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महिला दिवस विशेष : एक अकेली महिला ने 67 साल पहले छेड़ा था नशामुक्ति अभियान, मिला था पद्मश्री सम्मान

सरगुजा की राजमोहिनी देवी ने 67 साल पहले महिला सशक्तिकरण के लिए आवाज उठाई. जिसकी बदौलत उन्हें साल 1989 में पद्मश्री से नवाजा गया. आज की महिलाओं को उनसे सीख लेनी चाहिए. जो पढ़ी-लिखी होने के बावजूद अपने लिए आवाज तक नहीं उठाती.

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Published : Mar 7, 2021, 4:02 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

Rajmohini Devi of Surguja raised voice for womens empowerment 67 years ago
राजमोहिनी देवी

सरगुजा : महिला सशक्तिकरण के नारे भले ही आज के आधुनिक समय में प्रसारित ज्यादा होते हैं लेकिन सरगुजा जैसे पिछड़े इलाके में 67 साल पहले ही एक महिला ने नारी की शक्ति का अहसास देश को करा दिया था. महिला दिवस के अवसर पर हम आपको सरगुजा की एक ऐसी महान महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने पति प्रताड़ना के दंश को अपना हथियार बनाया और समाज सुधार के लिए निकल पड़ी. अकेली महिला ने जो अभियान छेड़ा था वो धीरे-धीरे राज्य और राज्य से बाहर भी सफल होने के बाद देश की सरकार ने तब उन्हें दो बार सम्मानित किया.

राजमोहिनी देवी का गांव

साल 1989 में मिला पद्मश्री सम्मान

हम बात कर रहे हैं राजमोहिनी देवी की. जिनकी महानता ने उन्हें माता राजमोहिनी बना दिया. नशा मुक्ति के लिये उन्होंने ऐसा अभियान छेड़ा की समाज का समर्थन उनके साथ जुड़ने लगा और इनके अभियान को न केवल अविभाजित मध्यप्रदेश, यूपी और झारखंड में भी सराहा गया. बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें सम्मानित किया गया. केन्द्र सरकार ने उन्हें साल 1986 में इंदिरागांधी पुरस्कार दिया गया. साल 1989 में उन्हें पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया गया. माता राजमोहिनी ने संत विनोवा भावे की प्रेरणा से साल 1953 से अभियान शुरू किया. जो 1994 तक चला. उनके निधन के बाद यह अभियान धीरे-धीरे शांत पड़ने लगा, अब उनके अभियान का नाम लेने वाला भी कोई नहीं हैं.

राजमोहिनी देवी का घर

अपने ही गांव से चलाया नशा विरोधी कार्यक्रम

माता राजमोहिनी देवी ने जिस गांव से पूरे देश को नशामुक्त करने की अलख जगाई थी. आज वो गांव नशे के गर्त में समाता जा रहा है. आज भी माता राजमोहिनी के हजारों अनुयायी हैं. साल में एक दिन उनके चित्र पर माल्यार्पण जरूर करते हैं. माता राजमोहिनी की सामाजिक संस्था आज भी अस्तित्व में है. उनका नशा विरोधी अभियान पूरी तरह शांत पड़ गया है. सालों तक पति प्रताड़ना की शिकार रहीं माता राजमोहिनी देवी ने बेहद विपरीत परिस्थितियों में अपने गांव गोविन्दपुर से नशा विरोधी अभियान की शुरुआत की थी. तब ग्रामीण क्षेत्रों में नशे का कारोबार चरम पर था. बड़ी संख्या में लोग शराब के नशे में महिलाओं को प्रताड़ित करते थे. गांव की महिलाओं को एकजुट कर माता राजमोहिनी ने सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत कर पहले अपने गांव गोविन्दपुर को नशामुक्त किया. उसके बाद अपने अभियान को पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश, झारखंड और अविभाजित मध्यप्रदेश के कोने-कोने तक पहुंचाकर लाखों लोगों को नशामुक्त करने में सफलता पाई.

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याद में लगता है मेला

माता राजमोहनी देवी के हजारों अनुयायी आज भी माघ मेला में उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं. कहने को बेटी रामबाई ने उनकी कमान संभाली है. उनकी सामाजिक संस्था बापू धर्म सभा का संचालन कर रही हैं. उनकी संस्था का नाम बदलकर राजमोहिनी देवी सेवा संस्थान कर दिया गया हैं, लेकिन उनके अधूरे सपने को पूरा करने वाला कोई नहीं है. कभी नशामुक्ति के लिए पूरे देशभर में चर्चित ग्राम गोविंदपुर अब खुद नशे की चपेट में है.

महिलाओं के लिये आदर्श

माता राजमोहिनी देवी ना सिर्फ महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं बल्कि उन्होंने घरेलू हिंसा की मुख्य वजह को पहचाना और घरेलू हिंसा की जड़ नशे को समाज से उखाड़ फेंकने का प्रण लिया था. लिहाजा अब नशामुक्ति की बात करने वाले तमाम संगठनों को माता राजमोहिनी के इस अभियान को आगे बढ़ाने की जरूरत है. घरेलू हिंसा का शिकार हो रही महिलाओं को इनके जीवन से प्रेरणा लेना चाहिए. 67 साल पहले कई विषम परिस्थितियों में एक अकेली महिला इतना बड़ा अभियान चला सकती है तो आज की पढ़ी-लिखी नारी आखिर क्यों अपने लिए आवाज नहीं उठाती.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

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