रायपुर: जिस तरह किसी आदमी का बायोडाटा होता है. उसमें उस आदमी से जुड़ी सारी जानकारी होती है. ठीक वैसे ही जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) एक तरह से वायरस का बायोडाटा होता है. किसी भी वायरस में दो तरह के तत्व पाए जाते हैं. पहले तत्व को डीएनए और दूसरे तत्व को आरएनए कहते हैं. जीनोम सिक्वेंसिंग (Identification of virus elements by genome sequencing) से इनके तत्व की जांच की जाती है. ये पता लगाया जाता है कि यह वायरस कैसे बना है. इसमें क्या खास बात है. इसकी पूरी रिपोर्ट तैयार की जाती है. जीनोम सिक्वेंसिंग से यह भी समझने की कोशिश की जाती है कि वायरस में म्यूटेशन कैसे हुआ है और कहां से हुआ है. अगर ये म्यूटेशन कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुआ है तो यह ज्यादा संक्रामक सिद्ध होता है.
नेक्स्ट जेनरेशन सिक्वेंसिंग का एडवांस्ड प्लेटफॉर्म (Advanced Platform for Next Generation Sequencing)
नेक्स्ट जेनरेशन सिक्वेंसिंग का एडवांस्ड प्लेटफॉर्म है. सीक्वेंसिंग का मतलब होता है, वायरस या बैक्टीरिया का जो भी जेनेटिक मैटेरियल है उसके पूरे सीक्वेंस को रीड करना.कोरोनावायरस आरएनए वायरस (corona virus rna virus) है, ऐसे में इसके 29 प्रोटीन कोड किए जाते हैं और इसकी पूरी सीक्वेंस को रीड किया जाता है. इसी के आधार पर पता चलता है कि, वायरस में कहां पर म्यूटेशन आ रहा है और म्यूटेशन के बाद यह किस ग्रुप में फिट हो रहा है. अल्फा, डेल्टा, गामा या ओमीक्रोन वैरिएंट (Omicron Variants) का इसी के आधार पर पता चलता है. आईजीआईएमएस में मौजूद जीनोम सीक्वेंसिंग की मशीन बड़े जीनोम को रीड करने की क्षमता रखता है. जीनोम सिक्वेंसिंग के प्रोसेस को 3 स्टेप में डिवाइड किया जाता है. पहला स्टेप होता है लाइब्रेरी प्रिपरेशन. यानी कि इस प्रोसेस में पॉजिटिव सैंपल को कई छोटे-छोटे पीसेस में अलग किया जाता है. जहां सिक्वेंसिंग होती है. वहां नैनो चिप लगा होता है और उससे वह बाइंड करता है. क्योंकि वायरस का जीनोम बड़ा होता है और यह 30 KB का होता है. इतनी बड़ी क्षमता को जीनोम मशीन एक बार में रीड नहीं कर सकता.
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जीनोम सिक्वेंसिंग का दूसरा स्टेप होता है एनजीएस रन