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'जहां भी जाता हूं लोग कहते हैं वो देखो शहीद के पिता जा रहे हैं'

छत्तीसगढ़ के ताड़मेटला नक्सली हमले को 11 साल हो गए हैं. लेकिन इस हमले में शहीद जवानों के परिवार का दर्द और दुख कम नहीं हुआ है. 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा के ताड़मेटला नक्सल हमले में 76 जवान शहीद हुए थे. उन शहीदों में उत्तराखंड के CRPF जवान शहीद ललित कुमार भी थे. जिन्होंने नक्सलियों से लोहा लेते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे.

story of lalit kumar family of haridwar uttarakhand who martyred in tadmetla naxal attack
शहीद जवान का परिवार

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Published : Apr 9, 2021, 10:53 PM IST

हरिद्वार :छत्तीसगढ़ के ताड़मेटला नक्सली हमले को 11 साल हो गए हैं. लेकिन इस हमले में शहीद जवानों के परिवार का दर्द और दुख कम नहीं हुआ है. 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा के ताड़मेटला नक्सल हमले में 76 जवान शहीद हुए थे. उन शहीदों में उत्तराखंड के CRPF जवान शहीद ललित कुमार भी थे. जिन्होंने नक्सलियों से लोहा लेते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे.

ताड़मेटा हमले में शहीद जवान ललित कुमार के पिता का दर्द

उत्तराखंड के भगवानपुर इलाके के माहेश्वरी गांव के रहने वाले शहीद ललित कुमार अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े थे. शहीद ललित कुमार के पिता विनोद कुमार बताते हैं कि उन्होंने अपनी जमा-पूंजी लगाकर बेटो को पढ़ाया-लिखाया और सीआरपीएफ में भर्ती कराया. सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक 7 अप्रैल 2010 की सुबह उन्हें सूचना मिली की छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर दिया.उनके पास खबर आई कि उनके बेटे ललित कुमार भी शहीद हो गए हैं. बेटे के शहीद होने की खबर ने सबको झंकझोर कर रख दिया था.

शहीद ललित कुमार और उनकी पत्नी सुदेश देवी

बेटे की शहादत पर गर्व

शहीद ललित कुमार के पिता विनोद कुमार को 6 अप्रैल का वो दिन जब भी याद आता है तो उनकी रूह कांप उठती है. विनोद कुमार बताते हैं कि बेटे की याद उन्हें हर रोज सताती है. शहीद ललित कुमार की दो संतान है, बड़ी बेटी अंशु और छोटा बेटा अंशुल दोनों बच्चों के साथ ललित की पत्नी सुदेश देवी परिवार के साथ रहती हैं. बेटे के चले जाने के बाद पूरा परिवार सदमे से उभर नहीं पाया. शहीद के पिता को अपने बेटे की शहादत पर गर्व है. वे कहते हैं कि आज भी उन्हें देखकर लोग कहते हैं कि देखो शहीद ललित कुमार के पिता जा रहे हैं.

शहीद जवान का परिवार

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सरकार ने नहीं किए वादे पूरे

शहीद ललित कुमार के पिता विनोद कुमार ने बताया कि सरकार ने शहीद ललित कुमार के नाम से गैस एजेंसी या पेट्रोल पंप देने का वादा किया था, जो आजतक नहीं मिला. नेताओं ने शहीद ललित के नाम पर स्कूल बनवाने की घोषणा भी की थी, जो अब तक नहीं बन पाया है. हालांकि उत्तराखंड सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय सुरेंद्र राकेश ने शहीद ललित कुमार की एक मूर्ति की स्थापना जरूर की थी. वहीं गांव में प्रवेश द्वार भी बनवाया गया है. इसके बाद भी तमाम वादे पूरे नहीं किए गए.

सीआरपीएफ जवान ललित कुमार

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रेडियो पर सुनी थी खबर

शहीद ललित कुमार के छोटे भाई श्रवण कुमार ने बताया की घटना के दिन उन्होंने एफएम रेडियो पर खबर सुनी थी. हालांकि उसमें उन्हें भाई के शहीद होने की जानकारी नहीं मिल पाई थी, जिसके बाद अलग-अलग माध्यमों से जानकारी जुटाई गई. अगले दिन उन्हें भाई के शहीद होने की खबर मिली. उन्होंने बताया भाई को खोने का गम आज भी उन्हें सताता है. भाई जब ड्यूटी से छुट्टी पर गांव आते थे तो सबके साथ खेती-बाड़ी का काम भी संभालते थे. श्रवण कुमार ने बताया कि उनके भाई की शहादत के बाद उत्तराखंड के सीएम डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने हरिद्वार विधायक मदन कौशिक को गांव भेजा था. उसके बाद से सरकार का कोई नुमाइंदा उनकी सुध लेने नहीं आया. श्रवण कुमार बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कई बार उनका दर्द बांटने जरूर गांव आए थे.

शहीद जवान ललित कुमार

इतिहास का सबसे बड़ा नक्सली हमला

6 अप्रैल 2010 को को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में नक्सल इतिहास का सबसे बड़ा हमला हुआ था. नक्सलियों ने सीआरपीएफ जवानों पर हमला किया था, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे. यह हमला तब हुआ जब स्थानीय पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 80 से अधिक जवान एक टीम के तहत बस्तर आदिवासी क्षेत्र में सर्च ऑपरेशन में जुटे थे. इस हमले में उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली, असम, केरल, पश्चिम बंगाल समेत आंध्र प्रदेश के जवान शहीद हुए थे.

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