रायपुर: सर्वप्रथम पंडाल लगने वाले स्थान को 1 सप्ताह पूर्व से ही सुबह और शाम जल से सफाई करनी चाहिए. गोबर से क्षेत्र को विलेपित करना चाहिए. सार्वजनिक स्थान को गंगाजल से भी स्वच्छ और निर्मल करना चाहिए. नवरात्रि के 1 दिन पूर्व पूरे क्षेत्र में अच्छी तरह से सफाई और स्वच्छता का ध्यान रखा जाना चाहिए. संपूर्ण क्षेत्र को मच्छर, मक्खी से भी मुक्त करने का प्रयास करना चाहिए.
नवरात्रि काल में भोग भंडारा दुर्गा पंडाल में रखें विशेष ध्यान: दुर्गा पंडाल में सबसे पहले नवदुर्गा की स्थापना की जाती है. घट स्थापन के साथ ही जवारा बोने की परंपरा है. इन जवारों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. गंगा जल अर्पित किया जाना चाहिए. मां दुर्गा के 9 स्वरूप के प्रति माता का शृंगार बहुत ही आस्था और श्रद्धा के साथ होना चाहिए. माता को चढ़ाए जाने वाली या पहनाई जाने वाली साड़ियों में गरिमा का भाव होना चाहिए.
आरती के समय का रखें ध्यान: प्रत्येक दिन के हिसाब से रंगों का चयन किया जाना चाहिए. पंडालों में प्रतिदिन मां अंबे, दुर्गा और मां भवानी की आरती होनी चाहिए. आरती नियत समय और निश्चित स्थान पर होनी चाहिए. आरती के बाद भक्तों और साधकों को प्रसाद का वितरण किया जाना चाहिए.
माता का श्रृंगार पूजा कैसे करें: माता सौभाग्यवती होने का सूचक है. नियमित रूप से रोली, चंदन, कुमकुम, लाल गुलाल, लाल सिंदूर से माता का शृंगार होना चाहिए. माता के श्रृंगार के लिए चूड़ी, नथ और साड़ी के साथ ही श्रृंगार के सभी सामान गरिमामय ढंग से माता को अर्पित किया जाना चाहिए. प्रतिदिन माता को शुद्ध और ताजे फूल चढ़ाए जाने चाहिए. माता को प्रतिदिन नई फूल की माला पहनानी चाहिए.
अखंड ज्योत का रखें विशेष ध्यान: मंदिरों में जलाई जाने वाले ज्योति अखंड होनी चाहिए. वहां पर घी या तेल नियमित रूप से डालते रहना चाहिए. यह मंगल ज्योति अखंड रूप से जलनी चाहिए. स्थान विशेष की साफ सफाई का नियमित रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए.
नियमित पूजा करें: माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती, सिद्ध कुंजिका, गायत्री मंत्र, रामरक्षा स्त्रोत्र, महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत्र का पाठ नियमित रूप से किया जाना चाहिए.
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हवन के समय इन बातों का रखें ध्यान:नवदुर्गा को महाअष्टमी का हवन विशेष प्रिय है. हवन शुद्ध जैविक जड़ी बूटियों, वन औषधियों और सात्विक पदार्थों से किया जाना चाहिए. यज्ञ में संतुलित मात्रा में यज्ञ सामग्री डालना चाहिए. यज्ञ में मंत्रों का उच्चारण विशिष्ट रूप से किया जाना चाहिए. पंडालों में विधान पूर्वक लाइन लगाकर भक्तों को दर्शन करना चाहिए.
नवरात्रि काल में भोग भंडारा: आजकल पूरे नवरात्रि काल में भोग भंडारा का प्रचलन भी बढ़ा है. भंडारे का आयोजन माता के श्री चरणों में भोग लगाकर प्रारंभ करना चाहिए. भंडारा में स्वच्छता, निर्मलता और पौष्टिकता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए. संतुलित तेल और मसालों का बनाया हुआ भोग मां नव दुर्गा को अर्पित करने के बाद भक्तों और साधकों को प्रसाद के रूप में बांटा जाना चाहिए.
दुर्गा पंडाल में माता का शृंगार: पंडालों में माता का शृंगार अनुपम आस्था और गहरी श्रद्धा से किया जाना चाहिए. माता दुर्गा जब कुपित हो जाती हैं तो इसके बहुत अनिष्ट परिणाम सामने आते हैं. इसलिए नव दुर्गा चामुंडा और महिषासुर मर्दिनी की सेवा भावना में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. माता का स्वच्छ पात्र में पूजन किया जाना चाहिए. पीतल या तांबे के स्वच्छ पात्र के माध्यम से मां भगवती को स्नान दान कराया जाना चाहिए. इस पात्र में गंगाजल को भी रखा जा सकता है.
प्रतिदिन भोग लगाएं: प्रतिदिन शुद्ध ताजे फल, ऋतु फल, मिठाइयां, नैवेद्य मां दुर्गा को भोग लगाना चाहिए. भोग लगाने के बाद यह प्रसाद भक्तों और साधकों में वितरित किया जाना चाहिए. मां दुर्गा 9 दिनों तक भूलोक में वास करती हैं. जो भक्त मां को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पुकारता है तो मां दुर्गा उनकी हर अभिलाषाओं को पूरा करती है.
विसर्जन के दौरान इन बातों का रखें ध्यान: महानवमी के बाद मां दुर्गा का विसर्जन पूरे भक्ति भाव से विशिष्ट मंत्रों के माध्यम से किया जाना चाहिए. इसमें मुख्य यजमान को आस्था और श्रद्धापूर्वक शामिल होकर इस कार्य को पूर्ण करना चाहिए. विसर्जन के दिन शामिल होने वाले लोगों को उचित आचरण का विशेष ध्यान रखना चाहिए.