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पत्नी ने बच्चों की खातिर नहीं की सरकारी नौकरी, ताड़मेटला में शहीद हुए थे सुशील कुमार - Martyr Sushil Kumar Memorial

6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के सुकमा (ताड़मेटला) में नक्सलियों से लोहा लेते हुए उन्नाव के सुशील कुमार शहीद हो गए थे. सुशील कुमार की शहादत को 11 साल बीत गए, लेकिन आज भी परिवार उस दर्द को नहीं भुला पाया है.

story of sushil kumar from unnao up who martyred in tadmetla naxal attack sukma
शहीद सुशील कुमार का स्मारक

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Published : Apr 9, 2021, 7:55 AM IST

उन्नाव:साल 2010 में छत्तीसगढ़ केताड़मेटला में हुए नक्सली हमले में जिन 76 जवानों की शहादत हुई थी, उनमें उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के कोरारी गांव के रहने वाले सुशील कुमार भी शामिल थे. सुशील कुमार की शहादत को 11 साल बीत गए, लेकिन आज भी परिवार दर्द को नहीं भुला पाया है.

शहीद सुशील कुमार के परिवार के जख्म आज भी जाता

उन्नाव के रहने वाले थे शहीद सुशील कुमार

6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों से लोहा लेते हुए उन्नाव जिले के सुशील कुमार शहीद हो गए थे. जैसे ही ये दुखद खबर परिवार को मिली, मानों उन पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था. परिवार बेसुध था. पूरा गांव शोक में डूबा हुआ था. जो गांव का बेटा हंसते हुए जोश के साथ नक्सलियों से लड़ने के लिए वर्दी पहनकर निकला था. उसका पार्थिव देह तिरंगे में लौटेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था.

शहीद का परिवार

पत्नी को रोज सुबह फोन करते थे शहीद सुशील कुमार

सुशील कुमार की शहादत को 11 साल हो गए, लेकिन आज भी परिवार के जख्म ताजा हैं. शहीद सुशील कुमार की पत्नी पेशे से एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं. वहीं उनके दो बच्चे निधि और निखिल पढ़ाई कर रहे हैं. शहीद की पत्नी सुनीता बताती हैं कि सुशील कुमार उन्हें रोज सुबह 4 बजे फोन किया करते थे, लेकिन 6 अप्रैल के दिन उनका फोन नहीं आया. कुछ देर बाद खबरें आने लगी कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमला हो गया है, जिसमें बहुत सारे जवान शहीद हो गए हैं. उन जवानों में सुशील कुमार का भी नाम था.

शहीद का परिवार

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बच्चों की परवरिश की खातिर पत्नी ने नहीं की नौकरी

शहीद सुशील कुमार की पत्नी सुनीता बताती हैं कि जब उनके पति शहीद हुए थे, तो सीआरपीएफ की तरफ से उन्हें नौकरी का ऑफर मिला था, लेकिन उस समय उनके बच्चे काफी छोटे थे. जिसके चलते उन्होंने नौकरी नहीं की. हालांकि उन्होंने कहा कि यदि उन्हें या उनके बच्चों को राज्य सरकार नौकरी देती है, तो वे नौकरी करने को तैयार हैं. सुनीता ने कहा कि पहले शहीद के परिवार को केंद्र सरकार ही नौकरी देती थी, लेकिन अब प्रावधान बदल गया है. राज्य सरकार भी नौकरी देने लगी है. सुनीता ने बताया कि पेंशन से उनका गुजारा तो हो रहा है, लेकिन बच्चों की पढ़ाई और अन्य खर्चों को लेकर आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है.

शहीद सुशील कुमार

आज भी पुराने घर में रहने को मजबूर शहीद का परिवार

सुशील कुमार के छोटे भाई अरुण ने बताया कि सुशील बहुत ही मिलनसार थे. उनका कहना है कि जब सुशील कुमार शहीद हुए थे तो कई नेता और अधिकारी गांव आए थे. शहीद के परिवार को 5 बीघा जमीन का पट्टा, आवास और लिंक रोड पर द्वार और शहीद स्मारक बनाने का वादा किया था. जिनमें कुछ वादे तो पूरे हुए हैं, लेकिन कुछ वादे आज भी अधूरे हैं. परिवार को एक आवास देने की बात कही गई थी, लेकिन आज भी वे पुराने घर में रहने को मजबूर हैं.

शहीद सुशील कुमार का स्मारक

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