रायपुर : छत्तीसगढ़ से करीब 17 वर्ष पहले , पलायन कर पड़ोसी राज्यों में चले गए ग्रामीणों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है . पहले चरण में करीब 100 लोगों का नाम प्रशासन को सौप दिया गया है, जो अपने घर वापस आना चाहते हैं. प्रशासन स्तर पर इन परिवारों के पुनर्वास के लिए कार्ययोजना भी बना ली गई है. छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके से ग्रामीणों ने नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए, "सलवा जुडूम अभियान'' (Salwa Judum Campaign) के दौरान, अपना गांव छोड़कर , पड़ोसी राज्यों में शरण ली थी
क्या है सलवा जुड़ूम : छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर में , जून 2005 में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम अभियान की शुरुआत हुई थी. सलवा जुडूम गोंडी बोली का शब्द है जिसका हिंदी अर्थ "शांति मार्च " या " शांति का कारवां " है. सलवा-जुडूम अभियान को शुरू करने में छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी के कद्दावर आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा की अहम् भूमिका थी. इस अभियान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी संरक्षण भी प्राप्त था . सलवा जुडूम अभियान के तहत बस्तर के ग्रामीणों को नक्सलियों का सीधा सामना करने के लिए प्रेरित किया गया . लेकिन कुछ अरसे बाद सलवा जुड़ुम में शामिल ग्रामीणों पर, स्थानीय आदिवासियों का ही शोषण और उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप लगने लगा . नक्सलियों के सफाए के लिए चलाए गए अभियान का उसी आधार पर ,मानवाधिकार संगठनों ने भी विरोध किया . मामला कोर्ट तक पहुंचा, जिसमें 5 जुलाई 2011 को सर्वाच्च न्यायालय ने इस अभियान को समाप्त करने का आदेश जारी किया .
झीरम कांड और सलवा जुड़ूम का कनेक्शन : छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला किया गया . हमले में कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा सहित 32 नेताओं और जवान शहीद हो गए थे. माओवादियों ने उस हमले को सलवा जुडूम का बदला करार दिया था.
सलवा जुड़ूम से तनाव : साल 2005 से 2011 तक चले सलवा जुडूम अभियान से, क्षेत्र में बढ़े तनाव की वजह से, बस्तर के करीब 644 गांव पूरी तरह खाली हो गए. ग्रामीणों को अपनी जान बचाने के लिए पड़ोसी राज्यों में शरण लेनी पड़ी . करीब 17 वर्ष बाद भी बस्तर के विस्थापित ग्रामीण, आज भी अपने राज्य में नहीं लौट पाए हैं . हालांकि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार (Chief Minister Bhupesh Baghel) ने इस विषय को गंभीरता से लेते हुए इनके पुनर्वास की दिशा में काम करने की पहल की है , जो इन विस्थापितों के लिए, अंधेरे में दिखी रौशनी की तरह है .
घर वापसी के लिए पहल : पिछले दिनों आदिवासी ग्रामीणों के प्रतिनिधि मंडल ने , सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी के साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की थी . इस मुलाकात के दौरान प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री बघेल से ,बस्तर के पलायन कर चुके आदिवासियों को, पुनर्वास देने का आग्रह किया था . तब मुख्यमंत्री ने कहा था, कि सलवा जुडूम के दौरान अन्य प्रदेशों में पलायन कर चुके, छत्तीसगढ़ के लोग यदि वापस आना चाहते हैं, तो राज्य सरकार उनका दिल से स्वागत करने को तैयार है.
पहले चरण में 100 लोगों के नाम : छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल ने संबंधित अधिकारियों को , वापस आने की इच्छा रखने वाले ग्रामीणों की सूची तैयार करने के भी निर्देश दिए थे . सामाजिक कार्यकर्ता सुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि, मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद, बस्तर संभाग आयुक्त को पहले चरण के लिए 100 ऐसे ग्रामीणों की सूची दी गई है, जो अन्य राज्यों से, छत्तीसगढ़ लौटना चाहते हैं . सामाजिक कार्यकर्ता सुभ्रांशु (Social Worker Subhranshu) ने बताया कि अधिकारियों ने भी कहा है कि जो भी आदिवासी प्रदेश लौटना चाहते हैं, उनके लिए मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार पुनर्वास की पूरी व्यवस्था की जाएगी.
घर वापसी पर अब लेटर वॉर : घर वापसी करने वाले आदिवासियों को लेकर, माओवादी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता सुभ्रांशु चौधरी अब खत के माध्यम से आमने-सामने हैं. दोनों ने ही एक दूसरे को खुला खत लिखा है .ईटीवी भारत को सूत्रों से प्राप्त हुए, एक कथित पत्र में, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने, सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी को उनके द्वारा, नक्सलियों के नाम, पूर्व में लिखे गए खुले खतों का जवाब दिया है. इस पत्र में दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता, विकल्प का हस्ताक्षर है. सूत्रों से मिली इस चिट्ठी में, सलवा जुडूम विस्थापितों को पुनर्वास दिलवाने के मामले का भी जिक्र हैं.
नक्सलियों के खत में क्या : इस खत में लिखा गया है कि .... शुभ्रांशु जी इस सच्चाई को झूठलाने की कोशिश ना करें कि, विस्थापितों में अधिकांश सलवा जुडूम पीड़ित है. जुडूम समर्थकों ने जिनके गांव, घर और संपत्ति को जला दिया था . जिनके परिवार के सदस्यों की पुलिस द्वारा हत्या की गई थी . यदि कोई यह कह रहा है , कि ये ,माओवादियों के भय से भाग गए थे ,तो यह बात गलत है. हमारी पार्टी ने तो सलवा जुडूम शिविरों में रहने वाली जनता से भी गांव में आकर रहने की अपील की थी. उन्हें गांव में वापस बसाया था . उन्हें उनकी जमीनें दी थी. इस खत में आगे यह भी कहा गया है कि माओवादियों के खिलाफ सरकारी दुष्प्रचार का हिस्सा मात्र है इसमें रत्ती भर सच्चाई नहीं है कि पलायन करने वाले ग्रामीण नक्सलियों के भय से वापस नहीं आ रहे हैं. माओवादियों के इस कथित खत में, दिल्ली बाइक रैली को भी, बस्तर वासियों को भटकाने के लिए शुभ्रांशु चौधरी की नाकाम कोशिश बताया गया है. .
दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प का पत्र दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प का पत्र दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प का पत्र नक्सलियों के खत का जवाब : नक्सलियों के कथित खत के जवाब में, सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी ने भी एक पत्र दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प उर्फ विजय के नाम लिखा है. जिसमें शुभ्रांशु चौधरी ने जिक्र किया है कि कुछ विस्थापित परिवारों ने सीएम भूपेश के पास आवेदन किया था. जिसमे सीएम की घोषणा का जिक्र था. इस घोषणा में विस्थापितों को, शांत जगह में खेती और रहने की जमीन देने की बात कही गई थी. लेकिन घर वापसी करने वाले परिवार माओवादी पार्टी से यह आश्वासन चाहते हैं कि, यदि वे छत्तीसगढ़ लौटते हैं तो उनको कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाए. शुभ्रांशु चौधरी ने कथित माओवादी नेट से सवाल किया है कि ,क्या आप इस आशय का एक प्रेस नोट जारी कर सकते हैं, ताकि वापस लौटने वाले अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें ?बहरहाल विस्थापन का दंश झेल रहे , बस्तर के ग्रामीणों को उम्मीद है कि, जल्द ही राज्य सरकार अपने वायदे के हिसाब से, उनके पुनर्वास के लिए पहल करेगी और वे अपने प्रदेश में लौट पाएंगे.