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जानिए टीएस सिंहदेव ने कैसे राजमहल से तय किया राजनेता तक का सफर - TS Singhdev

छत्तीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister) एक ऐसे विरासत के धनी हैं, जिसे देख और सुन कर विकास की धारा में बह रहा प्रदेश भी शर्मसार हो जाय. छत्तीसगढ़ के पांचवी विधानसभा (Assembly) के प्रमुख वजीर सरगुजा राज घराने के महाराज टीएस सिंहदेव और उनके पुरखों ने सालों पहले सरगुजा रियासत को उस शानो-शौकत (luxury) से चलाया है, जो अपने आप में एक नायाब उदाहरण है. पढ़िये इस खास पेशकश में सरगुजा रियासत से सिंहासन छत्तीसी तक का सफर.

Know the political journey of TS Singhdev, how the leader of the opposition became a minister
जानिए टीएस सिंहदेव का राजनीतिक सफर, कैसे नेता प्रतिपक्ष से बने मंत्री

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Published : Sep 19, 2021, 6:14 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव वह नाम जिसने कांग्रेस (Congress) का जन घोषणा पत्र (public manifesto) तैयार कर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की आंधी चलाई. 31 अक्टूबर 1952 को जन्मे टीएस सिंहदेव (TS Singh deo) सरगुजा महाराज मदनेश्वर शरण सिंह देव और राजमाता देवेन्द्र कुमारी के पुत्र हैं. इनके विषय में आप ने अब तक इनकी अमीरी के किस्से बहुत सुने होंगे. लेकिन हम आपको इनकी विरासत के अद्भुत वैभव की जानकारी देने जा रहे हैं.

मंच से बोलते टीएस सिंहदेव

राज परिवार में जन्मेसिंह देव ने भोपाल के हमीदिया कालेज से इतिहास विषय में एमए (MA in History) किया है. सरगुजा रियासत (princely state) के महाराजा टीएस सिंहदेव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 1983 में अंबिकापुर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष (President of Municipal Council) चुने जाने के साथ हुई. वह 10 साल तक इस पद पर बने रहे. सिंह देव अंबिकापुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. सिंह देव 2008 से लगातार अंबिकापुर से जीतते हुए आ रहे हैं.

महिला कार्यकर्ताओं के साथ सिंहदेव

2013 विधानसभा चुनावों में वह सबसे अमीर उम्मीदवार थे. ये 500 करोड़ से अधिक संपत्ति के मालिक हैं. 31 अक्टूबर 1952 को इलाहाबाद में पैदा हुए सिंहदेव के पिता अविभाजित मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव थे. सिंहदेव इतिहास में स्नातकोत्तर हैं. सिंहदेव ने कई सालों तक खुद को राजनीति से दूर रखा. उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन (Join Congress) की और 1983 में अविभाजित मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में राज्य कांग्रेस कमेटी (Congress Committee) के सदस्य बने. सिंह देव की कांग्रेसियों को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है. सरल स्वभाव के कारण ये सबकी पसंद हैं.

कार्यक्रम में लोगों के साथ बैठे टीएस सिंहदेव

गांधी परिवार से भी सिंह देव का पुराना रिश्ता
अब बात करते हैं राजनैतिक रसूख और अनुभव की तो आपको बता दें कि सिंहदेव के लिये यह सब बिल्कुल भी नया नहीं है. वह बचपन से इस स्तर की राजनीति देखते आ रहे हैं. क्योंकि इनके पिता अविभाजित मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्य सचिव थे. वहीं, माता जी के मंत्री रहने का अनुभव इनके साथ जुड़ा है. गांधी परिवार से भी सिंह देव का काफी पुराना नाता है. एक बार पण्डित जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) एक रैली निकालने इलाहाबाद आये थे. तब उनके बगल से खुली छत वाली लाल स्पोर्टिंग कार (red sporting car) फर्राटे भरती निकल गई.

अपनी रैली के लिए नेहरूजी वैसी ही गाड़ी चाहते थे. लिहाजा अफसरों से उस गाड़ी का पता लगाने को बोले. तब पता चला कि वह गाड़ी वहां अध्ययनरत उनके अभिन्न मित्र सरगुजा महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के पोते टीएस सिंह के पिता मदनेश्वर शरण सिंह की है. गाड़ी मंगाई गई, शानदार रैली हुई. रात डिनर पर सरगुजा के हिज हाईनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के कार वाले 'पोते' के न दिखने पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की. पता चला कि वह आमन्त्रित ही नहीं हैं.

तब नेहरूजी ने कहा कि उनके आने तक वह इन्तजार करेंगे. सकते में आया पूरा प्रशासनिक अमला उनका पता लगाते सिनेमा हॉल पहुंचा. शो रुकवा कर एनाउंस करा कर ढूंढ़ा. नेहरूजी के सामने ला कर उन्हें खड़ा कर दिया था. जिसके बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनका हाल-चाल जाना और फिर दोनों ने खाना खाया. छत्तीसगढ़ में सिंहदेव ने शुरू से ही कांग्रेस के लिये कैडर बेस्ड काम किया है.

2003 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता गई और फिर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब हो चली. संगठन बिखर चुका था. जोगी, शुक्ल और तमाम गुटों में कांग्रेस बंट गई थी. ऐसे में कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में नंद कुमार पटेल के रूप में एक नेतृत्व मिला और नंद कुमार पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस का संगठन (Congress organization) प्रदेश में दोबारा खड़ा होने लगा. उन्होंने जिम्मेदारियों का विकेंद्रीकरण किया और बस्तर सरगुजा में लोगों को जिम्मेदारी देना शुरू किया. उस दौरान टीएस सिंहदेव भी नंद कुमार पटेल के साथ संकट मोचन की तरह हर मोर्चे पर खड़े रहे. गुटों में बंटी कांग्रेस अब एकजुट दिख रही थी. तब नंद कुमार पटेल ने परिवर्तन यात्रा निकाली.

परिवर्तन यात्रा की दी गई जिम्मेवारी

परिवर्तन यात्रा के आयोजन की जिम्मेदारी उन्होंने टीएस सिंहदेव को दी थी. वह यात्रा के प्रभारी हुआ करते थे. हर यात्रा के पहले सिंहदेव आयोजन की तैयारी में भीड़ जाते थे. और यह परिवर्तन यात्रा ने कांग्रेस के पक्ष में लोगों को खड़ा किया. लेकिन दुर्भाग्यवश झीरमघाटी हमले में कांग्रेस के ज्यादातर नेता शहीद हो गये और एक बार फिर कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में विपक्ष में बैठना पड़ा. लेकिन कांग्रेस इस सदमे से निकलकर दोबारा ताकत में आई और इस बार टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल, नंद कुमार पटेल के सपने को आगे बढ़ाया.

विपक्ष में रहते हुए सिंहदेव लगातार प्रदेश के गांव-गांव घूमते रहे और लोगों से संपर्क जारी रखा. चुनाव के पहले कांग्रेस ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी और जन घोषणपत्र समिति का अध्यक्ष (chairman of manifesto committee) बना दिया. फिर क्या था, सिंहदेव का विमान उड़ा और प्रदेश के हर गांव तक पहुंचा. उन्होंने गांव और शहरों में आम लोगों की चौपाल लगाई और लोगों से पूछा की घोषणा पत्र में किन बातों को रखना चाहिए. सिंहदेव के साथ शॉर्ट हैंड एक्सपर्ट (short hand expert) चलते थे, जो जनता की बातों को तुरंत नोट कर लेते थे.

जनता का मिला पूरा आशीर्वाद

पूरे प्रदेश से प्रतिक्रिया लेने के बाद उन्होंने जन घोषणापत्र तैयार किया और कांग्रेस हाई कमान ने उस घोषणा पत्र पर मुहर लगा दी. घोषणा पत्र के वादे जनता के द्वारा ही सुझाये गये थे. जनता को लगा मानो यह घोषणा पत्र कांग्रेस का नहीं बल्कि उनका ही है. लिहाजा यह फार्मूला हिट हो गया और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ऐसा प्रदर्शन किया, जिसकी उम्मीद खुद कांग्रेस ने नहीं की थी.

सरकार तो बनी, सिंहदेव को नहीं मिला सीएम का ताज
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन सिंहदेव मुख्यमंत्री नहीं बन सके. पार्टी ने भूपेश बघेल को सीएम की कुर्सी सौंप दी और टीएस सिंहदेव मंत्री बनाए गए. लेकिन इस दौरान कांग्रेस हाई कमान सिंहदेव की काबिलियत का उपयोग समय-समय पर कर रही थी. देश के अन्य राज्यों में चुनाव व राजनीतिक संकट में उन्हें मोर्चे पर भेजा गया और सिंहदेव संकट मोचन की तरह हर मोर्चे पर सफल हुए.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

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