सरगुजा:अशोक का पेड़ कहीं भी मिल जाता है. हर गार्डन में अशोक के सीधे और लंबे वृक्ष लहलहाते रहते हैं. लेकिन अशोक के पेड़ की असली प्रजति यह नहीं है. दरअसल, असली अशोक वृक्ष काफी दुर्लभ होता है. असली अशोक का वृक्ष हिमालय के अलावा सरगुजा के जंगलों में भी है, इसे सीता अशोक कहा (Sita Ashok tree) जाता है. स्थानीय लोग इस पेड़ की पूजा-पाठ करते हैं लेकिन कुछ वर्ष पहले वनस्पति शास्त्री ने यहां पर शोध किया और ग्रामीणों को बताया कि "यह पेड़ अशोक वृक्ष की असली प्रजाति है".
सरगुजा के अशोक वृक्ष की खासियत ऐसे जाते हैं अशोक वृक्ष तक:दरअसल, मैनपाट के नर्मदापुर से करीब 16 किलोमीटर दूर दुर्गम पहाड़ी मार्ग से होते हुये इस अशोक वृक्ष तक जाया जा सकता है. लेकिन यहां दोपहिया वाहन या फिर पैदल ही सफर किया जा सकता है. यहां जाने का मार्ग नहीं है. ऊंचे-नीचे पहाड़ के रास्ते से होते हुये किसी तरह यहां पहुंचा जा सकता है. ईटीवी भारत की टीम ने भी यहां जाकर असली अशोक वृक्ष का मुआयना किया. सच में ये वृक्ष अन्य अशोक के वृक्ष से बिल्कुल अलग है.
ये वृक्ष सबसे अलग: आम तौर पर जो पेड़ अशोक के नाम से प्रचलित है, वो एक ही तने पर सीधा लंबा खड़ा होता है. इसकी पत्तियां पतली और लंबी होती हैं. लेकिन दुर्लभ प्रजाति का यह अशोक वृक्ष बिल्कुल ही अलग है. इसके कई तने होते हैं. यह विशाल वट वृक्ष की तरह खड़ा है. इस पेड़ में फूल भी खिलते हैं लेकिन इसके फूल खिलने का समय निश्चित है.
इसी वृक्ष के नीचे बैठी थी माता सीता, ऐसा लोग करते हैं दावा:इस सम्बंध में वरिष्ठ वनस्पति शास्त्री एम.एल.नायक ने शोध किया. वो सरगुजा आये उन्होंने ही ग्रामीणों को बताया कि ये पेड़ असली अशोक का वृक्ष है. वनस्पति शास्त्री एम.एल नायक से ईटीवी भारत की टीम ने टेलिफोनिक बातचीत की. उन्होंने बताय कि "पूरे छत्तीसगढ़ में अशोक वृक्ष की असली प्रजति सिर्फ सरगुजा में है. एक पेड़ मैनपाट के नर्मदापुर में है और दो पेड़ अम्बिकापुर के एक प्राइवेट कॉलेज में हैं. यह दुर्लभ अशोक वृक्ष है, जो पेड़ हम अशोक के नाम से घर में लगाते हैं, वो नकली है. असली अशोक यही है, इसे सीता अशोक कहा जाता है. इसी अशोक के नीचे सीता लंका में बैठी (Mother Sita was sitting under real Ashoka tree ) थीं."