रायपुर/ हैदराबाद:हिंदू धर्म में माता-पिता को सर्वोच्च दर्जा मिला है. इनकी सेवा करना सबसे बड़ी पूजा मानी जाती है. माता-पिता की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा को पूर्ण रूप से मुक्ति प्रदान करने के लिए लोग श्राद्ध (shradh 2021) करते हैं. हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (Purnima) से सोलह दिवसीय पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है. 20 सितंबर से यह शुरू हो रहा है. जो आश्विन महीने की अमावस्या को यानि 6 अक्टूबर, दिन बुधवार को समाप्त होंगे. श्राद्ध को महालय या पितृपक्ष के नाम से भी जाना जाता है. श्राद्ध कुल 16 दिनों की अवधि के होते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. श्राद्ध के दौरान पितरों को प्रसन्न किया जाता है और पितरों के प्रसन्न होने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इस वर्ष पितृ पक्ष के दौरान 26 सितंबर के दिन श्राद्ध नहीं किया जाएगा.
पितृ पक्ष प्रारंभ और समापन तिथि (Shradh Starting and Ending Date)
- पितृ पक्ष प्रारंभ तिथि : 20 सितंबर 2021, सोमवार
- पितृ पक्ष समापन तिथि : 06 अक्टूबर 2021, बुधवार
पितृ पक्ष के 16 श्राद्ध (16 Shradh)
- पूर्णिमा श्राद्ध : 20 सितंबर, सोमवार
- प्रतिपदा श्राद्ध :21 सितंबर, मंगलवार
- द्वितीया श्राद्ध : 22 सितंबर, बुधवार
- तृतीया श्राद्ध : 23 सितंबर, बृहस्पतिवार
- चतुर्थी श्राद्ध : 24 सितंबर, शुक्रवार
- पंचमी श्राद्ध : 25 सितंबर, शनिवार
- षष्ठी श्राद्ध : 27 सितंबर, सोमवार
- सप्तमी श्राद्ध : 28 सितंबर, मंगलवार
- अष्टमी श्राद्ध : 29 सितंबर, बुधवार
- नवमी श्राद्ध : 30 सितंबर, बृहस्पतिवार
- दशमी श्राद्ध : 01 अक्टूबर, शुक्रवार
- एकादशी श्राद्ध : 02 अक्टूबर, शनिवार
- द्वादशी श्राद्ध : 03 अक्टूबर, रविवार (सन्यासियों का श्राद्ध, मघा श्राद्ध)
- त्रयोदशी श्राद्ध : 04 अक्टूबर, सोमवार
- चतुर्दशी श्राद्ध : 05 अक्टूबर, मंगलवार
- अमावस्या श्राद्ध : 06 अक्टूबर, बुधवार
क्यों मनाया जाता है पितृ पक्ष (Why Shradh Celebrated)
यह बात आप और हम सभी जानते हैं कि हमारे भीतर प्रवाहित रक्त हमारे पितरों का अंश है, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं. यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते हैं. आप दूसरे तरीके से भी इस बात को समझ सकते हैं. पिता के जिस शुक्राणु के साथ जीव माता के गर्भ में जाता है, उसमें 84 अंश होते हैं, जिनमें से 28 अंश तो शुक्रधारी पुरुष के खुद के भोजनादि से उपार्जित होते हैं और 56 अंश पूर्व पुरुषों के रहते हैं. उनमें से भी 21 उसके पिता के, 15 अंश पितामह के, 10 अंश प्रपितामाह के, 6 अंश चतुर्थ पुरुष के, 3 पंचम पुरुष के और एक षष्ठ पुरुष के होते हैं. इस तरह सात पीढ़ियों तक वंश के सभी पूर्वजों के रक्त की एकता रहती है. लिहाजा श्राद्ध या पिंडदान मुख्यतः तीन पीढ़ियों तक के पितरों को दिया जाता है. पितृपक्ष में किये गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है, साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है.
क्या है श्राद्ध और क्या है तर्पण (What is Shradh)
पितृ पक्ष में जो भी दान हम पूर्वजों को देते हैं, वह श्राद्ध कहलाता है. शास्त्रों के अनुसार जिनका देहांत हो चुका है, वे सभी इन दिनों में अपने सूक्ष्म रूप के साथ धरती पर आते हैं और अपने परिजनों का तर्पण स्वीकार करते हैं. श्राद्ध के बारे में हरवंश पुराण में बताया गया है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध करने वाला व्यक्ति दोनों लोकों में सुख प्राप्त करता है. श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितर धर्म को चाहने वालों को धर्म, संतान को चाहने वाले को संतान, कल्याण चाहने वाले को कल्याण जैसे इच्छानुसार वरदान देते हैं.
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श्राद्ध की पौराणिक कथा (History of Shradh)
कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में कर्ण का निधन हो गया था और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें रोजाना खाने की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए. इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा. तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया, लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को नहीं दिया. तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है. उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी, ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके. तब से इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है.