रायपुर: शतभिषा नक्षत्र, कौलव करण और कुंभ राशि के साथ गुरु के शुभ प्रभाव में 17 अक्टूबर को प्रदोष व्रत मनाया जाएगा. रविवार को होने की वजह से इसे रवि प्रदोष (Ravi Pradosh ) कहा जाता है. इसी दिन पद्मनाभ द्वादशी (Padmanabha Dwadashi) भी है. रात्रि को चंद्रमा का आगमन मीन राशि में होगा. यह प्रवेश रात्रि लगभग 4.32 बजे होगा. इस दिन प्रबल गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है. यह रवि प्रदोष व्रत सामान्य प्रदोष की तुलना में अधिक उत्तम है.
ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री पंडित विनीत शर्मा (Astrologer and Vastu Shastra Pandit Vineet Sharma) ने बताया कि रवि प्रदोष के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान ध्यान व योग से निवृत्त होकर तांबे के पात्र में रोली, कुमकुम, जल, लाल पुष्प डालकर भगवान सूर्य देव की उपासना करनी चाहिए. भगवान भास्कर को सूर्य को दिया जाने वाला यह दान बहुत ही प्रिय है. इस दिन भानु देवता को पूर्व दिशा की ओर मुख करके अर्ध्य दिया जाता है.
इस तरह करें भगवान शिव की पूजा
भगवान भोले शंकर बहुत जल्द प्रसन्न होने वाले भगवान हैं. भगवान भोलेनाथ (Lord Bholenath) को शमी पत्र, बेलपत्र, दूध, सफेद पुष्प, चंदन, कुमकुम, अबीर, हल्दी, शुद्ध घी, शहद से अभिषेक किया जाना चाहिए. महारुद्र को जल, गंगाजल, नर्मदा जल, पंचामृत, दुग्ध, गन्ने का रस आदि से अभिषेक करना बहुत ही शुभ माना जाता है. भगवान शंकर का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए इस दिन शिव चालीसा, शिव तांडव, महामृत्युंजय मंत्र, शिव संकल्प मंत्र, शिव नमस्कार मंत्र आदि का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए. भगवान भोलेनाथ जी को दही, सफेद अक्षत आदि चीजें विशेष प्रिय हैं, श्री भोलेनाथ जी के महामृत्युंजय मंत्र का पाठ (recitation of mahamrityunjaya mantra) करना कल्याणकारी माना गया है.