बालोद:शहर से राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 930 के रेगुलर गांव से कुछ ही दूरी पर प्रकृति की गोद में एक सुंदर सा पहाड़ है, जिसे भोला पठार के नाम से जाना जाता है. पहाड़ी पर बसे इस मंदिर के प्रति लोगों में काफी आस्था है. इस मंदिर में भोलेनाथ के साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी है. भोला पठार को छत्तीसगढ़ के कैलाश के रूप में भी जाना जाता है.
यह पठार 400 फीट की ऊंची है. मंदिर तक पहुंचने के लिए लोगों को लगभग 200 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है. कहा जाता है कि माता सीता के हरण के बाद जब भगवान राम उन्हें ढूंढने निकले थे तो वे इस पहाड़ी से होकर गुजरे थे. इस दौरान माता पार्वती ने भगवान राम की परीक्षा ली थी, जिस कारण इसे दंडकारण्य क्षेत्र भी कहा जाता है. भगवान राम से भेंट करने के लिए भगवान भोलेनाथ भी इस पहाड़ पर पहुंचे थे.
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बताया जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने कैलाश पर्वत पर वापस जाने से पहले यहां अपना एक भक्त छोड़ा था, ताकि लोग भविष्य में इस जगह के बारे में जान सकें. लोग बताते हैं कि भगवान के उस भक्त कोबुझा भगत के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि गवान शिव उन्हें नींद से उठाकर यहां ले आते थे और वे भगवान शिव की पूजा अर्चना करते थे. बुझा भगत से ही इस मंदिर की पहचान हुई है. सावन और महाशिवरात्रि में यहां हजारों की संख्या में भक्त आते हैं. लोगों का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मुरादें पूरी होती है.