रायपुर:खेलो इंडिया यूथ गेम्स में केरल के 3000 साल पुराने युद्ध कला मार्शल आर्ट "कलरिपयतु खेल" में हिस्सा लेने के लिए छत्तीसगढ़ के 10 खिलाड़ियों का चुना गया है. जल्दी यह खिलाड़ी यूथ गेम्स में हिस्सा लेने के लिए हरियाणा पंचकूला के लिए रवाना हो जाएंगे. छत्तीसगढ़ से कुल 10 खिलाड़ियों का चयन इस खेल के लिए हुआ (chhattisgarh players in kalaripayatu game) है. जिसका आयोजन खेलो इंडिया युथ गेम्स में 10 से 12 जून के मध्य खेला जाएगा. 3000 साल पुरानी युद्ध कला मार्शल आर्ट कलरिपयतु खेल की क्या विशेषता है? किस तरह इस खेल को खेला जाता है? किन हथियारों का इस्तेमाल कर इस खेल को खेला जाता है? इस बारे में ईटीवी भारत में कलरिपयतु के कोच कमलेश देवांगन और कुछ खिलाड़ियों से बातचीत की.
कलरिपयतु खेल का जलवा बिखेरेंगे छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी क्या है ''कलरिपयतु खेल''? : कलरिपयतु कोच कमलेश देवांगन ने बताया "कलरिपयतु खेल केरल , कर्नाटक और तमिलनाडु के बॉर्डर पर रह रहे समुदाय का प्राचीन और प्रचलित खेल (kerla kalaripayatu game) है. कलरिपयतु को कलरीपायट्टु भी कहा जाता है. कलरीपायट्टु दो शब्द को मिलाकर बनाया गया है. पहला कलरी जिसका मतलब स्कूल या व्यायामशाला. वहीं दूसरा शब्द पयट्टू का मतलब होता है युद्ध करना. कलरिपयतु एक ऐसी कला है जिसे सीखने में सालों लग जाते हैं . यह कला सिर्फ शारीरिक चुस्ती फुर्ती तक ही सीमित नहीं है. बल्कि इसमें जीवनशैली और मानसिक चुनौती भी है. कलरिपयतु को लाठी , डंडे , तलवार , भला , ढाल से खेला जाता है"
कितने खिलाड़ी जाएंगे पंचकुला : कलरिपयतु कोच कमलेश देवांगन ने बताया " खेलो इंडिया यूथ गेम्स में कलरिपयतु खेल के लिए छत्तीसगढ़ से 10 खिलाड़ियों का चयन हुआ है. जिसमें 6 बालिका और 4 बालक हैं. जिसमें प्रिया सिंह भदौरिया , मिशा और बृजकिशोर कोरबा से हैं। उषा चौधरी , प्रियांशु , साधिके दुबे (बालोद) , कनिष्का श्रीवास (रायपुर) , मनीष साहू (दुर्ग) , सुमित राजपूत (बिलासपुर) , यशवंत पांडे (बस्तर) से है। फिलहाल खेलो इंडिया यूथ गेम्स के कलरिपयतु खेल में हम सिर्फ 4 इवेंट में भाग ले रहे हैं। चुवदुक्कल , लोंग स्टिक , हाई किक और उरुमी."
सबसे पुरानी मार्शल आर्ट कला :कलरिपयतु को दुनिया की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट तकनीक माना जाता (the oldest martial art kariyapatu) है. इस कला की उत्पत्ति दक्षिण भारत के केरल में हुई. यह विश्व की पुरानी युद्ध कलाओं में से एक है. कलरिपयतु की व्याख्या पौराणिक ग्रंथों में भी की गई है. माना जाता है कि इसका जन्म धनुर्वेद से हुआ है. धारणाओं के अनुसार कलरिपयतु सदियों पहले इसका ईजाद हो गया है. यह भी कहा जाता है कि इस कला को दुनिया के सामने लाने वाले और उन्हें सिखाने वाले व्यक्ति भगवान विष्णु के आठवें अवतार "परशुराम" हैं.
कलरिपयतु खेल के लिए सही डाइट है जरूरी :कलरिपयतु एक ऐसा मार्शल आर्ट है जिसमें शारीरिक और मानसिक कसरत काफी ज्यादा होती है. इसके लिए सही डाइट भी काफी जरूरी होता है. हाई प्रोटीन , विटामिंस और मिनरल्स वाले फल , रोटी , ड्राई फ्रूट्स बच्चों को दिए जाते हैं. जैसे सोयाबीन , पनीर , दाल , दूध दही , मूंगफली , कद्दू के बीज , चना , हरी सब्जी दी जाती है ताकि बच्चों को ताकत ना (Things needed for the Kalaripayatu game ) हो.
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कलरिपयतु खेल में बढ़ रहा रुझान : ओलंपिक गेम्स के मार्शल आर्ट में पहले कलरिपयतु शामिल नहीं था. इस वजह से कलरिपयतु के बारे में काफी कम लोगों को पता था और काफी कम लोग इसकी प्रैक्टिस और ट्रेनिंग किया करते थे. लेकिन जैसे ही ओलंपिक गेम्स में इसे शामिल किया गया. तब से इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई और खिलाड़ी खेल की तरफ आकर्षित होने लगे. जितना यह खेल देखने में जितना आसान लगता है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है. छत्तीसगढ़ में 2018 के बाद से बहुत सारे खिलाड़ी इस खेल में रुचि दिखा रहे हैं. आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ से बहुत से अच्छे खिलाड़ी इस खेल के लिए तैयार है.