रायपुरःराज्यपाल अनुसुईया उइके को झीरम घाटी जांच आयोग की रिपोर्ट सौंपी गई. यह रिपोर्ट आयोग के सचिव एवं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) संतोष कुमार तिवारी ने सौंपी. यह प्रतिवेदन 10 वाल्यूम और 4184 पेज में तैयार की गई है. यह आयोग छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में गठित की गई थी. श्री मिश्रा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (Acting Chief Justice) भी थे तथा वर्तमान में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of High Court) हैं. वहीं, सीएम समेत, मोहन मरकाम ने सीधे राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपे जाने पर कई सवाल खड़े किए हैं.
राज्यपाल को जांच रिपोर्ट सौंपने पर सियासी घमासान तेज
राज्य सरकार ने सिटिंग जज की अध्यक्षता में साल 2013 में जांच आयोग का गठन किया. जून 2021 में यह पत्र आया कि जांच आयोग को अंतिम मौका दिया गया. सितंबर महीने में जांच आयोग को और समय देने की बात सामने आई. इस बीच जस्टिस मिश्रा का ट्रांसफर हो गया. इसके बाद हमने विधि विभाग से सलाह मांगी. इस आयोग के सचिव की तरफ से बार-बार समय की मांग की जा रही है. अब उसकी रिपोर्ट सौंपी गई है. समाचार पत्रों से जानकारी मिली की राज्यपाल महोदया को यह रिपोर्ट सौंप दी गई. यह जानकारी हमे राजभवन से नहीं मिली है. अब तक राज्य सरकार ने सात या आठ जांच आयोग का गठन राज्य सरकार की तरफ से किया है. मान्य परिपाटी ये है कि, जांच आयोग की रिपोर्ट को राज्य सरकार को सौंपी जाती है. फिर एक्शन टेकन रिपोर्ट के साथ इसे विधानसभा में पेश किया जाता है. इस बार ऐसा नहीं हुआ. राज्यपाल महोदया को रिपोर्ट सौंपी गई है. ये जानकारी भी हमें मीडिया के माध्यम से मिली है. तो इसका अर्थ यह है कि यह जांच रिपोर्ट आधी अधूरी है.
मान्य परिपाटी का हुआ उल्लंघन
हमने पहले ही कहा था कि इस मामले में विधि विभाग से अभिमत लिया जा रहा है. इसी बीच जांच रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी गई. इसका मतलब है कि, जांच पूरी नहीं हो पाई है. इस पूरे मामले में मान्य परिपाटी का उल्लंघन हुआ है. राज्य सरकार को रिपोर्ट मिलने के बाद इसे विधानसभा में पेश किया जाता है. आयोग घटना स्थल पर जाकर जांच नहीं कर सकता. यह जांच एजेंसियां करती है.
केंद्र की जांच पर सीएम ने उठाए सवाल
एनआईए की जांच पर भी सीएम ने सवाल उठाए उन्होंने कहा कि कई बार हमने केंद्र से यह जांच वापस मांगी. इस केस में भारत सरकार किस को बचाना चाहती है. केंद्र सरकार से केस डायरी वापस मांगी राज्य सरकार ने ही उसे NIA को दिया था और NIA जांच पूरी कर चुकी थी. अनेक बार पत्राचार के बाद भी, गृह मंत्री के साथ कई बैठकों के बाद भी केंद्र सरकार ने केस वापस नहीं किया. हमें तो न्याय चाहिए. आप जांच नहीं कर सकते तो हमें जांच करने दीजिए. केंद्र सरकार यह केस नहीं दे रही है. खुद NIA कोर्ट ने कहा था, सरेंडर के बाद आंध्र प्रदेश की जेल में बंद नक्सली नेता गुडसा उसेंडी का बयान लिया जाना चाहिए. उसके बाद भी NIA ने आज तक गुडसा उसेंडी से पूछताछ क्यों नहीं की?
इतना ही नहीं सीएम भूपेश बघेल ने सवाल उठाया कि झीरम नक्सली हमले में केंद्रीय जांच ऐजेंसियों ने षडयंत्र के पहलू पर जांच नहीं की. इससे पहले भी कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण हुआ. बाद में भी कई लोगों को नक्सलियों ने किडनैप किया. सरकार से बातचीत के बाद उन्हें छोड़ा गया. ऐसे में जब नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल को नक्सली पकड़कर ले गए तो उन्हें गोली क्यों मार दी गई. इन सब सवालों के जवाब अब तक नहीं मिल सके हैं.
मोहन मरकाम ने भी उठाए सवाल
झीरम आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपने पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं. पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने कहा कि जांच रिपोर्ट सरकार के बदले राज्यपाल को सौंपकर नियम का उल्लंघन किया गया है. यह राज्यपाल को सौंपना ठीक नहीं है. तीन महीने में रिपोर्ट सौंपना था. लेकिन इसे तैयार करने में 8 साल लग लगए. इस रिपोर्ट में ऐसा क्या है जिसे छिपाने का प्रयास किया जा रहा है. मरकाम ने कहा कि झीरम कांड देश का सबसे बड़ा राजनीतिक षडयंत्र था. NIA की जांच भी संदिग्ध थी. विधानसभा में चर्चा के बाद कोई भी रिपोर्ट सार्वजनिक होती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.