Sundari bai)... जिनके चर्चे ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी होते हैं. इनके हाथों के हुनर का लोहा विश्व मानता है. एक अमेरिकन ने सोना बाई पर किताब (Book) लिख दी. वहीं, सोना बाई द्वारा बनाये गये भित्तिचित्र (Graffiti) का म्यूजियम (Museum) अमेरिका (America) में बनाया गया. वहीं, सुंदरी बाई जो कभी स्कूल तक नहीं गई. वो अपने हुनर के दम पर भारत के बड़े-बड़े अन्य शहरों का भ्रमण कर चुकी हैं. साथ ही फ्रांस, पेरिस, जापान और इंग्लैंड जैसे देशों में जाकर अपनी कला का नमूना दिखा चुकी है.

sundari bai passed away
सुंदरी बाई का हुआ निधन

By

Published : Oct 7, 2021, 1:31 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुज़ा :सोना बाई (Sona bai) और सुंदरी बाई (Sundari bai)वो नाम जिसके चर्चे ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी होते हैं. इनके हाथों के हुनर का लोहा विश्व के अलग-अलग देश के लोगों ने माना है. एक अमेरिकन ने तो सोना बाई पर किताब (Book) तक लिख दी. सोना बाई द्वारा बनाये गये भित्तिचित्र (Graffiti)का म्यूजियम (Museum) अमेरिका (America) में बनाया गया.

रजवार भित्ति की विरासत

वहीं, सुंदरी बाई जिसने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है, वो अपने हुनर के दम परना सिर्फ भारत के बड़े-बड़े अन्य शहरों का भ्रमण कर चुकी है. बल्कि फ्रांस पेरिस जापान और इंग्लैंड जैसे देशों में जाकर अपनी कला का नमूना दिखा चुकी है. भित्ति चित्र बनाने में माहिर सुंदरी बाई ने इन देशों में जाकर भित्ति चित्र बनाई है. जिसके लिए वहां की सरकारों ने सुंदरी बाई को ना सिर्फ प्रोत्साहन राशि दी. बल्कि, उनके कामों को सराहते हुये, उन्हें अपने देशों के प्रतीक चिन्ह वाले उपहार से भी सम्मानित किया.

कई बार सम्मानित हो चुकीं है सुंदरी बाई

अपने देश मे भी सुंदरी बाई को कई बार समानित किया गया है. सोना बाई तो पहले ही दुनिया को अलविदा कह चुकी थी. अब जुलाई महीने में बीमारी की वजह से सुंदरी बाई का भी निधन हो चुका है. ऐसे में सरगुज़ा की इस अनमोल कला की विरासत किन हाथों में है. इस कला को जीवित रखने इसके उत्तराधिकारी कौन है. जानने के लिये ईटीवी भार दोनों के घर पहुंचा. पहले सोना बाई के घर पुहपुटरा पहुंच सोना बाई के बेटे दरोगा राम से ईटीवी संवाददाता मिले. बताया जा रहा है कि दरोगा राम, उनके बेटे, पत्नी समेत गांव के 4 अन्य लोग हैं. जो भित्ति चित्र बनाने का काम कर रहे हैं. वहीं, इनसे मिलने के बाद ईटीवी संवाददाता सुदंरी बाई के घर सिरकोतंगा पहुंचे, जहां सुंदरी बाई का पूरा परिवार सुंदरी बाई के बाद उनकी विरासत को आगे बढ़ाने तैयार है.

सरगुजा कलेक्ट्रेट के ठीक सामने खड़ा विशालकाय बरगद का पेड़ क्यों है खास ?

रजवार भित्ति या भित्ति चित्र की कला बेहद प्रसिद्ध

दरअसल, सरगुज़ा की रजवार भित्ति या भित्ति चित्र की कला बेहद प्रसिद्ध है. सोना बाई को सरगुज़ा में इसका जन्मदाता माना जाता है. लखनपुर विकासखंड के पुहपुटरा नामक एक छोटे से गांव में रहने वाली सोना बाई ने इसकी शुरुआत की थी. बचपन में मिट्टी के खेल खिलौने बनाते बनाते वो इतनी पारंगत हो गई. दीवारों पर आकर्षक डिजाइन उकेरने लगी. बड़ी बात यह है की भित्तिचित्र हस्तकला का एक नायाब उदाहरण है. क्योंकि इसके निर्माण में किसी भी तरह के सांचे या फ्रेम का इस्तेमाल नही किया जाता. ये सारे डिजाइन हाथ से ही बनाये जाते हैं. सोना बाई की इस कला के चाहने वाले बढ़ते गये और उन्होंने देश के कई बड़े शहरों में जाकर काम किया. कई राज्यों के शासकीय भवनों में राजभवन में सोना बाई ने भित्तिचित्र बनाया.

विदेशों तक है इन धरोहरों की पहचान

वहीं, अब उनके बच्चे, नाती-पोता भी इस विरासत को जिंदा रखे हुये हैं. आज भी इनके घर मे भित्तिचित्र बनाई जाती है. इस अद्भुत धरोहर के कारण सरगुज़ा की पहचान देश विदेश तक हुई. एक अमेरिकन ने सोना बाई की कला से प्रभावित होकर उनके जीवन पर किताब लिख दी. साथ ही कैलिफोर्निया में एक म्यूजियम बनाया गया है, जहां सोना बाई के भित्तिचित्र सुसज्जित हैं, मिट्टी गोबर चुना और रंगों का अद्भुत मिश्रण जब सुंदरी बाई के हाथों से गढ़ा जाता था, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं दिखता. अपने घर को भी उन्होंने अपनी कला से ऐसे ही सजा रखा है. बचपन में ही मिट्टी से खिलौने बनाने वाली सुंदरी बाई को नहीं पता था कि 1 दिन चित्र बनाने की कला उनकी पहचान बन जाएगी.

2003 में जब पहली बार इंग्लैंड गई सुंदरी बाई

ईटीवी भारत की टीम सुंदरी बाई के घर पहुंची, तो हालात वैसे ही आम थे. जैसे अमूमन ग्रामीणों के होते हैं. घर पर पूरा परिवार मौजूद था. थोड़ी-बहुत खेती करके इस परिवार का गुजारा चलता है. सुंदरी बाई की कला से जो आमदनी हो जाती थी. उसी से बेहतर जीवन यापन यह लोग कर पाते थे. सुंदरी बाई साल 2003 में जब पहली बार इंग्लैंड गई, तो इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर में अपनी कला का प्रदर्शन उन्हें करना था. साल 2010 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में भारतीय आदिवासी लोक कला की एक विशाल प्रदर्शनी आयोजित की गई. जिसमें सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित थी. वहां उन्होंने अपनी कला का जीवंत प्रदर्शन भी किया मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित राष्ट्रीय मानव संग्रहालय एवं जनजातीय संग्रहालय और दिल्ली स्थित संस्कृति संग्रहालय में सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं.

साल 1989-90 में सुंदरी बाई को शिखर सम्मान से नवाजा गया

साल 1989-90 मध्यप्रदेश शासन द्वारा सुंदरी बाई के अद्भुत शिल्प कौशल के लिए उन्हें शिखर सम्मान से नवाजा गया. यह सम्मान मध्यप्रदेश शासन द्वारा किसी लोग आदिवासी कलाकार को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. इसके बाद वर्ष 2010 में भारत सरकार और फिर केरल सरकार द्वारा सुंदरी बाई को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इसके साथ ही तत्कालीन रमन सरकार ने सुंदरी बाई के लिए ₹5000 प्रतिमा पेंशन देना शुरू किया था. सुंदरी बाई का मायका सरगुजा जिले के पुहपुटरा गांव में है. लगभग 65 साल की सुंदरी बाई की माता डोली बाई और उनके पिता सुखदेव रजवार गरीब किसान थे. 11 साल की आयु में सुंदरी बाई का विवाह ग्राम सिरकोतंगा के केंद्र राम रजवार से हो गया था. तब से सुंदरी बाई सिर पतंगा के इसी घर में अपने हाथों का जादू भित्ति चित्र के माध्यम से दिखा रही थी. धीरे-धीरे इनकी कला के चाहने वालों की संख्या में ऐसा इजाफा हुआ कि भित्ति कला की मांग ना सिर्फ देश भर से बल्कि विदेशों से भी आने लगी. लेकिन इस अनमोल कला का उचित मूल्य शायद सुंदरी बाई तक नहीं पहुंच पाया. तभी तो उनका परिवार आज भी टूटे-फूटे कच्चे के मकान में रहने को विवश है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details