रायपुरः सुकमा में तैनात जवान ने अपने ही साथियों पर बरसाई गोली और उसमें उनकी मौत की दुखद घटना देखने को मिली. इस घटना के बाद एक बार फिर जवानों के मानसिक अवसाद (psychotic depression) को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. आखिर ऐसी क्या वजह है कि जवान कई बार खुद को गोली मार लेते हैं या फिर दूसरों पर गोलियां बरसा देते हैं? इसमें रोकने में अब तक विभाग को कामयाबी क्यों नहीं मिल सकी है? आखिर बार-बार ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति क्यों होती है?
जवानों के मानसिक अवसाद में जाने की मुख्य वजह, ऐसे कई सवाल है जिसका जवाब मिलना बाकी है. इन सवालों को लेकर हमने अलग-अलग वर्ग के लोगों से बात की. जिसमें मनोचिकित्सक नक्सल एक्सपर्ट और पुलिस विभाग के अधिकारी शामिल हैं. आइए जानते हैं कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है? जिस वजह से जवान इस तरह के कदम उठा रहे हैं और से रोकने किस तरह की पहल करनी चाहिए? सबसे पहले बात करते हैं पुलिस अधिकारियों की. पुलिस अधिकारी से ईटीवी भारत ने जानना चाहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनात जवानों को आखिर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और वह मानसिक अवसाद की स्थिति में क्यों जाते हैं?
जवानों के तनाव के लिए बन रहे कई वजह
इस पर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में काम कर चुके रिटायर्ड पुलिस निरीक्षक उदय पटेल ने कहा कि जवानों के तनाव के सबसे प्रमुख वजह उनको समय पर छुट्टी ना मिलना है. जिस वजह से वह घर नहीं जा पाते हैं. कई बार घर से संबंधित समस्याओं को लेकर भी यह जवान मानसिक तनाव में रहते हैं. कई बार अधिकारियों से तालमेल न होने की वजह से भी यह जवान तनाव में आ जाते हैं. साथियों का बर्ताव आपस में ठीक ना होने की वजह से भी जवान तनाव ग्रसित हो जाते हैं. इन जवानों के मनोरंजन के साधन भी संघर्ष ग्रस्त क्षेत्रों में नहीं रहता है. यह भी तनाव को जन्म देती है. जवानों के बीच तनाव को दूर करने के लिए उदय पटेल ने कहा कि उनकी काउंसलिंग की बेहतर व्यवस्था होना जरूरी है.
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त्योहार के समय छुट्टी न मिलना भी बड़ा कारण
नक्सल इलाकों में ग्रामीण और सीआरपीएफ के जवानों की काउंसलिंग और अवेयरनेस के लिए काम करने वाली डॉक्टर वर्णिका शर्मा का कहना है कि खासकर त्यौहार के समय जवानों को घर जाने की आवश्यकता होती है. जवान जब छुट्टी पर जाते हैं और तब भी और जब वह घर से वापस लौट कर आते हैं, उस दौरान भी उनको एक विशेष प्रकार की इमोशनल इनबैलेंस यानी मानसिक विचलन से गुजर रहे होते हैं.
उस समय हमको उनका विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. उनकी काउंसलिंग करनी चाहिए. साथ ही ड्यूटी में रोटेशन भी प्रॉपर होना चाहिए. तभी इस प्रकार की परिस्थितियों से बचा जा सकता है. वर्णिका का कहना है कि इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए प्रबंधन तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं.
समय-समय पर मानसिक विश्लेषण जरूरी
मनोचिकित्सक डॉ. सुरभि दुबे का कहना है कि जवानों का रेगुलर मानसिक विश्लेषण होना चाहिए. जैसे उनका फिजिकल एग्जामिनेशन होता है. उसी प्रकार मानसिक विश्लेषण भी जरूरी है. उनका वर्किंग आवर्स अलग-अलग रहता है. रात को नींद पूरी नहीं हो पाती है. वर्क लोड बहुत ज्यादा ओर जिम्मेदारी पूर्वक रहता है. हमेशा चौकस रहना पड़ता है. इस कारण से भी वह तनाव में आ जाते हैं और इसलिए हमें उनका मानसिक विश्लेषण लगातार करना जरूरी है.
सुरभि ने कहा कि अब जवानों में नशे की प्रवृत्ति भी घर करने लगी है. यह भी काफी हद तक जवानों में पाई जाती है. जिसका असर उनके मानसिक और स्वास्थ्य पर पड़ करता है. हालांकि इसके प्रमाण कम हैं. इस वजह से भी मानसिक रोग देखने को मिलता है. सुरभि ने कहा कि जवानों पर काम का काफी दबाव होता है साथ ही परिवार से दूर होने की वजह से भी यह तनावग्रस्त हो जाते हैं. कई बार छुट्टी ना मिलने की वजह से भी तनाव ले लेते हैं.