सरगुजा :अम्बिकापुर नगर निगम (Ambikapur Municipal Corporation) की सामान्य सभा की बैठक सोमवार को राजमोहिनी देवी ऑडोटोरियम में हुई थी. इसमें सदस्यों के सवालों पर तो चर्चा हुई. लेकिन विपक्ष ने इस गार्बेज कैफे की उपयोगिता पर सवाल उठाए. जबकि इस कैफे ने देश के पहले गार्बेज कैफे (India First Garbage Cafe in Ambikapur) के रिकार्ड के साथ सरगुजा को बड़ी पहचान दिलाई है. गार्बेज कैफे संचालक को लाभ देने और कैफे में दुकान संचालित करने जैसे आरोप भी लगाए गए. गार्बेज कैफे बंद करने की बात ने भी तूल पकड़ी.
ऐसे में हमने अम्बिकापुर के गार्बेज कैफे की पड़ताल की. यह जाना कि क्या वाकई इसकी उपयोगिता नहीं है? क्या गार्बेज कैफे सिर्फ नाम के लिए खोला गया था? क्या अब इसे बंद कर देना चाहिये? इन सवालों के जवाब तलाशते हमने कुछ आंकड़े जुटाए. यह आंकड़े बताते हैं कि गार्बेज कैफे आज भी उपयोगी है. इसे बंद करना ठीक नहीं. आगे जानिये हमारी पड़ताल में गार्बेज कैफे से जुड़े और कौन-कौन से तथ्य सामने आये.
कितने पॉलीथिन के बदले कितना भोजन
9 अक्टूबर 2019 में शुरू हुआ यह गार्बेज कैफे (India First Garbage Cafe launched on 9 October 2019) अब तक लॉक डाउन से पहले तक 3156 लोगों को भोजन और 525 लोगों को नास्ता निःशुल्क दे चुका है. जबकि कोरोना काल के बाद जब इसे दोबारा शुरू करने पर अब तक 562 लोगों को खाना और 20 लोगों को नाश्ता मिल चुका है. रोजाना 3 से 4 लोग पॉलीथिन लेकर आते ही हैं. मतलब अब भी गार्बेज कैफे में लोग वेस्ट पॉलीथिन लेकर पहुंचते हैं. ऐसे में इसे बंद करने का ख्याल क्यों आ रहा है.
आपको बता दें कि यहां 1 किलो वेस्ट पॉलीथिन लाने पर मुफ्त में खाना और आधा किलो पॉलीथिन पर मुफ्त में नाश्ता दिया जाता है. इस हिसाब से गार्बेज कैफे की योजना से नगर निगम के एसएलआर सेंटर को 3 हजार 990 किलो वेस्ट पॉलीथिन प्राप्त हो चुका है. मतलब 3 हजार 990 किलो वेस्ट पॉलीथिन को नगर निगम ने इस माध्यम से दुरुपयोग होने से रोका है.