रायपुर: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी के माध्यम से ग्रामीणों की प्राचीन संस्कृति को सहेजने और आर्थिक समृद्धि को पुनर्जीवित करने का कदम उठाया है. नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया ने भी नई पहल शुरू की है. उन्होंने गोठानों में गोबर से तैयार गौ काष्ठ का उपयोग ठण्ड भगाने के लिए अलाव के रूप में करने के निर्देश दिए हैं. प्रदेश भर के नगरीय निकाय क्षेत्रों में ठण्ड के दिनों में आम नागरिकों के लिए चौक-चौराहों पर अलाव जलाए जाते हैं. इसमें अभी तक सूखी लकड़ी का इस्तेमाल होता आया है. अलाव में लकड़ी का इस्तेमाल होने से पेड़ कटाई को जहां बढ़ावा मिलता है, वहीं चौक-चौराहों पर लकड़ी के जलने से धुआं और प्रदूषण भी फैलता है. डहरिया की इस पहल से जहां पेड़ों की कटाई पर अंकुश लगेगा, वहीं प्रदूषण पर रोकथाम के साथ पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा. ईंधन के विकल्प के रूप में गौ काष्ठ का उपयोग होने से नगरीय निकायों को लाखों रुपए की बचत भी होगी. महिला स्व-सहायता समूह की आमदनी और रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे.
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मंत्री शिवकुमार डहरिया ने कहा है कि गौ-काष्ठ की लागत और कीमत लकड़ी की अपेक्षा कम है. इससे पेड़ों की कटाई कम होगी और चौक-चौराहों पर जलाए जाने वाले लकड़ी के अलाव से निकलने वाले धुएं से भी मुक्ति मिलेगी. मंत्री डॉ. डहरिया ने नगरीय निकाय क्षेत्रों में संचालित गोठानों में गौ-काष्ठ के निर्माण को बढ़ावा देने के निर्देश भी दिए हैं. उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की सरकार गरीबों को एक रुपए में चावल दे रही है और गौ-पालकों से दो रुपए किलो में गोबर खरीद रही है. इससे प्रदेश में पशुओं और पशुपालकों का सम्मान बढ़ा है. गोठानों से निकलने वाले गोबर और खरीदे गए गोबर का उपयोग वर्मी कम्पोस्ट में होने के साथ गौ-काष्ठ के निर्माण में होने से महिला स्व-सहायता समूहों को भी इसका लाभ मिलेगा.
क्या है गौ काष्ठ ?
गाय के गोबर के कण्डे बनाए जाते हैं. गोठानों के माध्यम से गोबर के कण्डे के आकार में परिवर्तन कर लकड़ी के आकार का बना दिया जाता है. पेड़ों की तरह गोलाईनुमा आकार में एक से तीन फीट तक लंबाई वाले सूखे गोबर को ही गौ-काष्ठ कहा जाता है. ढ़ाई किलो के गोबर से एक किलो और एक फीट लंबा गौ काष्ठ का निर्माण होता है, जिसकी कीमत लगभग 8 रुपए हैं.