रायपुर :भले ही आज उनको इस प्रदेश ने भूला दिया हो, लेकिन उनकी महानता को आज भी दिग्गज नमन करते हैं. छत्तीसगढ़ की धरती में जन्मे लेस्ली वॉल्टर क्लॉडियस हॉकी की दुनिया में वो मकाम रखते हैं जिसका ख्वाब अच्छे अच्छे खिलाड़ी देखते हैं. लेकिन दुर्भाग्य है कि सबसे ज्यादा बार हॉकी में ओलंपिक पदक प्राप्त करने का विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले क्लॉडियस को आज छत्तीसगढ़ और उनकी जन्मस्थली बिलासपुर में ज्यादातर लोग नहीं जानते. टोक्यो ओलंपिक के मद्देनजर चलिए हम बताते हैं आपको इस महानायक के बारे में..
25 मार्च 1927 छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जन्मे लेस्ली वॉल्टर क्लॉडियस ने अपने स्कूल लाइफ से ही हॉकी स्टिक के साथ कलाबाजी दिखाना शुरू कर दी थी. उन्होंने बिलासपुर के रेलवे स्कूल से पढ़ाई की और यहीं से उनमें हॉकी प्रति लगाव पैदा हुआ. वे शुरुआती दौर में वे हॉकी के साथ ही फुटबॉल के भी अच्छे खिलाड़ी के तौर पर गिने जाते थे. वे बंगाल और नागपुर रेलवे की टीम की ओर से दोनों खेलों में अपना जौहर दिखाया लेकिन बाद में उन्होंने हॉकी में एक्रागता बढ़ाई और मेजर ध्यानचंद के बाद भारत को लगातार तीन ओलंपिक (1948,1952 और 1956) में गोल्ड मेडल दिलाने में अहम रोल अदा किया. 1960 के रोम ओलंपिक में भारतीय टीम उनकी अगुवाई में उतरी थी लेकिन इस बार टीम गोल्ड मेडल से चूक गई और सिल्वर से संतोष करना पड़ा था. इसके बाद उन्होंने हॉकी से संन्यास ले लिया था हालांकि उसके बाद वे टीम में मैनेजर की भूमिका भी निभाई थी. उनके बेटे रॉबर्ट ने भी भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं.
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दुनिया भर के खिलाड़ी उनको आज भी बेहद सम्मान देते हैं. 20 दिसंबर 2012 को इस महानतम खिलाड़ी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. 2012 में हुए लंदन ओलंपिक के दौरान ओलंपिक इतिहास के महानतम खिलाड़ियों के नाम पर वहां के रेलवे स्टेशन का नाम कर दिया गया था इस कड़ी में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा बुशी ट्यूब स्टेशन का नाम लेस्ली क्लॉडियस के नाम पर किया था. ये किसी भी भारतीय के लिए बहुत बड़ा सम्मान है.
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उन्हें 1971 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. उधम सिंह के साथ फील्ड हॉकी में सबसे अधिक ओलंपिक पदक जीतने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज है. 2011 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ईस्ट बंगाल क्लब द्वारा स्थापित भारत गौरव पुरस्कार प्रदान किया गया था. 2012 में उन्हें द बंगा विभूषण से सम्मानित किया गया.
दुनियाभर में सम्मान लेकिन छत्तीसगढ़ ने भूला दिया !
लेस्ली क्लॉडियस जैसे महान खिलाड़ी को वैसे तो किसी सीमा में बांध के नहीं रखा जा सकता इस महान खिलाड़ी को विश्वभर में बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता है, लेकिन ये दुर्भाग्य ही है कि उनके जन्मस्थान में ही आज उन्हें बहुत कम लोग जानने वाले बचे हैं. छत्तीसगढ़ में उनके सम्मान में कोई भी पहल नहीं की गई. बिलासपुर में जहां से लेस्ली ने हॉकी स्टिक थामी थी वहां न तो किसी सड़क और न ही किसी स्मारक या चौक आदि का नाम इस धरती पर जन्मे महान सपूत को समर्पित किया गया है. अगर सरकार या खेल संघों द्वारा लेस्ली क्लॉडियस को अपने जेहन में जिंदा रखा जाता तो हो सकता है कि उनकी प्रेरणा से युवा मोटिवेट होकर यहां की माटी का दम दुनिया को दिखा रहे होते.