उज्जैन, रायपुर: हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण पितृ पक्षों (Pitru Paksha) की सोमवार से शुरुआत हो गई है. उज्जैन के रामघाट, सिद्धवट घाट में आज बड़ी संख्या श्रद्धालु अपने पितृ का तर्पण करने पंहुचेंगे. शिप्रा नदी (Shipra River) किनारे सिद्धवट घाट (Siddhavat Ghat) पर आने वाले श्रद्धालु सिर्फ अपना नाम और शहर का नाम बताकर अपनी पीढ़ियों का पता पंडितों से लगाते हैं और फिर अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं. इस आधुनिक युग में भी बिना कम्प्यूटर के 150 वर्ष पुराने पोथी पर काम कर रहे पंडित चुटकियों में श्रद्धालु के परिवार का लेखा जोखा सामने रख देते हैं. यही नहीं बल्कि कई बार इनकी पोथियों से कोर्ट के केस का भी निपटारा हुआ है. कोरोना के चलते कई श्रद्धालु जब उज्जैन के सिद्धवट और रामघाट पर नहीं आ पा रहे हैं, तो श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन ही तर्पण करना शुरू कर दिया है.
तर्पण का उज्जैन में है खासा महत्व
उज्जैन में भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए उतना ही महत्व है, जितना महत्व बिहार के गया (Shradh in Gaya) का है. इसके साथ ही रामघाट (Ramghat) पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है. भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी उज्जैन में ही किया था. पूर्णिमा तिथि पर गया कोठा मंदिर में हजारों लोग पूर्वजों के लिए जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करेंगे. शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है.
यहां देश के कोने-कोने से आत हैं लोग
धर्म शास्त्रों में अवंतिका नगरी (Avintka Nagari) के नाम से प्रख्यात उज्जैन शहर में श्राद्ध पक्ष के आरंभ होते ही देश के कोने-कोने से लोगों का आना शुरू हो जाता है. मोक्ष दायिनी शिप्रा नदी के तटों पर स्थित सिद्धवट पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए तर्पण व पिंडदान कराने पहुंचते हैं. शहर के अतिप्राचीन सिद्धवट मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. यहां लोग प्राचीन वटवृक्ष की पूजा–अर्चना कर पितृ शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.
सिद्धवट पर 16 दिनों तक चलेगा तर्पण
सिद्धवट घाट पर जो वट वृक्ष है, वह माता पार्वती ने लगाया था. इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी है. सिद्धवट पर पितरों के कर्मकांड व तर्पण का यह कार्य 16 दिनों तक चलता रहेगा. पितृ मोक्ष के लिए श्रद्धालु इन 16 दिनों की विभिन्न तिथियों में ब्राह्मण को भोजन दान, गाय दान, साथ ही गाय व कव्वौ को भोजन कराते हैं. मान्यता है कि उज्जैन में श्राद्ध करने से पितरों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.
150 साल का रिकॉर्ड यहां रखते हैं पंडित
उज्जैन में 150 साल पुराना रिकॉर्ड सभी पंडितों के पास है. कोई भी कम्प्यूटर नहीं चलाता है. इस युग में भी कुछ ही पलों में बही खाते में से पीढ़ियों का हिसाब सामने रख देते हैं. पंडित दिलीप गुरु के अनुसार 150 वर्ष पुराना रिकॉर्ड रखने के लिए किसी भी कम्प्यूटर (Computer) का सहारा नहीं लिया जाता है. सिर्फ पोथी में इंडेक्स, समाज का नाम, गांव या शहर का नाम या गोत्र बताने से ही पीढ़ी में कौन कब आया था और किसका तर्पण किया गया था, ये सब चुटकियों में पता चल जाता है. यही नहीं वर्षों पुराने इस बही खाते को तो कोर्ट भी मान्य करता है. भाई-भाई के जायदात के विवाद में कोर्ट (Court) ने भी इसे मान्यता दी है और कई बार फैसले भी बही खाते के आधार पर हुए हैं.