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दो बाबू चला रहे राज्य शिक्षा आयोग, कब होगी सदस्यों की नियुक्ति ?

छत्तीसगढ़ में राज्य शिक्षा आयोग सचिव और दो बाबूओं के सहारे पर चल रहा (Chhattisgarh State Education Commission running by two clerks) है. कांग्रेस सरकार बनने के 4 साल बाद भी अब तक इस विभाग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो सकी है.

Chhattisgarh State Education Commission running two clerks
दो बाबू चला रहे राज्य शिक्षा आयोग

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Published : Jul 15, 2022, 2:25 PM IST

रायपुर :छत्तीसगढ़ राज्य शिक्षा आयोग (Chhattisgarh State Education Commission ) में अब तक अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो सकी है.लगभग 4 साल से यह पद खाली है. कांग्रेस सरकार बनने के बाद से ही यह पद रिक्त है. छत्तीसगढ़ शिक्षा आयोग का गठन प्रदेश में शिक्षा गुणवत्ता के लिए किया गया था. लेकिन अब इसके अभाव में आयोग काम नहीं कर रहा है. शिक्षा की गुणवत्ता के लिए गठित किया गया यह आयोग अब सफेद हाथी बन चुका है. शालेय शिक्षक संघ ने जल्द से जल्द आयोग में पूर्णकालिक अध्यक्ष और सदस्यों के नियुक्ति की मांग की है.

दो बाबू चला रहे राज्य शिक्षा आयोग, कब होगी सदस्यों की नियुक्ति
कौन चला रहा है आयोग :छत्तीसगढ़ शिक्षा आयोग का काम एक सचिव और दो बाबू के भरोसे संचालित किया जा रहा (Chhattisgarh State Education Commission running by two clerks) है. इन तीन सदस्यों के द्वारा पूरे आयोग का काम किया जा रहा है.यही वजह है कि जिस गति से आयोग में काम होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है. साथ ही कई ऐसे निर्णय होते हैं .जिसको लेने का अधिकार अध्यक्ष और सदस्यों को ही होता है. ऐसे में इन निर्णय के लेने में भी आयोग को परेशानी हो रही है. क्या है आयोग का काम : छत्तीसगढ़ शिक्षा आयोग शिक्षकों की वेतन विसंगति , पदोन्नति, स्थानांतरण, शिक्षकों 'की प्रमुख मांगों, समस्याओं, शिक्षा और शैक्षणिक प्रबंधन से संबंधित नवाचार और स्कूलों में फीस संरचना का काम करता है. लेकिन अध्यक्ष नहीं होने से ये सारी चीजें सिर्फ कागजों में ही सिमटकर रह गई है. इसके अलावा भी कई काम आयोग के जिम्मे है.


• शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करने के लिए सिफारिश करना
• शिक्षा और शैक्षणिक प्रबंधन से जुड़े नवाचारों के लिए सुझाव देना
• शिक्षकों की मांगों और समस्याओं को सुनना, उसके लिए सिफारिश करना
• स्कूलों में फीस से लेकर कई तरह के विवादों में सुधार के लिए सुझाव देना

किसे किया जाता है नियुक्त :यहां अध्यक्ष और सचिव के अलावा दो अशासकीय क्षेत्र में काम कर रहे शिक्षाविदों को बतौर सदस्य नियुक्त किया जाना है. आयोग में एक स्थायी कार्यकारिणी समिति का भी गठन करना है, जिसमें आदिम जाति विभाग, पंचायत विभाग और नगरीय प्रशासन विभाग के अधिकारी पदेन अधिकारी होते हैं. विभाग में पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं होने पर विभागीय मंत्री पदेन अध्यक्ष होते हैं . यह व्यवस्था तब तक के लिए होती है जब तक अध्यक्ष की नियुक्ति न हो जाए. प्रदेश में छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम और अन्य आयोगों में भी यही व्यवस्था है.अध्यक्ष की जब तक नियुक्ति नहीं होती है तब तक विभागीय मंत्री ही कामकाज चलाते है.

कब बना था आयोग :राज्य शिक्षा आयोग का गठन पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने 20 सितंबर 2013 को किया (State Education Commission was formed by the BJP government) था. पहला अध्यक्ष चंद्रभूषण शर्मा को बनाया गया था. साथ में सदस्य आरसी पांडव को नियुक्त किया गया था. इसके बाद विधानसभा चुनाव के कारण 19 दिसंबर 2013 को यह कार्यकाल भंग हो गया. इसके बाद फिर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो 15 जून 2015 को फिर से आयोग के अध्यक्ष के रूप में शर्मा की नियुक्ति की गई थी. साथ ही दो सदस्य नियुक्त हुए थे.

कांग्रेस के शासन में आयोग का काम ठंडा :विधानसभा चुनाव 2018 के बाद कांग्रेस की सरकार बनी. उसके बाद पूर्व के अध्यक्ष, सदस्यों की नियुक्ति भंग हो गई. तब से अब तक ये कुर्सियां खाली (Congress government did not appoint in Chhattisgarh) हैं. हालांकि इस बीच कांग्रेस सरकार के द्वारा कई निगम मंडल आयोग में नियुक्ति की गई लेकिन राज्य शिक्षा आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों का पद खाली रखा गया है.

क्या हो रही है परेशानी :छत्तीसगढ़ शालेय शिक्षक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र दुबे का कहना है कि ''प्रदेश के शिक्षकों के मांग पर पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में साल 2013 में राज्य शिक्षा आयोग का गठन किया था. लेकिन जब से कांग्रेस सरकार आई है. इन 4 वर्षों में आयोग में ना तो पूर्णकालिक अध्यक्ष की नियुक्ति की गई है और ना ही सदस्य बनाए गए हैं. वीरेंद्र दुबे ने कहा कि राज्य शिक्षा आयोग के गठन का मुख्य वजह समाज सरकार और शिक्षकों के बीच समन्वय स्थापित कर बेहतर और गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करना था.लेकिन वर्तमान सरकार के द्वारा आयोग के गठन में अनदेखी की जा रही है. जिससे शिक्षकों की समस्याएं बढ़ती जा रही है. साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ रहा है. वीरेंद्र दुबे ने मुख्यमंत्री से मांग है कि जल्द से जल्द राज्य शिक्षा आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की जाए. जिससे प्रदेश के शिक्षकों के साथ-साथ बेहतर शिक्षा व्यवस्था को बढ़ाया जा सके.''


क्या है स्कूल शिक्षामंत्री का बयान :हालांकि स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम (School Education Minister Premsai Singh Tekam) का कहना है कि '' इन पदों पर मुख्यमंत्री के द्वारा नियुक्ति दी जाती है यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है.''

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