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हैंडलूम डे 2022: सरगुजा में हैंडलूम कला को जीवंत रखने का किया जा रहा प्रयास

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Published : Aug 4, 2022, 9:32 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा में हैंडलूम कला को जीवंत रखने को कई प्रयास किये जा रहे हैं. आज भी सरगुजा के ग्रामीण क्षेत्रों में इस कला को संजो कर रखा गया (Efforts are being made to keep handloom art alive in Surguja) है.

Handlooms in Surguja
सरगुजा में हैंडलूम

सरगुजा: 7 अगस्त को हैंडलूम डे 2022 मनाया जाएगा. हैंडलूम यानी कि हाथ से निर्मित वस्तु...सरगुजा ऐसी वस्तुओं के निर्माण के लिए जाना जाता है. यहां के भित्ती चित्र ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों तक में भी सराहे जाते हैं. इसके अलावा यहां के गलीचे, गोदना आर्ट, छींद आर्ट जैसी तमाम वस्तुएं हैं, जिनका निर्माण सरगुजा में होता है. इनमें से कालीन बनाने में हथकरघा का इस्तेमाल किया जाता है. जबकि बाकी के प्रोडक्ट्स हैंडीक्राफ्ट की श्रेणी में आते (Efforts are being made to keep handloom art alive in Surguja) हैं.

हैंडलूम डे 2022

भित्तिचित्र:सरगुजा की सबसे प्राचीन कला भित्ति चित्र है. इसे रजवार भित्ति भी कहा जाता है. मुख्य रूप से रजवार जाति के लोग इस कला में निपुण होते हैं. सरगुजा में तो रजवार जाति के घरों में ही भित्तिचित्र की कलाकृतियों को देखी जा सकती है. लेकिन इनकी डिमांड इतनी अधिक है कि देश भर के शहरों में लोग भित्तिचित्र बनवाते हैं या इन चित्रों से बनी डिजाइन खरीद कर घर में सजाते हैं. भित्ति चित्र मिट्टी को आकर देकर बनाया जाता है. इस कला को विश्व स्तर और पहचान दिलाने में सोना बाई का बड़ा योगदान माना जाता है.

गलीचे: सरगुजा में गलीचे का भी काम तेजी से किया जा रहा है. शुरुआत में मैनपाट में आकर बसे तिब्बती गलीचा बनाते थे. लेकिन बाद में तिब्बतियों ने गलीचा निर्माण बंद कर दिया. लेकिन हस्त शिल्प विभाग ने स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण दिया और जिले में कई स्थानों पर गलीचे का निर्माण शुरू करा दिया. आज करीब 200 लोग इस काम से जुड़े हुये हैं. सरगुजा में बनने वाली यह कालीन बेहद प्रसिद्ध है. यह आईएएस अकेडमी मसूरी तक में सरगुजा से कालीन मंगवाई गई है.

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गोदना आर्ट:सरगुजा में बहुत पुराने समय से गोदना की परंपरा रही है. लोग अपने शरीर में गोदना गोदवाते थे. बदलते वक्त के साथ नई पीढ़ी गोदना से दूर होती गई और टैटू ने इसकी जगह ले ली. सरगुजा के ट्रेडिशनल गोदना आर्ट को जीवित रखने के लिए इस आर्ट को कपड़ों में उकेरा जाने लगा. अब महिलाओं के वस्त्र, चादर, परदे व अन्य कपड़ों में गोदना आर्ट की डिजाइन बनाई जा रही है. इस डिजाइन को देश भर में सराहा जाता है. छत्तीसगढ़ के सबरी एम्पोरियम समेत, दिल्ली हाट में भी यह कपड़े मिल जाते हैं.

छींद की टोकनी:सरगुजा संभाग के जशपुर में छींद और कांस के पत्तों की कलाकृति बनाई जा रही है. सबसे अहम है यहां बनने वाली छींद की टोकरी. यह टोकरी इतनी आकर्षक होती है कि दूर-दूर से इनकी डिमांड आती है. टोकनी के अलावा अन्य साज-सज्जा में भी छींद की बुनाई का इस्तेमाल किया जाता है. यह अक्सर रेस्टोरेंट व अन्य व्यावसायिक संस्थानों में ट्रेडिशनल लुक देने में सहायक होता है.

ऑनलाइन मार्केट में उपलब्ध:हस्त शिल्प बोर्ड के अधिकारी राजेंद्र राजवाड़े बताते हैं, " सरगुजा का सबसे पुराना हैंडीक्राफ्ट है भित्ति चित्र. ये लखनपुर एरिया में जो रजवार जाति के लोग हैं, वो अपने घरों को सजाने में इसका उपयोग करते हैं. इसके अतिरिक्त मैनपाट का गलीचा पहले तिब्बती लोगों का मुख्य व्यवसाय था. लेकिन जैसे-जैसे जनरेशन चेंज हुई उन लोगों ने इसे बन्द कर दिया, जिसके बाद विभाग ने इसे टेकअप कर लिया और आसपास के गांव के गलीचा बुनकर, जो भदोही जाते थे उनको कलेक्ट करके ये काम चालू कराया गया. इसके आलवा गोदना आर्ट के कपड़े, छींद की टोकनी का निर्माण हो रहा है. रायपुर में पंडरी हाट और सबरी एम्पोरियम के साथ ई-कामर्स साइट पर भी सरगुजा के हैंडीक्राफ्ट उपलब्ध हैं."

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

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