रायपुर : हौसला बुलंद हो तो कोई भी बाधा किसी को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती, यहां तक पूरी कायनात भी सपनों को पूरा करने में जुट जाती है.अपने जीवन में आने वाली बाधाओं को चीर कर हौसलों की उड़ान भरने वाली चंचल सोनी बचपन से ही एक पैर से विकलांग है. छत्तीसगढ़ के धमतरी की रहने वाली चंचल सोनी ने 14 साल की उम्र में बैसाखी के सहारे एवरेस्ट बेस कैंप 5364 मीटर की कठिन चढ़ाई को 10 दिनों में पूरा किया.
बैसाखी के सहारे चंचल ने किया माउंट एवरेस्ट बेस कैंप फतेह, ईटीवी भारत में बेमिसाल माउंटेनियर्स से मुलाकात
मिशन इंक्लूजन के तहत धमतरी निवासी चंचल सोनी ने माउंट एवरेस्ट बेस कैंप फतेह किया (Chanchal did Mount Everest with the help of crutches) है. चंचल शारीरिक तौर पर विकलांग हैं.बावजूद इसके उनके हौंसलों के उड़ान ने एवरेस्ट की ऊंचाई को छोटा कर दिया.
सबसे कम उम्र की बनीं क्लाइंबर : चंचल सोनी पूरे विश्व में सबसे कम उम्र के एंप्यूटी क्लाइंबर (Youngest Amputee Climber) बन गई है. मिशन इंक्लूजन के तहत इस अभियान में विकलांगता, जेंडर, उम्र और कम्युनिटी के कुल 9 लोगों द्वारा सफलतापूर्वक माउंट एवरेस्ट बेस कैंप की चढ़ाई की . इनका मकसद विविधता समावेशन और एडवेंचर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना है. ईटीवी भारत ने चंचल सोनी और उनके साथियों से खास बातचीत की.
सवाल- आपने माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप को पता किया आप की कहानी किस तरह से शुरू हुई ?
जवाब- मेरा सपना था कि मैं बचपन से माउंटेनरिग करूं.इसके लिए मैं चित्रसेन साहू सर से मुलाकात की. मैं सबसे कम उम्र की व्हीलचेयर बास्केटबॉल की प्लेयर हूं.मुझे जानकारी मिली कि चित्रसेन साहू सर माउंटेनियरिंग करते हैं. उन्होंने ही मुझे माउंट एवरेस्ट बेस कैंप करने का मौका दिया.
सवाल -आप कौन सी कक्षा में पढ़ाई करती?
जवाब- मैं कक्षा नवमी में पढ़ाई करती हूं. मेरी उम्र 14 साल है इसके साथ साथ में डांस भी करती हूं,
सवाल- माउंट एवरेस्ट बेस कैंप के लिए आपने किस तरह से तैयारियां की ?
जवाब- हम लोग 1 साल से माउंट एवरेस्ट बेस कैंप के लिए तैयारी कर रहे थे, धमतरी में रुद्री से गंगरेल 6-6किलोमीटर रोज आना जाना करते थे, शाम के प्रैक्टिस करते थे, बेसकैंप तक जाने के लिए मैंने 1 साल तक प्रैक्टिस की,
सवाल- बेस कैंप में चढ़ने के दौरान किस तरह की समस्याएं आई?
जवाब- बेस कैंप के लिए चढ़ाई के लिए बहुत दिक्कतें हुई क्योंकि वहां बड़ी-बड़ी चट्टानें थी और हम लोग स्टिक के सहारे से क्लाइंबिंग कर रहे थे, वहां स्टिक फिसलने का डर रहता था. हाथ में फोड़े आ जाते थे.क्लाइम्बिंग के दौरान स्नोफॉल भी हुआ. जैसे हम ऊंचाई पर चढ़ते जाते.ऑक्सीजन लेवल भी कम हो जाता. उस दौरान हम दवाइयां भी लेते थे. स्नो फॉल के दौरान चढ़ाई में थोड़ी दिक्कतें होती थी. क्योंकि आगे पीछे कुछ दिखाई नहीं देता था.
सवाल-जब आप माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप में पहुंची तो कैसी फीलिंग थी?
जवाब- जब मैंने एवरेस्ट बेस कैंप कंप्लीट किया उस दौरान मुझे बहुत खुशी हुई. हमारी टीम के सभी सदस्य इस पूरे जर्नी में मेरा बहुत सपोर्ट करते थे.
सवाल- विश्व में सबसे कम उम्र की एंप्यूटी क्लाइंबर बनी है?
जवाब- चंचल के मैन्टर चित्रसेन साहू ने बताया चंचल पूरे विश्व की कम उम्र की यंगेस्ट एंप्यूटी क्लाइंबर बनीं हैं. ऐसे ही हमारे ग्रुप में अनवर अली थे जो आर्टिफिशियल लैग से क्लाइंब कर रहे थे. रजनी जोशी जिन्हें लो विजन की डिसेबिलिटी है. निक्की बजाज जो ट्रांसमाउंटेनियर है. ऐसे ही अलग-अलग उम्र कब लोग गए हुए थे.सभी को इंक्लूजन करके हमें चलना था. सभी के हार्ड वर्क डेडिकेशन के चलते बेस कैंप पूरा किया. चित्रसेन साहू ने बताया जब आप टीम को गाइड करते है. टीम सफल हो जाए तो बहुत अच्छा लगता है. अभी मैं वही चीज महसूस कर रहा हूं. हमारी 9 लोगों के टीम बिना किसी कैजुअल्टी के हमने मिशन सक्सेसफुल किया.
सवाल- चित्रसेन आगे आप लोग और क्या करने वाले है ?
जवाब- आगे यह टीम अलग-अलग माउंटेन क्लाइंब करेगी इसे लेकर ट्रेनिंग और योजनाएं बनाई जा रही है, बहुत जल्द एक अलग माउंटेन में यह टीम नजर आएगी.
सवाल- जब आप बेस कैंप में पहुंचे तो कैसी फीलिंग थी ?
जवाब- चंचल के साथ टीम में गई ट्रांसमाउंटेनर निक्की बजाज ने बताया- मैं रायपुर हूँ पेशे से में मेकअप आर्टिस्ट और हेयर स्टाइलिश हूँ, इससे पहले 2020 में मैंने माउंटेनियरिंग की है. इसके बाद मेरी बात चित्रसेन से हुई, कुछ महीने पहले ही हमारी एवरेस्ट बेस कैंप को लेकर चर्चा हुई. जब हम लोगों ने बेसकैंप पूरा किया तो उस समय की फीलिंग को मैं अपने लफ्जों में बयां नहीं कर सकती. पूरी टीम का अच्छा सपोर्ट रहा. 10-12 दिन के समय में हम एक परिवार की तरह रहते थे, सारी बाधाओं को पार करते हुए हमने एवरेस्ट बेस कैंप को पता किया और यह एक वंडरफुल एक्सपीरियंस था. इस जर्नी में काफी कुछ सीखने को मिला.
सवाल- आप ट्रांसजेंडर कम्युनिटी से आती हैं, आज के समय में एक समानता का भाव आ रहा है. इसे कैसे देखती हैं?
जवाब- समाज नहीं ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को अलग किया है. हम खुद जाकर अलग नहीं होते हैं. समाज में जो ऑर्थोडॉक्स है. वह सदियों से चला आ रहा है. अब जाकर बहुत ज्यादा स्वीकार्यता बढ़ी है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद और ट्रांसकम्युनिटी अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. इससे समाज में स्वीकार्यता बढ़ी है. जहां तक समानता की बात है तो मैं चित्रसेन साहू का धन्यवाद करना चाहूंगी जिन्होंने मौका दिया.
सवाल- रजनी आपका ओवर ऑल एक्सपीरियन्स टीम कैसा रहा?
जवाब- लो विजन डिसेबिलिटी से ग्रसित रजनी जोशी ने बताया कि मैं 21 साल की हूँ, मैंने पहली बार माउंटेनियरिंग की. एवरेस्ट बेस कैंप का एक्सपीरियंस बहुत ही अच्छा रहा, सभी टीम मेंबर का बहुत सपोर्ट रहा. बताया गया रूल्स रेगुलेशन को मैंने फॉलो किया और एवरेस्ट बेस कैंप को कंप्लीट किया. वहां पहुंचकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा. हमारे मेंटर ने जो मिशन इंक्लूजन की शुरुआत की है. उसमें हम खरे उतरे हैं, मुझे अच्छा लग रहा है कि हम लोगों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं. हम किसी से कम नहीं हैं और डिसेबिलिटी होने के बाद भी अपने आपको हम नॉर्मल साबित कर रहे हैं.