सरगुजा:पहले के समय में लोगों के लिए कचरा कोई बड़ी समस्या नहीं हुआ करती थी. हर चीज को दो से तीन बार लोग इस्तेमाल करते थे. चारपाई टूटी तो मेज बना लेते थे. मेज टूटी तो स्टूल बना लिया जाता था. स्टूल टूटा तो लकड़ी इस्तेमाल कर ली जाती थी. आखिर में वो लकड़ी चूल्हे में जलाने में काम तो आ ही जाती थी. लेकिन आजकल एक बार कोई चीज खराब हुई तो हम उसे हटाकर नई चीज ले आते हैं. घर का कचरा प्रशासन और समाज के लिये या तो डंपिंग यार्ड बनता है या फिर एसएलआरएम सेंटरों के माध्यम से उसे डिकम्पोज किया जाता है. लेकिन कचरा अब घर में ही डिकम्पोज हो (kitchen waste organic fertilizer in Sarguja ) जाएगा.
सरगुजा में वेस्ट से बेस्ट:अंबिकापुर के एक वैज्ञानिक ने ऐसा कल्चर तैयार किया है, जिसके उपयोग से लोगों के घरों का कचरा अब घर में ही कंपोस्ट कर के खाद बनाया जा रहा है. किचन से निकलने वाला किचन वेस्ट मटेरियल को खाद में तब्दील किया जा रहा है. इससे 28 दिन में खाद तैयार हो जाती है. हर सातवें दिन इसमें से एक ऐसा लिक्विड निकाला जाता है, जिसका उपयोग फूल, पौधों की ग्रोथ बढ़ाने के लिये किया जाता (Surguja kitchen waste will become organic fertilizer) है.
खाद और लिक्विड टॉनिक:होम कम्पोस्टिंग के लिये हर घर में एक विशेष प्रकार की डस्टबीन दी जाती है. इस डस्टबीन में रोजाना किचन से निकलने वाला जैविक कचरा डालना होता है. कचरे के ऊपर एक चम्मच कल्चर डालना है. यह कल्चर अम्बिकापुर ने इंवेन्ट किया गया है. इसे डालने के बाद दो प्रकार के ढक्कन से इसे ढक देना होता है. नियमित यह प्रक्रिया 21 दिनों तक करना है. कचरा डालने की पहली तारीख से 7 वें दिन डस्टबीन में लगे नल के सहारे लिक्विड निकालना होता है. यह लिक्विड हर सातवें दिन निकालना पड़ता है.
28वें दिन में जैविक खाद तैयार:डस्टबीन से निकलने वाला लिक्विड फूल, पौधों की ग्रोथ बढ़ाने में सहायक होता है. इसका छिड़काव पौधों में करने पर यह टॉनिक के तरह काम करता है. डस्टबीन में 21 दिन के बाद कचरा नहीं डालना है. 28वें दिन आपका जैविक खाद बनकर तैयार हो जाता है. आप इसे निकाल कर अपने घर के गार्डन में उपयोग कर सकते हैं या तो इसे अपनी नगरीय निकाय को बेच भी सकते हैं.