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खरीद फरोख्त कानून लागू होने के बाद भी क्यों डरे हैं राजनीतिक दल

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Published : Jun 4, 2022, 10:59 PM IST

Updated : Jun 5, 2022, 1:30 PM IST

हरियाण कांग्रेस को अपने जनप्रतिनिधियों के खरीद फरोख्त का डर सता रहा है. इसी वजह हरियाणा के कांग्रेसी नेता रायपुर में डेरा डाले हुए हैं. अब सवाल ये उठता है कि जब खरीद-फरोख्त कानून बनाया गया है उसके बावजूद पार्टियों को ये डर क्यों हैं.

Congress fears cross voting in Haryana
हरियाणा में कांग्रेस को क्रॉस वोटिंग का डर

रायपुर:राज्यसभा चुनाव के बीच हरियाणा में कांग्रेस को क्रॉस वोटिंग का डर सता रहा है. इससे बचने के लिए पहले हरियाणा के कांग्रेसी विधायकों को दिल्ली बुलाया. उसके बाद विधायकों को रायपुर ले जाया गया. पिछली बार हरियाणा में कांग्रेस के कुछ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी. लिहाजा इस बार भी क्रॉस वोटिंग की संभावनाओं को देखते हुए कांग्रेस पहले से ही अलर्ट मोड में है. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी खरीद-फरोख्त सहित किसी भी हद तक जा सकती है. यही वजह है कि विधायकों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें रायपुर लाया गया है.

हरियाणा में कांग्रेस को क्रॉस वोटिंग का डर

खरीद फरोख्त सहित कोई भी हथकंडा अपना सकती है भाजपा: राज्यसभा चुनाव को लेकर हरियाणा और राजस्थान में बनी परिस्थितियों पर भूपेश बघेल ने कहा कि भाजपा का काम है, जहां बहुमत नहीं होगा. वहां खरीद-फरोख्त करना धन बल, छल बल के साथ चुनाव जीतने की कोशिश करने का काम भाजपा करती रही है.

कांग्रेस में नहीं विश्वसनीयता:भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का कहना है कि "कांग्रेस के अंदर विश्वसनीयता खत्म होती जा रही है. अपने ही लोगों से डर के लोग भाग रहे हैं. ऐसे में उस पार्टी का भविष्य क्या होगा. कांग्रेस के अंदर संगठन में जो खराब स्थिति आई है. वह इसी वजह से आई है".

छत्तीसगढ़ में आया था पहला खरीद-फरोख्त का मामला:छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद साल 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी के में नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को करारी हार मिली थी. इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस नेता पर कथित तौर पर भाजपा नेता बलीराम कश्यप को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव देकर भाजपा विधायकों को तोड़ने का आरोप लगा था. आरोप था कि उस समय भाजपा नेता वीरेंद्र पांडेय से एक भाजपा सांसद ने विधायकों को तोड़ने के लिए संपर्क किया था. वीरेंद्र पांडेय ने यह आरोप सार्वजनिक कर हलचल मचा दी थी कि एक दिग्गज कांग्रेस नेता ने बातचीत की और खरीद-फरोख्त के लिए करीब 45 लाख रुपये का लेन-देन किया.

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दलबदल पर बने कानून का हुआ संशोधन:छत्तीसगढ़ के विधायक खरीद-फरोख्त कांड के बाद ही देशभर में दलबदल कानून लागू करने को लेकर गहरा चिंतन शुरू हुआ. 91वां संविधान संशोधन 2003 के तहत दसवीं अनुसूची में एक नए उपबंध के द्वारा दलबदल विरोधी कानून लागू किया गया. उस समय अरुण जेटली वाजपेयी सरकार में कानून मंत्री थे.

क्या है दल बदल विरोधी कानून:चुनाव में जीत कर जाने वाले जनप्रतिनिधियों द्वारा दल-बदल पर लगाम लगाने के लिए संविधान के 91वें संशोधन के रूप में दल-बदल कानून लाया गया. जिसे शुरुआत में काफी लचीला रखा गया था. बाद में इसे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने और सख्त कर दिया. मौजूदा दल-बदल विरोधी कानून के तहत अगर सदन के सभी सदस्यों के एक तिहाई सदस्यों से कम व्यक्ति अगर अपना दल बदलते हैं, तो उन पर दल-बदल कानून लागू होता है. अगर दल बदलने वालों की संख्या एक तिहाई से ज्यादा होती है, तो उन पर यह कानून लागू नहीं होता है.

खरीद-फरोख्त का मामला सिद्ध करना है मुश्किल: छत्तीसगढ़ में खरीद-फरोख्त को उजागर करने का दावा करने वाले पूर्व विधायक वीरेंद्र पांडे का कहना है कि लालच देकर मत परिवर्तित कराना खरीद फरोख्त की श्रेणी में आता है. हालांकि वे यह भी कहते नजर आते हैं कि मतदाताओं को भी लालच देकर उनसे वोट लिया जाता है. यह भी एक अपराध की श्रेणी में आता है. लेकिन यह सिद्ध नहीं हो पाता है. क्योंकि मतदान गुप्त होता है ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल है कि किसने किसको वोट दिया. यदि वोटिंग करने वाले का पता भी चल जाए, तो वह यह कह देता है कि मुझे लगता है कि प्रत्याशी अच्छा है. इसलिए मैंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर मतदान किया है. इसलिए इसे सिद्ध करना बड़ा कठिन है.

खरीद-फरोख्त मामले में सीबीआई कोर्ट ने अजीत जोगी कर दिया था बरी: वीरेंद्र पांडे ने कहा कि इस मामले में भी सीबीआई की जांच के बाद सीबीआई कोर्ट ने अजीत जोगी को बरी कर दिया. उन्हें निर्दोष बताया गया. ऐसे में कहा जा सकता है जो हमारा प्रशासनिक ढांचा है राजनीतिक पद्धति है इन सभी में दोष है. इसका जब तक निराकरण कर व्यक्तित्व का निर्माण नहीं होगा. उसके लिए बचपन से शिक्षा में यह बातें शामिल होनी चाहिए. वीरेंद्र पांडे ने कहा कि आज की शिक्षा जीविका पर आधारित है, ना कि नैतिक मूल्यों पर और उसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है. खरीद-फरोख्त लोकतंत्र के लिए घातक है.

अपने ही जनप्रतिनिधियों पर राजनीतिक दलों को नहीं है विश्वास: "आज सबसे ज्यादा शर्मनाक बात तो यह है की दल ने जिनको भरोसा करके विधानसभा और लोकसभा में भेजा. उन पर दल का विश्वास क्यों नहीं है.

कौन है वीरेंद्र पांडे:भाजपा के पूर्व कददावर नेता वीरेंद्र पांडेय 1977 में जगदलपुर से जीतकर विधानसभा में पहुंचे. पूर्व भाजपा विधायक एवं अविभाजित मध्यप्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार में संसदीय सचिव रहे. वीरेंद्र पांडेय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन​ सिंह से मतभेद की वजह से पार्टी से किनारा कर लिया था.

छत्तीसगढ़ की पहली सरकार के मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल के दौरान विधायकों की खरीद फरोख्त मामले को उजागर करने पर वीरेंद्र पांडेय भाजपा आलाकमान के करीब हो गए थे, बाद में यहीं वजह उनकी परेशानी बन कर सामने आई. हालांकि रमनसिंह ने बीजेपी सरकार आने पर उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष भी बनाया पर वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. बाद में रमन सिंह से मतभेद बढ़ने पर उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया.

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छत्तीसगढ़ में खरीद-फरोख्त के मामले से कांग्रेस ने किया इनकार:छत्तीसगढ़ में सामने आए खरीद-फरोख्त के मामले को लेकर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि छत्तीसगढ़ में जो प्रकरण आया था. वह खरीद फरोख्त का मामला नहीं था, बल्कि भाजपा को छोड़कर लोगों ने नया दल बनाया था और उसके बाद उन्होंने कांग्रेस में उस दल को समाहित किया था. इसलिए वह खरीद फरोख्त का मामला नहीं था.ये वे लोग थे जो भाजपा से नाराज थे.धनंजय ने कहा कि खरीद-फरोख्त और डराने धमकाने का काम केंद्र की भाजपा सरकार कर रही है. ईडी और सीबीआई भाजपा के सेल के रूप में काम कर रही है. संवैधानिक संस्थाओं पर अतिक्रमण भारतीय जनता पार्टी ने करके रखा है. यह देश का दुर्भाग्य है कि 8 साल के भाजपा शासनकाल में सर्वोच्च न्यायालय के जज को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर अपनी बात को रखना पड़ा.

दल-बदल के क्या है नुकसान:संसदीय कार्य प्रणाली में संसद या फिर विधानसभा में किसी एक निश्चित राजनीतिक दल या फिर निर्दलीय रूप में जनता के बीच से चुनकर आए सदस्य यानी विधायक या फिर सांसद की उसके दल के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित होती है. लेकिन अगर वह किसी पार्टी के सिंबल पर जीत कर आता है और जीतने के बाद अपने दल यानी पार्टी को बदल देता है तो इसे दल-बदल कहते हैं. नेताओं द्वारा दल बदलने से जनता का नुकसान होता है. यह एक तरह से उस जनप्रतिनिधि को चुनने वाली जनता के साथ धोखा है. अक्सर यह देखा जाता है कि मतदाता प्रत्याशी के साथ-साथ राजनीतिक दल को भी मद्देनजर रखकर अपना मतदान करता है लेकिन जनता के बीच जाने के बाद उस जनप्रतिनिधि द्वारा राजनीतिक दल बदला जाना एक तरह से उसे मतदान करने वाली जनता के साथ छलावा है. इसे संसदीय कार्य प्रणालियों में कई तरह के व्यवधान उत्पन्न होते हैं और सरकारें और अस्थिर हो जाती हैं.

बहरहाल किसी का कहना है कि धन बल की बदौलत जनप्रतिनिधियों का मत बदलवा दिया जाता है, तो वहीं कुछ का कहना है कि पार्टी को ही अपने जनप्रतिनिधियों पर विश्वास नहीं है. जानकार कहते हैं कि खरीद-फरोख्त को कोर्ट में साबित करना एक जटिल काम है. जिस वजह से ऐसे मामलों में कार्यवाही नहीं हो पाती है.अब देखना है कि खरीद-फरोख्त जैसे मामले या फिर मत परिवर्तन की हो रही घटनाओं को रोकने किस तरह के कदम उठाए जाते हैं.

Last Updated : Jun 5, 2022, 1:30 PM IST

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