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SPECIAL : कोरोना संक्रमण के डर से नहीं मिल रहे यात्री, खाली जा रही बसें

छत्तीसगढ़ सरकार ने परिवहन सेवा के तहत सशर्त नियमों के साथ बस चलाने की अनुमति तो दे दी है, लेकिन कोरोना के डर से लोग सार्वजनिक वाहनों में यात्रा करने से कतरा रहे हैं. ऐसे में इन बस संचालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. यात्रियों की कमी की वजह से कई बार बसों को खाली ही चलाना पड़ता है.

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Published : Jul 18, 2020, 12:44 PM IST

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रायपुर:लॉकडाउन में बहुत से व्यवसाय प्रभावित हुए हैं. इस दौरान ट्रांसपोर्ट बिजनेस पर भी खासा प्रभाव पड़ा है. बसों के पहिए थम गए हैं. यात्रियों पर निर्भर रहने वाले बस संचालक, ड्राइवर, कंडक्टर के सामने आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ है. बस परिचालन की अनुमति मिलने के बाद भी चालकों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है. बस के पहिए तो चल पड़े हैं, लेकिन यात्री अब भी इससे दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में बस संचालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है.

बस संचालक परेशान

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कोरोना संक्रमण की वजह से लोग सार्वजनिक जगहों से दूरी बनाए हुए हैं. इन हालातों में कई सेवाएं ठप हो गई हैं. बस सेवाएं भी इस दौरान खासी प्रभावित हुई हैं. राज्य सरकार ने 5 जुलाई से बस संचालन की अनुमति तो दी थी, लेकिन कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए बस का संचालन कर पाना बस ऑपरेटरों के लिए एक चुनौती बन गया है. बस में यात्रियों की संख्या घट गई है. एक बस में सिर्फ 12 से 15 यात्री ही बैठ रहे हैं. बस संचालकों के पूरे रुपए गाड़ी के सैनिटाइजेशन और पेट्रोल भरवाने में ही खर्च हो जा रहे हैं. उनके पास वेतन देने के लिए भी रुपए नहीं बच पा रहे हैं.

यात्रियों की संख्या घटी

बसों की संख्या हुई कम

बसों की संख्या भी पहले की तुलना में काफी कम हो गई है. राजधानी के पंडरी बस स्टैंड से सामान्य दिनों में 10 मिनट के अंतराल पर बसों का संचालन होता है. सरकार से अनुमति मिलने के बाद और बस ऑपरेटरों की सहमति के साथ ही बसों का संचालन तो हो रहा है, लेकिन यात्री नहीं मिलने से बसों की संख्या घट गई है. अब 3 से 4 घंटे में एक बस स्टैंड से निकल पाती है.

बस स्टैंड

चालक-परिचालक की नहीं हुई परेशानी कम

बस चालक और परिचालकों की परेशानी अब भी जस की तस है. लॉकडाउन के दौरान चालक आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे, अब जब बस चल पड़ी है, तब भी संचालकों को इतना मुनाफा नहीं हो पा रहा है कि वे चालकों और परिचालकों को ढंग से वेतन दे सकें. ड्राइवर और कंडक्टर 19 मार्च से बरोजगार बैठे हुए हैं. इस स्थिति में उनके लिए घर चला पाना बहुत मुश्किल हो गया है. चालक लगातार सरकार से आर्थिक सहायता की मांग कर रहे हैं. ड्राइवरों की मानें तो वे पूरी तरह कर्ज में डूब गए हैं. उन्हें न तो सरकार से और न ही बस संचालकों से कोई मदद मिल पाई है. स्कूल-कॉलेज बंद होने की वजह वहां की बसें भी संचालित नहीं हो रही हैं. रोजगार का उनका ये रास्ता भी बंद हो गया है.

बस कर्मचारी

मार्च से नहीं मिला वेतन

प्रदेश में लगभग 12 हजार बसें संचालित होती थीं और इन बसों में काम करने वाले ड्राइवर, कंडक्टर और हेल्पर की संख्या लगभग डेढ़ लाख है. बस में काम करने वाले इन कर्मचारियों को मार्च माह के बाद से वेतन नहीं दिया गया है.

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