सरगुजा:21 दिसंबर 2023... स्थान.... छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य का वो हिस्सा जो कोरबा जिले की सीमा पर सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील में पड़ता है. यहां के गांव घाट बर्रा के पेंड्रामार जंगल को पूरी तरह काट दिया गया. जंगल बचाने वाले ग्रामीणों को या तो हिरासत में ले लिया गया या उनके घर में ही पुलिस ने उन्हें नजर बंद कर दिया. 3 दिन में प्रशासन ने यहां प्रस्तावित कोल परियोजना परसा ईस्ट केते बासेन के लिए हफ्ते भर में 15000 से ज्यादा पेड़ काट दिए. पेड़ काटने का ये काम पहली बार नहीं हुआ, इससे पहले सितम्बर 2022 में 43 हेक्टेयर में लगे 8000 पेड़ काटे गए थे. जानते हैं हसदेव अरण्य क्या है और कैसे शुरू हुआ हसदेव का दमन...
हसदेव अरण्य क्या है?छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल व समृद्ध वन क्षेत्र है जो जैव-विविधता से परिपूर्ण है. हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है जो जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर जिले के लोगों और खेतों की प्यास बुझाता है. यह वन क्षेत्र सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्य भारत का एक समृद्ध वन है जो मध्य प्रदेश के कान्हा के जंगल, झारखंड के पलामू के जंगलों से जोड़ता है. यह हाथी जैसे 25 महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी वन क्षेत्र है.
साल 2010 से शुरू हुआ हसदेव का दोहन: हसदेव क्षेत्र में खदान खोलने का सिलसिला साल 2010 में शरू हुआ. केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इसकी स्वीकृति दी और सूबे में बैठी भाजपा ने इसका प्रस्ताव भेजा. 2010 में केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो-गो एरिया घोषित किया था. फिर इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति FAC ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे साल 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT ने निरस्त भी कर दिया.
मानव हाथी संघर्ष की दी गई थी चेतावनी: इसके बाद (भारतीय वन्य जीव संस्थान) की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई. जिसमें बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखा है कि हसदेव अरण्य समृद्ध, जैवविविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है. इसमें कई विलुप्त प्राय वन्यप्राणी आज भी मौजूद है. वर्तमान संचालित परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक को बहुत ही नियंत्रित तरीके से खनन करते हुए बाकी पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र को तत्काल नो गो घोषित किया जाये, इस रिपोर्ट में एक चेतवानी भी दी गई है कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी खनन परियोजना को स्वीकृति दी गई तो मानव हाथी संघर्ष की स्थिति को संभालना लगभग नामुमकिन होगा.
अडानी की कंपनी मिली खनन की अनुमति: इन सबके बावजूद परसा कोल ब्लॉक का काम शुरू कर दिया गया. यह आवंटन राजस्थान सरकार को दिया गया. राजस्थान सरकार की राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड कंपनी ने इसका एमडीओ अडानी को दे दिया और अब अडानी की कंपनी यहां से कोल परिवहन का काम करती है. जब इस खदान को खोला गया तब केंद्र में कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार थी और छत्तीसगढ़ में भाजपा की रमन सिंह की सरकार थी. इसके बाद शुरू हुआ सियासी खेल.
राहुल गांधी ने किया हर हाल में साथ देने का वादा:कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी लेमरू पहुंचे. मोहनपुर और कुदमुरा में ग्रामीणों संग जन सभा की और बड़े बड़े वादे किए. खुद को उनके साथ बताया. राहुल गांधी जब जनता को संबोधित कर रहे थे तब तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनके पीछे खड़े थे. राहुल गांधी ने लोगों से कहा की "ये जंगल आपका जंगल है, आपकी जिंदगी इस जंगल में मिली हुई है, अगर ये जंगल खत्म हो जाएगा, आप खत्म हो जाओगे आपके बच्चे खत्म हो जायेंगे, तो मैं आपको यहां ये कहना चाहता हूं कि इस लड़ाई में कांग्रेस पार्टी और मैं आपके साथ खड़े हुए हैं. हम हटने नहीं वाले, किसानों के साथ खड़े हुए हैं आदिवासियों के साथ खड़े हुए हैं. हमारा सिर्फ एक कहना है हम भी विकास चाहते हैं, मगर उस विकास में आपके बारे में भी सोचना है, आदिवासियों के बारे में भी सोंचना है, जंगल के बारे में भी सोचना है, जल के बारे में भी सोचना है और आपके जीवन के बारे में भी सोचना है. "
कांग्रेस सरकार में शुरू हुई पेड़ों की कटाई:कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में आ गई. ग्रामीणों को भरोसा हुआ कि अब सरकार खदान नहीं खुलने देगी और पेड़ नहीं कटेंगे लेकिन कांग्रेस की सत्ता में भी प्रशासन ने बल पूर्वक सितंबर 2022 में पेड़ों की कटाई की. 3 हेक्टेयर के 8000 पेड़ काटे गए. इस दौरान भाजपा के नेताओं ने खूब विरोध प्रदर्शन किया. तत्कालीन डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के बंगले का घेराव भाजपा ने किया और खुद को पर्यावरण प्रेमी बताया. हालांकि बाद में टीएस सिंहदेव खुद हसदेव के जंगल पहुंचे और आदिवासियों से मिलकर एक पत्ता भी नहीं तोड़े जाने का वादा किया. इसके बाद हसदेव में पेड़ों की कटाई रोक दी गई.