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Grafting Technique: जानिए कैसे की जाती है पौधों में ग्राफ्टिंग, दोगुना बढ़ जाता है उत्पादन - हार्टिकल्चर विभाग

Grafting Techniqueभारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां कई तरह के फसलों की खेती की जाती है. इसके साछ समय समय पर कृषि वैज्ञानिक नई सब्जियों और फलों की प्रजातियों पर शोध कर कृषि के एडवांस तकनीक निकाल रहे हैं. जिसके फलस्वरूप ग्राफ्टिंग तकनीक का 2013-14 में विकसित हुई. इसका सबसे बड़ा फायदा किसानों को होगा. आइए समझते हैं क्या है ग्राफ्टिंग और इससे किसानों को कितना फायदा मिल रहा है.

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Published : Jul 30, 2023, 11:29 PM IST

जानिए कैसे की जाती है पौधों में ग्राफ्टिंग

सरगुजा: मौसम अब खेती और गार्डनिंग का हो चला है, ये कोई नई बात नहीं है. हर वर्ष बरसात में लोग गार्डनिंग करते हैं. फल और साब्जियां खेत व गार्डन में उगाते हैं. लेकिन बदलते वक्त के साथ परम्परागत खेती में बदलाव हुए हैं. आधुनिक खेती काफी अधिक मुनाफा दे रही है. आधुनिक खेती के तरीकों में ग्राफ्टिंग काफी फेमस तरीका है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि ग्राफ्टिंग कैसे की जाती है.

क्या है ग्राफ्टिंग: उद्यानिकी की एक तकनीक है, जिसमें एक पौधे के ऊतक दूसरे पौधे पौधे के ऊतकों में प्रविष्ट कराये जाते हैं. जिससे दोनों के वाहिका ऊतक आपस में मिल जाते हैं. इस प्रकार इस विधि से अलैंगिक प्रजनन द्वारा पौधे तैयार किये जाते हैं. इसे ही हार्टिकल्चर में ग्राफ्टिंग कहा जाता है.

ऐसे करें ग्राफ्टिंग:हार्टिकल्चर विभाग के सीडलिंग प्लांट में ग्राफ्टिंग कर रही महिला चंद्रकांती ने बताया कि "अगर टमाटर की फसल के लिये ग्राफटिंग करना है, तो टमाटर का हाइब्रिड प्लांट और बैगन का जंगली प्लांट लेना होगा. टमाटर का प्लांट 20 से 25 दिन का और बैगन का प्लांट 40 से 45 दिन का होना चाहिये. इसके बाद दोनों प्लांट को तने के पास तिरछा कट करना है. काटने के बाद बैगन के जड़ से तने तक का हिस्सा और टमाटर का तने से पत्ते तक का हिस्सा, जहां कट किया है, वहां से जोड़ देंगे. इसे जोड़ने के लिए आप प्लास्टिक की क्लिप ले सकते हैं.

ग्राफ्टिंग के बाद की प्रोसेस:इसके बाद ग्राफ्टेड प्लांट को कपड़े के छोटे बैग हाउस में एक सप्ताह रखना है. उस कपड़े में पानी डालना है. प्लांट में सीधे पानी नहीं डालें. इस प्रक्रिया के बाद प्लांट को एक सप्ताह ऐसे कमरे में रखना है, जहां तापमान सामान्य रहे. तेज धूप, तेज हवा या अधिक पानी इसमें ना जाये. ग्राफ्टिंग के दो सप्ताह बाद यह पौधा अब खेत का बागवानी में रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं. थोड़ी ही मेनहत और आधुनिक तरीकों से ना सिर्फ आप सुरक्षित पौधे रोप सकेंगे बल्कि अधिक उत्पादन कर अधिक मुनाफा भी कमा सकेंगे.

ये पेड़ जैसा बड़ा हो जाता है, क्योंकी इसमें धरती से उर्वरकता लेने की क्षमता बढ़ जाती है. इसलिए ये उपर के हिस्से को काफी बूस्ट करता है, सामान्य हाइब्रिड की खेती से 4 गुना और लोकल वेरायटी से 10 गुना अधिक उत्पादन बढ़ जाता है. -दितेश रॉय, आधुनिक खेती के जानकार

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एक्सपर्ट के प्रयोग के आधार पर तथ्य: ग्राफ्टेड पौधों में बीमारी नहीं लगती है, ये मरते नही हैं. ज्यादातर पौधे बड़े होकर फल देते हैं और पैदावार भी अधिक आती है. जिस पौधे की फसल लेना है, उसका हिस्सा ऊपर और जंगली वेरायटी के बैंगन या मिर्च का पौधा नीचे ग्राफ्ट करना है. ग्राफ्टिंग के लिए पौधे एक फैमली से होने चाहिये. जैसे सब्जी में बैगन, टमाटर और मिर्च एक फैमली के प्लांट हैं. तो इनकी आपस मे ग्राफ्टिंग की जा सकती है. फलों में आम की ग्राफ्टिंग आम से ही की जा सकती है.

हाइब्रिड ग्राफ्टिंग के लिए ऐसी प्रजातियों का चयन करें, जिसका उत्पादन अच्छा हो. पीएफवी पौधों में बीमारी ना हो, इसलिए चयन करने से पहले जांच लें, कि बीज या प्लांट में बीमारी ना हो. वाइल्ड वेरायटी के बीज से पौधा तैयार कर ग्राफ्ट करने से बेहतर होगा अगर आप सीधे वाइल्ड प्लांट के साथ ग्राफटिंग करें. क्योंकि ये तापमान और बीमारी के प्रति रजिस्टेंस होते हैं. - डॉ. प्रशांत शर्मा, बायोटेक वैज्ञानिक, हार्टिकल्चर विभाग

ग्राफ्टिंग में इन बातों का रखें ध्यान: ग्राफ्टिंग में ऊपर उस पौधे को रखना है, जिसकी आपको फसल लेना है. इसकी हाइब्रिड वेरायटी का प्लांट लें और नीचे में किसी भी जंगली वेरायटी का प्लांट लें, जो बीमारियों के प्रति रजिस्टेंस हो. जैसे जंगली बैगन कई बीमारियों से लड़ सकता है. ग्राफ्टिंग के बाद पैदावार हाइब्रिड जितनी ही होती है इसमें प्लांट अधिक आते हैं.

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