रायपुरः शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा का दिन है. मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की देवी माना जाता है, सौरमण्डल की अधिष्ठात्री देवी मां कूष्मांडा ही हैं. कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी तब हर ओर अंधेरा व्याप्त था, तब देवी ने ही अपनी मंद मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. जिसके बाद से ही इन्हें देवी कूष्मांडा कहा गया. मां कूष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं. कमंडल, धनुष बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र एवं गदा अपनी भुजाओं में धारण किए हुए हैं और सिंह पर सवार हैं. मां कूष्मांडा सात्विक बलि से अत्यंत प्रसन्न होती हैं. कूष्मांडा देवी को लाल रंग से सुसज्जित श्रृंगार किया जाता है.
ऐसा है मां का स्वरूप
- मां कूष्मांडा का दिव्य रूप 8 भुजाओं वाला है, जो सभी दिशाओं को आलोकित करती हैं.
- कहा जाता है कि देवी की मुस्कान से सृष्टि की रचना हुई, मां का ये रूप पूरे ब्रह्मांड में शक्तियों को जागृत करने वाला स्वरूप है.
मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं:माता कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. माता कूष्मांडा अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं. माता के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा विराजमान है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप की माला होती है. माता का वाहन सिंह है. देवी को कुम्हड़े की बलि चढ़ाई जाती है. संस्कृत में कुम्हड़े को कूष्मांडा कहते हैं, इसलिए भी माता को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है.