सरगुजा:सरगुजा में मुख्य रूप से धान और मक्के की ही खेती की जाती है. जून और जुलाई के महीने में खरीफ की फसल लगाई जाती है. जिसके बाद अक्टूबर के महीने में किसानों का धान लगभग पक कर तैयार होने की कगार पर होता है और इस समय धान में लगने वाले कीड़ों से बचाव के लिए कीटनाशक के छिड़काव की जरूरत होती है. फसल के बीमार होने पर किसान कीटनाशक दवा दुकानों से खरीदकर छिड़काव करते हैं, लेकिन कई बार किसान के खेत में लगी बीमारी नष्ट नहीं होती, बल्कि उसकी फसल ही नष्ट हो जाती है. इस समस्या के लिए न तो विभाग गंभीर दिखता है न ही सरकार की ओर से कोई सख्त कदम उठाए जाते हैं. इसके परिणाम स्वरूप किसान की पूरी फसल चौपट हो जाती है और किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने तक को मजबूर हो जाते हैं या फिर आर्थिक रूप से कमजोर होकर जिंदगी व्यतीत करते हैं.
दवाइयों की जानकारी नहीं होने से फसल बर्बाद
इस कड़ी में ETV भारत ने पड़ताल की और इस बात का पता लगाने का प्रयास किया की आखिर ऐसे कौन से कारण हैं की खेत में लगी फसल में कीटनाशक का छिड़काव करने के बावजूद भी कीड़े नहीं मरते हैं और कीड़े पूरी फसल को चट कर जाते हैं. पड़ताल में शुरुआती तौर पर बात सामने आई की नकली कीटनाशक से ऐसा हो सकता है, लेकिन जब मामले की पड़ताल करते हुए आंकड़े निकाले गए तब पता चला कि अनट्रेंड लोगों द्वारा कीटनाशक की बिक्री करने की वजह से ऐसा हो रहा है. जिन्हें फसलों की बीमारी और उसमें उपयोग होने वाली दवाइयों की जानकारी नहीं है. ऐसे लोग जब किसान को गलत दवाई दे देते हैं, तब किसान की फसल में लगे कीड़े नहीं मरते हैं और लंबा समय बीत जाने के बाद कीड़े पूरी फसल को चौपट कर देते हैं.
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'नकली समान बेचना आसान नहीं'
इधर, मानसून ऐग्रो के संचालक संजय गुप्ता बताते हैं, बाजार में सभी बड़ी ब्रांडेड कंपनियों के कीटनाशक उपलब्ध है और इनका नकली समान बेचना आसान नहीं है. कंपनियां खुद अपने नुकसान की चिंता करते हुए इस पर नजर रखती है.
69 दुकानदारों के पास ही लाइसेंस