सरगुजा: मंदिर के पुजारी शिवम शुक्ला ने बताया कि "तीसरी पीढ़ी है हमारी इस मंदिर में पहले दादा जी फिर पिता जी अब मैं यहां पुजारी हूँ. ये मंदिर लगभग 100 साल पुराना है. पहले तो ढांचा कुटिया जैसा था. बाद में जैसे जैसे विकास हुआ तो ये मंदिर बना. काली माता माँ दुर्गा का सातवां रूप हैं कालरात्री माता, विशेष रूप से पूजा का तो कोई दिन नहीं होता. लेकिन काली मां को शुक्रवार को 108 नींबू की माला चढ़ाना चाहिये. वैसे एक पुरानी कहावत है जितनी शक्ति उतनी भक्ति."
108 नींबू की माला:मंदिर के पुजारी शिवम शुक्ला ने बताया कि "अगर कोई सिर्फ चुनरी चढ़ाता है तो भी माता प्रसन्न होती हैं. विशेष रूप से अगर शुक्रवार को 108 नींबू की माला चढ़ाए शान्त मन से तो माता बहुत जल्दी सुनती हैं. विशेष रूप से देवी फूल गुड़हल का फूल या कमल का फूल भी माता को चढ़ता है. काली मां को नवरात्र के समय मे आप सप्तमी के दिन कालरात्रि माता की उपासना कर सकते हैं."
Maa Kali Temple surguja: सौ साल पुराने काली मन्दिर की जानें मान्यता, शुक्रवार को ऐसे करें देवी को प्रसन्न - कालरात्री माता
देवी की आराधना का शुक्रवार को विशेष महत्व माना गया है. आदि शक्ति के 9 रूपों की पूजा का अलग अलग महत्व और विधान है. हर रूप में देवी फल दायनी हैं. आज हम आपको आदि शक्ति के सातवें रूप काली की पूजा का विधान बताने जा रहे हैं. अम्बिकापुर से झारखंड मुख्य मार्ग पर शंकर घाट के पास माँ काली का प्राचीन मंदिर है. यहां मां काली की प्रतिमा सौ वर्ष से भी अधिक समय से विराजमान है.
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भैरव बाबा को चढ़ाएं मदिरा:मंदिर के पुजारी शिवम शुक्ला ने बताया कि "प्रसाद में आप कुछ भी दूध का बना मीठा या पंचमेवा भी चढ़ा सकते हैं. सुबह का समय पूजा के लिये उत्तम होता है. सुबह खाली पेट शांत मन से पूजा करें बस इतना ही माँ चाहती हैं. कोई विशेष मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं है पूजा के लिये. काली माता की पूजा के साथ भैरव बाबा और हनुमान जी की भी पूजा होती है. क्योंकी भैरव बाबा माता के भाई के रूप में हैं. हनुमान जी को आप सिंदूर, लंगोट चढ़ा सकते हैं और भैरव बाबा को विशेष रूप से मदिरा चढ़ाया जाता है. हर जगह तो नहीं लेकिन हमारे मंदिर में भैरव बाबा को मदिरा चढ़ाते हैं."
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पहले अघोर पूजा भी होती थी:मंदिर के पुजारी शिवम शुक्ला ने बताया कि "मंदिर में बहुत शक्ति है. शहर से दूर होने के कारण मंदिर में बहोत लोग तो नहीं आते हैं. लेकिन यहां दूर दूर से श्रद्धालू आते रहते हैं. मेरे पिता जी विशेष पूजा करते थे. उनके अंदर में अघोर शक्ति थी तो वो अघोर पूजा भी करते थे. जो माता से सही मन से जुड़ गया तो उसका काम सफल होना ही है. यही सब मान्यता है, करने वाली माता है हम लोग तो बस माध्यम बन जाते हैं."