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मजदूर की चैंपियन बेटी, कभी अच्छे जूते लेने के नहीं थे पैसे, अब नेशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप में दिखाएगी जलवा - success story of tribal girl

Champion daughter of laborer parents, International basketball day 2023: यह कहानी है मजदूर मां बाप की चैंपियन बेटी की. कभी अच्छे जूते लेने नहीं थे पैसे, अब आदिवासी इलाके की यही बेटी नेशनल बॉस्केटबॉल चैंपियनशिप में जलवा दिखाएगी. इस बेटी ने यह साबित कर दिखाया कि हौसले हैं तभी मंजिले हैं. Success Story of Tribal Girl, Ambikapur News

tribal laborer daughter selects in sports
अंबिकापुर के आदिवासी मजदूर की बेटी की उड़ान

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 21, 2023, 1:16 PM IST

Updated : Dec 21, 2023, 3:03 PM IST

मजदूर की बटी अब बनेगी चैंपियन

अंबिकापुर: अंबिकापुर की आदिवासी मजदूर की बेटी नेशनल बास्केटबॉल चैंपियनशिप 2023 में खेलेगी. लेकिन यहां पहुंचने का सफर आसान नहीं था. बच्ची की लगन और मेहनत को देख गरीब मां बाप ने भी बेटी के सपने पूरा करने की ठानी और दिनरात मजदूरी कर एक एक पैसे जोड़कर उसके लिए जूते खरीदे. पिता राज मिस्त्री और मां मजदूरी का काम करती हैं. जब बेटी के लिये बास्केटबॉल के महंगे जूते खरीदने थे तो वो नामुमकिन था. सस्ते जूतों से ही सीमा ने खेलना शुरू किया. मजदूरी करके भी परिवार ने साथ दिया, बच्ची की लगन और प्रतिभा को देखकर कोच राजेश सिंह ने भी सहयोग किया और आज एक आदिवासी मजदूर की बच्ची बास्केटबॉल का नेशनल खेलने जा रही है. International basketball day 2023

अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल दिवस पर ये कहानी है सरगुजा की आदिवासी बच्ची सीमा नगेशिया की. जो अंबिकापुर के गोधनपुर की रहने वाली हैं. पिता मिस्त्री हैं. मां भी पिता के साथ मजदूरी का काम करती हैं. 14 साल की सीमा नगेशिया को बचपन से ही बास्केटबॉल खेलना काफी पसंद था. विपरीत परिस्थितियों के बाद भी हर हाल में बास्केटबॉल खेलना नहीं छोड़ा. इसी का फल है कि सीमा अब सब जूनियर बास्केटबॉल नेशनल चैंपियनशिप 2023 खेलने राजस्थान जाने वाली है. इससे पहले दो बार स्टेट लेवल में भी सीमा को दो बार ब्रॉन्ज मेडल मिल चुका है. Ambikapur Tribal Laborer Daughter Selects In Sports

अच्छे जूते लेने के नहीं थे पैसे:बास्केटबॉल खेलने के लिए जूते अच्छे होने चाहिए. अच्छे जूते के लिए पैसे भी ज्यादा देने पड़ते हैं. ऐसे में घर की परिस्थितियों को देखते हुए सीमा के पिता अपनी बच्ची की ख्वाहिशों को पूरा करने किसी तरह पैसे जमा कर जूते लेकर देते थे. जिसे पहनकर सीमा बास्केटबॉल की प्रैक्टिस करती थी.

''जब खेलने के लिये जूते लेने थे तो बास्केटबॉल के जूते काफी महंगे थे, पिता मिस्त्री हैं और माँ उनके ही साथ मजदूरी करती है. महंगे नहीं लेकिन सस्ते जूते उन्होंने लेकर दिये. परिवार और कोच दोनों ने सपोर्ट किया.''-सीमा नगेशिया, बास्केटबॉल प्लेयर

अंबिकापुर में कई खिलाड़ियों का बनाया भविष्य:सीमा के कोच राजेश प्रताप सिंह हैं. जिन्होंने अंबिकापुर की कई खिलाड़ियों की भविष्य बनाया है. उनका कहना है कि सरगुजा में बास्केटबॉल की कई प्रतिभा हुई हैं, जिन्होंने ना सिर्फ प्रदेश का नाम रोशन किया बल्कि अपना करियर भी बना लिया. कुछ खेल कोटे से रेलवे में जॉब कर रही हैं तो कुछ शासकीय सेवा में तो कुछ कोच बनकर प्राइवेट सेक्टर में काम कर रही हैं. निशा कश्यप, उर्वशी बघेल, शबनम एक्का बास्केटबॉल खेलकर खेल कोटे से रेलवे में जॉब कर रही हैं. इसके अलावा बबिता, रिबिका खेलो इंडिया के प्रोजेक्ट के साथ प्राइवेट सेक्टर में काम कर रही हैं.

''जो मैं नहीं कर सका वो ये बच्चे कर रहे हैं. नगेशिया एक मजदूर परिवार की बच्ची है. अभी इसकी शुरुआत है, पूरा विश्वास है कि आगे जाकर अंबिकापुर और देश का नाम ऊंचा करेगी. इन्ही की मदद से सरगुजा की बाकी प्रतिभाओं को आगे बढ़ाएंगे. जो छोटी मोटी मदद होती है मैं करता हूं. इनको खेल की बारीकियां सिखाते हैं और जब ये सफल होती हैं तो अच्छा लगता है''. -राजेश प्रताप सिंह, बास्केटबॉल कोच

सरगुजा से कई खेल प्रतिभाओं ने नाम कमाया है. बड़ी बात यह रही की इन सभी का जीवन पहले अभाव में कट रहा था. खेल के संसाधन जुटाने के लिए भी पैसे नहीं थे, बावजूद इसके इन छोटे छोटे बच्चों ने कड़ी मेहनत की और इनके साथ हमेशा द्रोणाचार्य बनकर इनके कोच खड़े रहे. आज इन खिलाड़ियों ने एक मुकाम पाया और अभाव में प्रभाव कैसे बनता है ये साबित कर दिखाया.

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Last Updated : Dec 21, 2023, 3:03 PM IST

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