रायपुर :मां, ये एक ऐसा शब्द है, जिसकी सेवा और प्यार का कभी अंत नहीं होता. वह निस्वार्थ भाव से सबका ख्याल रखती है. अपनी जरूरतों को भूलाकर अंत तक परिवार की सेवा में अपनी जिंदगी न्योछावर कर देती है. ऐसी ही एक माता थीं छत्तीसगढ़ की मिनाक्षी देवी.
उन्हें पूरा छत्तीसगढ़ मिनी माता के नाम से पुकारता है. उनका स्वाभाव और सेवाभाव ही पहचान रही, जिसने सभी का दिल जीत लिया. वह छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद थी. उनकी पुण्यतिथि पर सभी प्रदेशवासियों ने उन्हें श्रध्दांजलि दी है.
मिनी माता आज भले ही हमारे बीच न हो, लेकिन समाज उनके सिद्धांतों को याद कर उसे अपनी जीवन में पिरोया हुआ है. मिनी माता ने राजनीति में भी समाज सेवा का भाव खोज लिया.
सबकी मदद के लिए रहती थीं तैयार
मिनी माता वो शख्सियत थीं, जो अपनी जरूरतों को भूल दूसरों की जरूरतें पूरी करने में हमेशा आगे रहती थीं. जिनकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आता था तो वह उसकी मदद के लिए हमेशा खड़ी रहती थीं.
कैसे बनीं मिनी माता
- मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था. वह असम में अपनी मां देवमती के साथ रहती थीं. उनके पिता सगोना नाम के गांव में मालगुजार थे.
- छत्तीसगढ़ में साल 1897 से 1899 में भीषण अकाल पड़ा. इस दौरान मिनी माता का परिवार रोजी रोटी की तलाश में छत्तीसगढ़ से पलायन कर असम चला गया.
- मीनाक्षी ने असम में मिडिल तक की पढ़ाई की. साल था 1920. उस वक्त स्वदेशी आंदोलन चल रहा था और उसी वक्त मिनी स्वदेशी पहनने लगी थीं.
- विदेशी सामान की होली भी जलाई गई थी. उस वक्त गद्दीआसीन गुरु अगमदास जी गुरु गोंसाई (सतनामी पथ) प्रचार के लिए असम पहुंचे थे.
- मिनी की माता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. इस तरह मीनाक्षी देवी मिनीमाता बन गईं और वापस छत्तीसगढ़ आ गईं.