रायपुरःप्रथम पूज्य देव गणपति के अनेको नाम हैं. वह कई अलग-अलग रूपों में प्रकट हो कर अपने भक्तों के विघ्नों को हरते हैं. भगवान गणपति का वक्रतुंड (vakratunda ) रूप भी इसी तरह देवताओं (gods) पर आए विघ्न के हरण के लिए हुआ था.
पुराणों (Puranas) के मुताबित एक बार मत्सरासुर (matsarasur) नाम का एक राक्षस कठोर तप कर भगवान शिव (Lord Shiva) को प्रसन्न कर लेता है उसके बाद मनचाहा वरदान प्राप्त कर इंद्र और अन्य देवताओं को तंग करने लगता है. देखते ही देखते उसका आतंक तीनों लोकों में फैल गया. इंद्र समेत सभी देवता भगवान विष्णु को लेकर भगवान शिव से गुहार लगाते हैं. इसके बाद भगवान शंकर राह बताते हैं और उनके कहे मुताबिक सभी देव गणेश का आह्वान करते हैं. तीनों लोक पर आए इस महान कष्ट को हरने के लिए भगवान गणपति वक्रतुंड रूप लेते हैं. और मत्सरासुर को पराजित कर देते हैं. मत्सरासुर अपनी हार स्वीकार कर लेता है और खुद गणेश जी का भक्त बन जाता है.
पूजा का लाभ
वैसे तो भगवान गणेश की आराधना हर रूप में शुभ-फलदायक है. गौरी के लाल सौम्यता के प्रतीक माने जाते हैं. लेकिन मनुष्य जीवन में आने वाले घोर विपत्तियों को हमेशा के लिए टालने के लिए या सामने आए किसी कष्ट के निवारण के लिए
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।