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शिविरों में समाधान! बस्तर के अंदरुनी क्षेत्रों तक पहुंच रही विकास की रोशनी - systematic and organized way

सालों से सुविधाओं से वंचित छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग (Bastar Division) में अब शासन की सेवाएं शिविरों के माध्यम से गांव-गांव तक पहुंच रही हैं. आधार कार्ड, राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड और पेंशन प्रकरणों के निराकरण के लिए सुविधा-शिविरों का आयोजन किया जा रहा है. जिसका लोग बढ़-चढ़ कर लाभ ले रहे हैं.

People are getting 'lash' from basic facilities
शिविरों में समाधान!

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Published : Sep 9, 2021, 9:11 PM IST

रायपुरः सालों से सुविधाओं से वंचित छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग (Bastar Division) में अब शासन की सेवाएं (government services) शिविरों के माध्यम से गांव-गांव तक पहुंच रही हैं. आधार कार्ड, राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड और पेंशन प्रकरणों के निराकरण के लिए सुविधा-शिविरों का आयोजन किया जा रहा है.

सुकमा जिले के संवेदनशील क्षेत्र (sensitive area) सिलेगर, मिनापा, सारकेगुड़ा में ऐसे ही शिविर का लाभ उठाने के लिए ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी. ग्रामीणों के उत्साह को देखते हुए प्रशासन (Administration) को शिविर (Camp) की निर्धारित अवधि में बढ़ोतरी करनी पड़ी है. सुकमा जिले के इन संवेदनशील क्षेत्रों (sensitive areas) के ग्रामीणों को विभिन्न तरह की सुविधाएं मुहैया कराने के लिए ग्राम सारकेगुड़ा में सुविधा शिविर (facility camp) का आयोजन किया गया.

शिविर स्थल तक ग्रामीणों को आने-जाने में परेशानी न हो, इसके लिए प्रशासन द्वारा वाहन (vehicle by administration) की व्यवस्था भी की गई थी. ग्राम मिनपा और सिलगेर के ग्रामीणों ने प्रशासन को अपनी समस्याओं से अवगत कराया था. जिनके त्वरित निराकरण के लिए इन क्षेत्रों में सुविधा-शिविर लगाया जा रहा है. आने वाले दिनों में अन्य गांवों में भी ऐसे ही शिविरों का आयोजन किया जाएगा.

अंदरुनी गांवों तक सुविधाओं की पहुंच रही है चुनौती

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अंदरुनी गांवों तक शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने लिए अपनाई गई कैंप-स्ट्रेटजी (camp strategy) काफी कारगर साबित हो रही है. बस्तर संभाग में सात जिले हैं. ये सातों जिले देश के आकांक्षी जिलों की सूची में शामिल हैं. जनजातीय बहुलता वाले सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, बस्तर (जगदलपुर) और कांकेर जिलों में भौगोलिक जटिलताओं और नक्सल गतिविधियों के कारण अंदरुनी गांवों तक सुविधाओं की पहुंच हमेशा चुनौती रही है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार ने संभाग के विकास के लिए परंपरागत तौर-तरीकों (traditional methods)से हटकर स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कैंप-स्ट्रेटजी (camp strategy) अपनाने का फैसला किया. शासन की यह नयी स्ट्रेटजी विकास (new strategy development), विश्वास और सुरक्षा के सिद्धांत (principles of trust and security) पर आधारित है. नक्सल प्रभावित अंदरुनी क्षेत्रों (naxal affected interior areas) में सुरक्षा का वातावरण (security environment) सुनिश्चित करने के लिए जगह-जगह सुरक्षा-बलों के कैंप (security forces camp) स्थापित किए गए.

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जन-सुविधाओं से संबंधित अन्य कैंपों के लिए खुला रास्ता

इन सुरक्षा-कैपों की वजह से जन-सुविधाओं से संबंधित अन्य कैंपों के लिए रास्ता खुल गया. मुख्यमंत्री हाट-बाजार क्लीनिक योजना (Haat-Bazaar Clinic Scheme) के मोबाइल क्लीनिकों (mobile clinics) के माध्यम से अब अंदरुनी क्षेत्रों (interior)के हाट-बाजारों में भी मेडिकल-कैंप लगने शुरु हो गए हैं, जहां निशुल्क जांच (free test), उपचार (treatment) और दवाइयों (medicines) की सुविधा ग्रामीणों को मिलने लगी है.

अंदरुनी क्षेत्रों में नक्सल उत्पात के कारण बंद पड़े सैकड़ों स्कूलों को दोबारा शुरु करने में कामयाबी मिली है. हिंदी माध्यम के इन परंपरागत स्कूलों में स्थानीय बोलियों में पढ़ाई शुरु होने के साथ-साथ जगह-जगह अंग्रेजी माध्यम स्कूल भी शुरु हो चुके हैं. इन अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का संचालन स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल योजना के तहत किया जा रहा है, जिनमें निजी स्कूलों (private schools) जैसी सुविधाओं के साथ हर छात्र को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है.

कोरोना काल में सबसे ज्यादा लघु वनोपजों का संग्रहण

कोरोना-काल में छत्तीसगढ़ ने देश में सबसे ज्यादा लघु वनोपजों का संग्रहण किया है. राज्य में सबसे ज्यादा लघु वनोपजों का संग्रह बस्तर संभाग के इन्हीं सातों जिलों में होता है. बेहतर रणनीति से अब ज्यादा व्यवस्थित और संगठित तरीके (systematic and organized way) से लघु वनोपजों का संग्रहण (collection of forest produce) हो रहा है. इनके संग्रहण से लेकर खरीदी तक का काम वनवासियों द्वारा ही किया जा रहा है. हाट-बाजारों में खरीदी कैंप लगाकर स्व-सहायता समूहों (self help groups) द्वारा इन वनोपजों की खरीदी की जा रही है.

शासन द्वारा लघु वनोपजों के मूल्य में बढ़ोतरी करने और समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाले लघु वनोपजों की संख्या 07 से बढ़ाकर 52 कर दिए जाने से ग्रामीणों का उत्साह बढ़ा है. बस्तर के जंगलों से इकट्ठा किए जा रहे, इन्हीं लघु वनोपजों की स्थानीय स्तर पर ही प्रोसेसिंग की जा रही है. इसमें लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार और लाभ मिल रहा है.

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