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National Tribal Dance Festival 2021: छत्तीसगढ़ को जानने और समझने का बेहतर माध्यम है यहां के नृत्य

28 से 30 अक्टूबर तक रायपुर में 3 दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव (National Tribal Dance Festival) शुरू होने जा रहा है. इस महोत्सव में सुर और ताल के जरिए आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी.

National Tribal Dance Festival
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

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Published : Oct 26, 2021, 1:22 PM IST

Updated : Oct 26, 2021, 1:43 PM IST

रायपुर: एक बार फिर पारंपरिक वाद्य यंत्रों, नृत्य मुद्राओं, भाव-भंगिमाओं और भावनाओं का संगम छत्तीसगढ़ में होने वाला है. 28 से 30 अक्टूबर तक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव (National Tribal Dance Festival 2021) का आयोजन राजधानी के साइंस कॉलेज मैदान में किया जा रहा है. इस महोत्सव में देशभर के अलग-अलग राज्यों के आदिवासी कलाकारों के साथ ही विदेशी कलाकार भी शामिल हो रहे हैं. साल 2019 में पहली बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया था. साल 2020 में कोरोना संकट के कारण ये महोत्सव नहीं हो पाया था. इस साल फिर से महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है.

छत्तीसगढ़ की अपनी एक खास संस्कृति और पहचान है. सरगुजा से लेकर बस्तर तक यहां कोस-कोस में पानी बदलने के साथ ही संस्कृति और परंपराएं भी अलग-अलग है. जहां के जंगलों में रहने वाले लोग अपनी भाषाओं, शैलियों में गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं. इस आदिवासी नृत्य महोत्सव में इन्हीं जनजातियों की संस्कृति पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर देखने और सुनने को मिलेगी. आज हम आपको छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति की कुछ खास नृत्य के बारे में बता रहे हैं.

आदिवासी समाज के नृत्य पूरी तरह प्रकृति से जुड़े हुए हैं. अलग-अलग ऋतुओं के स्वागत, बच्चे के जन्म से लेकर अलग-अलग उम्र में होने वाली क्रियाकलापों, विवाह में कई तरह के गीत गाए जाते हैं. इस दौरान नृत्य का भी प्रदर्शन होता है. इनमें आदिवासी समाज के पुरुष और स्त्रियां सामूहिक रूप से पारंपरिक धुनों पर कदम, ताल के साथ नृत्य करते हैं.

नृत्य से छत्तीसगढ़ की पहचान

छत्तीसगढ़ की जनजातियों की तरफ से विभिन्न अवसरों पर किए जाने वाले नृत्यों में विविधताओं के साथ कई समानताएं भी होती है. यहां के कई ऐसे नृत्य है. जो इंटरनेशनल लेवल पर अपनी पहचान बना चुके हैं. आदिवासी समाज का सरहुल, मुरिया समाज का ककसार, उरांव का डमकच, बैगा और गोड़ समाज का करमा, डंडा, सुआ नाच सहित सतनामी समाज का पंथी और यदुवंशियों का राउत नाचा काफी प्रसिद्ध है. बल्कि यू कहें कि छत्तीसगढ़ की पहचान में इन नृत्यों का अहम रोल है. इसके साथ ही माड़ियों का ककसार, सींगों वाला नृत्य, तामेर नृत्य, डंडारी नाचा, मड़ई, परजा जाति का परब नृत्य, भतराओं का भतरा वेद पुरुष स्मृति और छेरना नृत्य, घुरुवाओं का घुरुवा नृत्य, कोयों का कोया नृत्य, गेंडीनृत्य है. पहाड़ी कोरवा जनजातियों का डोमकच नृत्य आदिवासी युवक-युवतियों का प्रिय नृत्य है. विवाह के अवसर पर किये जाने वाले इस नृत्य को विवाह नृत्य भी कहा जाता है. यह नृत्य छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का पर्याय है. करमा नृत्य को बैगा करमा, गोंड़ करमा, भुंइयां करमा आदि का जातीय नृत्य माना जाता है.

साल 2019 में विवाह एवं अन्य संस्कार में छत्तीसगढ़ को मिला था पहला पुरस्कार

यहां के जनजाति बहुल क्षेत्रों में ग्राम देवी की वार्षिक, त्रिवार्षिक पूजा के दौरान मड़ई नृत्य किया जाता है. इसमें देवी-देवता के जुलूस के सामने मड़ई नर्तक दल नृत्य करते हैं. पीछे-पीछे देवी-देवता की डोली, छत्र, लाट जैसे प्रतीकों का जुलूस रहता है. धुरवा जनजाति विवाह के दौरान विवाह नृत्य करती है. विवाह नृत्य वर-वधू दोनों पक्ष में किया जाता है. विवाह नृत्य तेल-हल्दी चढ़ाने की रस्म से शुरू होकर पूरे विवाह में किया जाता है. साल 2019 में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में विवाह एवं अन्य संस्कार में छत्तीसगढ़ को पहला पुरस्कार मिला था. गौर माड़िया नृत्य को यह पुरस्कार दिया गया था.

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इसी तरह गेड़ी नृत्य भी प्रसिद्ध है. मुरिया जनजाति के सदस्य नवाखाई पर्व के दौरान गेड़ी नृत्य करते हैं. सुआ नृत्य समूह में स्त्रियों का किये जाने वाला नृत्य है. इस नृत्य को करने वाली युवती या नारी की अभिव्यक्ति, मन की भावना नृत्य में प्रदर्शित होती है.

Last Updated : Oct 26, 2021, 1:43 PM IST

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