रायपुर: स्कूली बच्चों में चिड़चिड़ापन, कहना नहीं मानना, मोबाइल और इंटरनेट का एडिक्शन, मोटापे जैसी समस्याएं भी देखने को मिल रही है. ETV भारत ने स्कूली बच्चों के परिजनों से बातचीत की और उनसे यह जाना कि बच्चों के व्यवहार में कितना परिवर्तन आया है. बच्चों के माता-पिता ने भी इस बात को माना है कि ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों का बौद्धिक विकास नहीं हो पा रहा है. बच्चों के स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ रहा है.
Corona Side Effect in Children: पेरेंट्स ने बताया कि बच्चों में मोटापा बढ़ा है. बच्चों की बौद्धिक क्षमता में भी कमी आई है. बच्चों में इंटरनेट और मोबाइल एडिक्शन बढ़ा है. बच्चे अब इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताते हैं. अगर बच्चों को रोका जाता है तो उनका व्यवहार सही नहीं रहता. बच्चों में चिड़चिड़ापन ज्यादा हो गया है.
छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने कहा कि कोरोना संक्रमण काल में अगर सबसे ज्यादा क्षति हुई है तो वह स्कूल पढ़ने वाले बच्चों की हुई है. इन 2 सालों में सामाजिक दायरा संकुचित हो गया है. बच्चे घर में सिमट गए हैं. अकेले रहकर बच्चों को मानसिक रूप से बहुत आघात पहुंचा (changes in children mental level ) है. यह एक चिंता का विषय है. बच्चों की इस स्थिति पर माता-पिता, परिवार और स्कूलों को भी लगातार ध्यान देना होगा.
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कोरोना काल में बच्चों का ज्यादा नुकसान
रायपुर के साइकोलॉजिस्ट डॉ. जे सी अजवानी (Psychologist Dr J C Ajwani in Raipur) ने कहा कि कोविड में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों का हुआ है. बच्चे पहले स्कूल में अपना समय बिता दिया करते थे तो उनका एडिक्शन से समय बच जाता था. अब बच्चों का समय भी डिजिटल वर्ल्ड के साथ गुजर रहा है. बच्चों की जो ऊर्जा होती है, वह स्कूल में अपने सहपाठियों के साथ खेल कर उसे डिस्चार्ज कर लिया करते थे लेकिन आज वे घर के बाहर नहीं निकल रहे हैं. जहां पर सिंगल चाइल्ड है या दो बच्चे हैं, उस स्थिति में माता-पिता के साथ भी इंटरेक्शन ज्यादा बच्चे नहीं कर पा रहे.
कोरोना से बच्चों में बदलाव पैरेंट्स को बच्चों का दोस्त बनना जरूरी
डॉ. अजवानी ने कहा कि पेरेंट्स यदि पेरेंट्स बने रहेंगे और बच्चों पर पढ़ाई का दबाव डालते रहेंगे तो बच्चा कुंठित हो जाएगा. कई बार देखा गया है कि बच्चे डिप्रेशन में जाकर वायलेंट भी हो जाते हैं. वे अपने परिजनों के साथ भी मारपीट करने के लिए उतारू हो जाते हैं. बच्चों के साथ परिजन दोस्ताना व्यवहार करें. अगर बच्चा देर तक जाग रहा है तो यह देखें की बच्चा कौनसा काम कर रहा है. अगर पढ़ाई के अलावा दूसरा काम कर रहा है तो परिजन बच्चों को प्यार से समझाएं.
डॉ. अजवानी ने कहा कि अभी की स्थिति के हिसाब से परिजनों को बच्चों का दोस्त बनना बेहद जरूरी है. अभी के समय में बच्चों को सबसे ज्यादा अगर कोई कमी महसूस हो रही है तो वह अपने दोस्तों की है. दोस्त एक इमोशनल और सोशल सपोर्टर होते हैं. परिजन गाइडिंग और फोर्सफुल फैक्टर बन जाते हैं. लेकिन दोस्त साथी बनकर रहते हैं. परिजनों का दोस्ताना व्यवहार पहले भी जरूरी था लेकिन आज और ज्यादा जरूरी हो गया है.
बच्चों को पॉजिटिव होने की जरूरत
बच्चे भी यह नहीं समझे कि अकेले हैं. यह समझ कर अपने आप को दुखी करने की जरूरत नहीं है. यह मानकर चलें कि भगवान ने हमें एक अपॉर्चुनिटी दी है कि हम सेल्फ स्टडी करें. डिजिटल वर्ल्ड का उपयोग अपने विकास के लिए करें. बच्चों का आज नियंत्रण ही उनको काम आएगा.
इंटरनेट गुरू से नया और अच्छा सीखने का समय
डॉ. अजवानी ने स्टूडेंट से भी कहा है कि वह इंटरनेट में मौजूद अच्छी बातें सीखें. अनावश्यक चीजों से दूर रहें. पढ़ाई की ओर भी ध्यान दें. टीवी देखें, लेकिन उसकी एक समय सीमा खुद निर्धारित करें. 1 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल ना करें. अच्छे से नींद पूरी करिए. अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए योगा और साइकिलिंग करें. अपनी ऊर्जा को बैलेंस करें. 7 से 8 घंटे की नींद लें ताकि आपकी इम्युनिटी भी अच्छी रहेगी और आप स्वस्थ रहेंगे.