रायपुर: रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में धान की पारंपरिक किस्मों का उत्परिवर्तन प्रजनन विधि के माध्यम से सुधार किया जा रहा है. इससे धान के इन किस्मों की उपज क्षमता बढ़ाई गई है. धान के फसल की लंबाई को भी कम किया जा सकता है. जिससे किसानों को इसका नुकसान भी कम होगा. इस काम में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने 5 किस्मों पर अब तक अनुसंधान कार्य पूरा कर लिया है. धान की इन पारंपरिक किस्मों में दुबराज, विष्णु भोग, जवाफूल, बादशाह भोग, लुचई मासुरी और सफरी धान है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक साल 2013 से इस अनुसंधान कार्य में जुटे हुए हैं.
उत्परिवर्तन प्रजनन विधि से धान फसल में किस तरह का होगा बदलाव? जानिए - कृषि वैज्ञानिक
रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में धान की पारंपरिक किस्मों में उत्परिवर्तन प्रजनन विधि के माध्यम से सुधार किया जा रहा है. कृषि वैज्ञानिकों ने 5 किस्मों पर अब तक अनुसंधान पूरा कर लिया है. धान की कुछ और पारंपरिक किस्में हैं, जिस पर कृषि वैज्ञानिक की रिसर्च जारी है.
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धान की उपज क्षमता बढ़ने पर रिसर्च:इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के पादप प्रजनन विभाग के एचओडी डॉ दीपक शर्मा ने बताया कि "अमूमन धान की फसलों को तैयार होने में पहले 150 से 160 दिन लगते थे. लेकिन उत्परिवर्तन प्रजनन विधि से अब किसान उसी धान की फसल को 125 से 130 दिन में ले सकते हैं. इसके साथ ही पहले एक धान फसल की लंबाई 140 से 150 सेंटीमीटर होती थी. जिस पर उत्परिवर्तन प्रजनन विधि का प्रयोग करके इसकी लंबाई कम की गई है. यह अब 90 से 100 सेंटीमीटर हो गई है. कुल मिलाकर धान फसल की लंबाई कम होने से धान फसल का स्वरूप बदल कर छोटा और बौना हो गया है. इससे किसानों को भी फायदा मिलेगा और उपज क्षमता भी बढ़ेगी."