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पुण्यतिथि पर पढ़ें : छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद की कहानी, कैसे बनीं मीनाक्षी से मिनी माता - history of mini mata

छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद मिनीमाता की पुण्यतिथि पर लोगों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी. राजनेताओं से लेकर आम जनता ने तक उन्हें उनकी समाज सेवा के लिए याद किया.

मिनी माता/mini mata

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Published : Aug 11, 2019, 2:35 PM IST

रायपुर :मां, ये एक ऐसा शब्द है, जिसकी सेवा और प्यार का कभी अंत नहीं होता. वह निस्वार्थ भाव से सबका ख्याल रखती है. अपनी जरूरतों को भूलाकर अंत तक परिवार की सेवा में अपनी जिंदगी न्योछावर कर देती है. ऐसी ही एक माता थीं छत्तीसगढ़ की मिनाक्षी देवी.

उन्हें पूरा छत्तीसगढ़ मिनी माता के नाम से पुकारता है. उनका स्वाभाव और सेवाभाव ही पहचान रही, जिसने सभी का दिल जीत लिया. वह छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद थी. उनकी पुण्यतिथि पर सभी प्रदेशवासियों ने उन्हें श्रध्दांजलि दी है.

मिनी माता आज भले ही हमारे बीच न हो, लेकिन समाज उनके सिद्धांतों को याद कर उसे अपनी जीवन में पिरोया हुआ है. मिनी माता ने राजनीति में भी समाज सेवा का भाव खोज लिया.

सबकी मदद के लिए रहती थीं तैयार
मिनी माता वो शख्सियत थीं, जो अपनी जरूरतों को भूल दूसरों की जरूरतें पूरी करने में हमेशा आगे रहती थीं. जिनकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आता था तो वह उसकी मदद के लिए हमेशा खड़ी रहती थीं.

कैसे बनीं मिनी माता

  • मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था. वह असम में अपनी मां देवमती के साथ रहती थीं. उनके पिता सगोना नाम के गांव में मालगुजार थे.
  • छत्तीसगढ़ में साल 1897 से 1899 में भीषण अकाल पड़ा. इस दौरान मिनी माता का परिवार रोजी रोटी की तलाश में छत्तीसगढ़ से पलायन कर असम चला गया.
    महिला सांसद मिनीमाता
  • मीनाक्षी ने असम में मिडिल तक की पढ़ाई की. साल था 1920. उस वक्त स्वदेशी आंदोलन चल रहा था और उसी वक्त मिनी स्वदेशी पहनने लगी थीं.
  • विदेशी सामान की होली भी जलाई गई थी. उस वक्त गद्दीआसीन गुरु अगमदास जी गुरु गोंसाई (सतनामी पथ) प्रचार के लिए असम पहुंचे थे.
  • मिनी की माता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. इस तरह मीनाक्षी देवी मिनीमाता बन गईं और वापस छत्तीसगढ़ आ गईं.

राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदार रहीं

  • अगमदास गुरु राष्ट्रीय आंदोलन में भाग ले रहे थे. उनका रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बन गया था.
  • पंडित सुंदरलाल शर्मा, डॉक्टर राधाबाई, ठाकुर प्यारेलाल सिंह सभी उनके घर आते थे. अगमदास गुरु के कारण ही सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया.

अंधविश्वास के खिलाफ किया जागरूक

  • मिनी माता ने छुआछूत मिटाने से लेकर अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक किया है.
  • उन्हें जानने वाले कहते हैं कि सादगी उनके दिल में थी और व्यक्तित्व में छलकती थी.
  • मिनी माता का घर हर समाज और तबके के लिए खुला रहता था.

काम के प्रति थीं समर्पित

  • साल 1951 में गुरु अगमदास के देहांत के बाद मिनीमाता पर पूरी जिम्मेदारी आ गई.
  • घर संभालने के साथ-साथ वे समाज के काम भी करती रहीं. उनके बेटे विजय कुमार की उम्र उस वक्त बहुत कम थी.
  • 1952 में वे प्रदेश की पहली महिला सांसद बनीं. कहते हैं कि जब तक वो अपना काम पूरा नहीं कर लेती थीं, परेशान रहती थीं.

नारी शिक्षा के लिए अग्रसर

  • नारी शिक्षा के लिए उन्होंने विशेष काम किया. बहुत सी लड़कियां उनके पास रहकर पढ़ाई करती थीं.
  • वे जिन लड़कियों में पढ़ाई के प्रति रुचि देखतीं, उनके लिए उच्च शिक्षा का बंदोबस्त करतीं. उनकी पढ़ाई हुई लड़कियों में कुछ डॉक्टर, कुछ प्रोफेसर और कुछ जज तक बनीं.

विमान दुर्घटना में निधन

  • मिनीमाता सांस्कृतिक मंडल की अध्यक्ष रहीं. भिलाई में छत्तीसगढ़ कल्याण मजदूर संगठन की संस्थापक रहीं. कहा जाता है कि बांगो बांध का निर्माण भी उन्हीं की वजह से संभव हुआ.
    महिला सांसद मिनीमाता
  • कहते हैं कि ठंड में वे इस बात का ख्याल रखती थीं कि सबके पास उचित उपाय हो.
  • साल 1972 में एक विमान दुर्घटना में मिनीमाता का निधन हो गया.

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