गोरखपुर:साल 2010 में हुए ताड़मेटला नक्सली हमले में बघराई गांव के लाल प्रवीण राय शहीद हो गए थे. अपने माता-पिता की तीन संतानों में सबसे बड़े प्रवीण ने देश सेवा की शपथ लेते हुए वर्ष 2002 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ज्वॉइन की थी. नौकरी के 8 साल ही हुए थे कि उन्होंने अपना सबसे बड़ा फर्ज निभाते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया. नक्सली हमले में लड़ते-लड़ते अपनी जान कुर्बान कर दी. वो दिन याद करते ही परिवार दर्द में डूब जाता है. वो बच्चा रो पड़ता है, जो अपनी पिता की शहादत के वक्त मां की कोख में था.
किसान पिता के बेटे के दिल में सेना में शामिल होने का सपना था. बेटे की चाह देखते हुए पिता से जो बना वो किया. जिस दिन प्रवीण राय का चयन सीआरपीएफ में हुआ, पूरे परिवार में खुशी का माहौल था. प्रवीण अपने घर में कमाने वाले इकलौते सदस्य थे. उनकी कमाई से ही संयुक्त परिवार की गुजर-बसर हो रही थी. 6 अप्रैल 2010 का दिन इस परिवार पर आफत बनकर टूटा. खबर आई कि नक्सली हमले में उनके घर का चिराग शहीद हो गया है. गम और गर्व के बीच परिवार अपना आंसू पोछता रहा. 11 साल बीत गए हैं लेकिन प्रवीण के जाने का दर्द उनकी चौखट पर साफ नजर आता है.
शहीद के आखिरी शब्द: 'मैं रहूं न रहूं, तुम बच्चों का ख्याल रखना...'
प्रवीण राय के परिवार के आंसू आज तक नहीं सूखे हैं. जब वे शहीद हुए, तब उनकी पत्नी 7 महीने के गर्भ से थीं. शहादत के 2 माह बाद उनका बेटा दिव्यांशु पैदा हुआ. जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया अपने पिता के बारे में परिवार के लोगों और अपनी मां से सुनता रहा. दिव्यांशु को अपने पिता की वीरता पर गर्व है. लेकिन पिता के प्यार को न पाने का मर्म भी उसके दिल में छिपा हुआ है. जब भी कोई उससे पिता के बारे में पूछता है दिव्यांशु फफक पड़ता है. ETV भारत से बात करते वक्त शहीद का बेटा रो पड़ा और रुंधे गले से कहा कि वो आईएएस (IAS) बनना चाहता है. दिव्यांशु कहता है कि 'मैं अपने पिता का सपना आईएएस बनकर पूरा करूंगा और देश सेवा करूंगा'