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सरगुजा रियासत की राजमाता ने कृष्ण भक्ति में छोड़ा राजपाट और बन गईं संन्यासी - जन्माष्टमी

जन्माष्टमी के मौके पर हम आपको सरगुजा रियासत की राजमाता के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कृष्ण भक्ति में लीन हो राजपाट का त्याग कर दिया और संन्यासी बन गईं.

Rajmata Bhagwati Devi
राजमाता भगवती देवी

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Published : Aug 18, 2022, 2:09 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: कलयुग में कई कृष्ण भक्त ऐसे थे, जिन्होंने कृष्ण भक्ति में अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी है. कृष्ण भक्ति का एक ऐसा ही उदाहरण सरगुजा में मिलता है. सरगुजा रियासत की राजमाता भगवती देवी, जिन्होंने महल के ऐशो आराम को त्याग कर कृष्ण भक्ति में सन्यासी जीवन बिताया. ऐसा कठिन जीवन कि कड़कड़ाती ठंड में 108 घड़ों के बासी ठंडे पानी से भोर में 4 बजे स्नान करती थीं. तपती हुई गर्मी के मौसम में पंचाग्नि लेती थीं.

छोड़ा राजपाट और बन गई सन्यासी

सरगुजा रियासत की राजमाता थी कृष्ण भक्त: कृष्ण की मीरा जितनी भक्ति करने वाली राजमाता भगवती देवी सरगुजा रियासत की राजमाता थी. उन्होंने मीरा के तरह विष तो नहीं पिया बल्कि अपने जीवन में रोजाना ऐसे व्रत किया करती थी, जो कि बेहद कठिन था. भगवती देवी सरगुजा के महाराजा रघुनाथ शरण सिंहदेव की पत्नी थीं. राजमाता भगवती देवी को सभी माई साहब कहकर पुकारते थे.

महाराज रघुनाथ शरण सिंह की पत्नी:इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी सरगुजा रियासत के बेहद करीबी गोविंद शर्मा ने ईटीवी भारत को दिया. गोविंद शर्मा कहते हैं, "सरगुजा के हिज हाइनेस रामानुज शरण सिंह देव की माता जी को माई साहब कहा जाता था. ऐसे उनका नाम भगवती देवी था, ये मिर्जापुर के पास विजयगढ़ की राजकुमारी थी. ये महाराज से विवाह कर यहां आई थी. महाराजा रघुनाथ शरण सिंह, जो उनके पति थे...उनका जन्म 1861 में हुआ था और 31 दिसंबर 1917 को उनका निधन हो गया."

पति के निधन के बाद सम्भाली रियासत:गोविंद शर्मा कहते हैं, "उनके बेटे महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव उस समय 22 वर्ष के थे. महाराजा 22 वर्ष में नाबालिग माने जाते थे. 23 साल में इनकी बालिगी होती है. तो इस समय माई साहब ही राज देख रही थीं. माई साहब धर्मात्मा प्रवत्ति की थी. जब वो विधवा हुई तो पैलेश में ना रहकर वो बगल में कृष्ण मंदिर बनाकर उसमें रहने लगी. उसे राधा बल्लभ मंदिर कहा जाता है. यह माई साहब के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. वो कृष्ण की अनन्य भक्त थी. उन्होंने भारत का कोई भी तीर्थ स्थल नहीं छोड़ा, हर तीर्थ स्थल में जाकर उन्होंने मत्था टेका था. हर तीर्थ स्थल में वो अपने केश दान किया करती थी."

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108 घड़े ठंडे पानी से स्नान: गोविंद शर्मा आगे कहते हैं, "माई साहब कितनी भी ठंड हो वो 108 घड़ा पानी से स्नान करती थीं. रात में घड़ा भरकर रख दिया जाता था. सुबह 4 बजे जब वो स्नान करती थी तो 108 घड़े का पानी धीरे-धीरे उन पर डाला जाता था. इसी प्रकार मई जून की तपती धूप में वो पंचाग्नि लेती थीं. विभिन्न प्रकार की लकड़ियों से चंदन, आम, बेल, नीम, बर सब प्रकार की लकड़ियों से बना हुआ हवन कुंड होता था, उनके पास बैठकर वो पंचाग्नि लिया करती थीं."

अन्न त्याग फलाहार पर रहीं:गोविंद शर्मा बताते हैं, "माई साहब जीवट व्रत करती थीं. उन्होंने अन्न त्याग दिया था. फलाहार पर जीवन बिता रही थीं. दांत न होने के कारण उन्हें फल भी कूट कर दिया जाता था. उनको पूर्वानुमान हो जाता था कि क्या खतरा आने वाला है. पैलेश में साल 1952-53 में आग लगी, तो उसका भी उनको पहले से आभास हो गया था. अनहोनी से पहले ही उन्होंने कहा था कि मैं खुद को चारों ओर से आग से घिरा हुआ पा रही हूं...पता नहीं क्या अनहोनी होने वाली है. जिसके बाद 1952 में पैलेश में आग लग गई."

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

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