सरगुजा: कोविड-19 और लॉकडाउन ने इंसान के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. एक तरफ जीवन बचाने के लिये लोगों को घरों में कैद रहना जरूरी है, तो दूसरी तरफ बाजार में बहुत से कामकाज बंद होने से इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों के सामने आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ है. भित्ति चित्र बनाकर छत्तीसगढ़ को विश्व पटल पर पहचान दिलाने वाली सुंदरी बाई भी इस लॉकडाउन के बाद बेरोजगारी की मार झेल रही है. सरगुजा के एक छोटे से गांव में कच्चे मकान में रहने वाली बुजुर्ग महिला के घर जब हम पहुंचे, तो वो अपने घर में घुसा बारिश का पानी बर्तन से निकाल रही थी. छप्पर वाला घर कई जगह से टपक रहा था, हालात बदतर है, लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है.
आर्थिक तंगी से जूझ रही सुंदरी बाई सरगुजा की सुंदरी बाई ऐसी महिला है, जिन्होंने अपने हुनर के दम पर पूरे देश ही नहीं बल्कि विदेशियों को भी आकर्षित किया है. सुंदरी बाई ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है, लेकिन अपने हुनर के दम पर वह न सिर्फ भारत के बड़े-बड़े अन्य शहरों का भ्रमण कर चुकी हैं, बल्कि फ्रांस, पेरिस, जापान और इंग्लैंड जैसे देशों में जाकर अपनी कला का जौहर दिखा चुकी हैं. भित्ति चित्र बनाने में माहिर सुंदरी बाई ने इन देशों में जाकर भित्ति चित्र बनाया है, जिसके लिए वहां की सरकारों ने सुंदरी बाई को न सिर्फ प्रोत्साहन राशि दी, बल्कि उनके हुनर को सराहते हुए. उन्हें अपने देशों के प्रतीक चिन्ह वाले उपहार से भी सम्मानित किया है. अपने देश में भी सुंदरी बाई को कई बार समानित किया गया है.
आर्थिक संकट से जूझ रहा सुंदरी बाई का परिवार
मिट्टी, गोबर, चूना और रंगों का अद्भुत मिश्रण जब सुंदरी बाई के हाथों से गढ़ा जाता है, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं दिखता. अपने घर को भी उन्होंने अपनी कला से ऐसे ही सजा रखा है. बचपन में ही मिट्टी से खिलौने बनाने वाली सुंदरी बाई को नहीं पता था कि 1 दिन भित्ति चित्र बनाने की कला उनकी पहचान बन जाएगी. सुंदरी बाई थोड़ा बहुत खेती करके परिवार का गुजारा चलाती हैं. इसके अलावा सुंदरी बाई की कला से जो आमदनी हो जाती है. उसी से जीवन यापन करती हैं, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से अब इस परिवार पर आर्थिक संकट मंडरा रहा है.
परेशानी में जी रहा सुंदरी बाई का परिवार देश ही नहीं विदेश में भी लोगों को किया कायल
सुंदरी बाई साल 2003 में जब पहली बार इंग्लैंड गई, तो इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर में अपनी कला का प्रदर्शन किया. साल 2010 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में भारतीय आदिवासी लोक कला की एक विशाल प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसमें सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित की गई थी. वहां उन्होंने अपनी कला का जीवंत प्रदर्शन भी किया. मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित राष्ट्रीय मानव संग्रहालय एवं जनजातीय संग्रहालय और दिल्ली स्थित संस्कृति संग्रहालय में सुंदरी बाई की बनाई कला कृतियां प्रदर्शित की गई हैं.
5000 में कैसे चलेगा परिवार का गुजारा
वर्ष 1989-90 में मध्यप्रदेश शासन ने सुंदरी बाई के अद्भुत शिल्प कौशल के लिए उन्हें शिखर सम्मान से नवाजा था. यह सम्मान मध्यप्रदेश शासन ने किसी लोक आदिवासी कलाकार को दिए जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. इसके बाद वर्ष 2010 में भारत सरकार और फिर केरल सरकार ने सुंदरी बाई को पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके साथ ही तत्कालीन रमन सरकार ने सुंदरी बाई के लिए 5000 रूपये प्रति माह पेंशन की व्यवस्था की थी, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इस अद्भुत कलाकार को प्रोत्साहन के तौर पर प्रतिमाह 5000 रुपये दिया जाना उचित है, या फिर सरकार को सुंदरी बाई के लिए कुछ और प्रयास करने की जरूरत है.