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कलर थेरेपी से चमकाएं पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य, जानिए क्या कहता है वास्तु ?

बच्चों का पढ़ाई में मन लगे इसके लिए जरुरी है कि वो एकाग्र हो. बच्चों को यदि पढ़ाई में अच्छे अंक लाने हैं तो वास्तु उनकी मदद कर सकता है. पढ़ाई के तरीके में थोड़ा बदलाव करने से बच्चों के रिजल्ट में काफी बदलाव देखने को(Change in the way children read) मिलते हैं.

Brighten the future of children studying with color therapy
कलर थेरेपी से चमकाएं पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य

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Published : Apr 25, 2022, 7:15 PM IST

रायपुर : पढ़ने वाले विद्यार्थियों को अपने भविष्य का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि वह वास्तु शास्त्र की सहायता लेकर पढ़ाई की तैयारी (Importance of Vastu in education) करे. वास्तुशास्त्री से मार्गदर्शन लेकर अपने अध्ययन का और अध्ययन कक्ष में बैठने की दिशा को सुधार कर जीवन में बच्चे कमाल कर सकते हैं. अच्छी पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए यह आवश्यक है कि वह उत्तर-पूर्व दिशा या उत्तर दिशा या पूर्व दिशा के कक्ष में अपने स्टडी रूम को रखें . इन कमरों में उत्तर दिशा की ओर या पूर्व की ओर या ईशान कोण की ओर मुख रखकर पढ़ाई करें यानी उनकी पढ़ाई की टेबल इस ढंग से रखी हो कि चेहरा इन दिशाओं की ओर ही पड़े.

वास्तुशास्त्र का महत्व :वास्तु शास्त्र में नार्थ ईस्ट ईशान कोण को बहुत महत्व दिया गया है. ईशान कोण में ध्यान अध्ययन पूजन, योगाभ्यास करने से बहुत लाभ मिलता है. इसके साथ ही यह क्षेत्र ज्ञान प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है. इस दिशा के स्वामी देवगुरु बृहस्पति माने जाते हैं. अतः ईशान कोण में रूम में पढ़ाई करने पर बच्चों में विलक्षण प्रतिभा देखने को मिलती है .यह पढ़ाई के लिए सर्वोत्तम माना गया है. इस दिशा में ज्ञान शिक्षा गहन अध्ययन के कारण देवगुरु बृहस्पत का वास माना गया है. देवगुरु और ऋषियों के देव माने जाते हैं. देव गुरु बृहस्पति ने समस्त विद्वानों को ज्ञान प्रदान किया था. इसलिए ईशान कोण में पढ़ने वाला व्यक्ति बहुत सफल माना गया है.

कलर थेरेपी से चमकाएं पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य

कलर थेरेपी से पढ़ाई सुधारें : पढ़ाई में वास्तु शास्त्र के अनुसार कलर थेरेपी का भी बहुत प्रभाव (Importance of colour therapy in education) पड़ता है. अध्ययन वाले कक्ष को सफेद अथवा पीले रंग का होना चाहिए. सफेद रंग में चंद्रमा और पीले रंग में देवगुरु बृहस्पति का प्रभाव रहता है. अध्ययन कक्ष के कुछ हिस्से में चमकीला रंग भी प्रयोग किया जा सकता है. यह शुक्र का प्रतिनिधि रंग है. शुक्राचार्य जी दैत्यों और असुरों के गुरु माने जाते हैं. वह भी देवगुरु बृहस्पति की तरह महान विद्वान विदुषी और ज्ञान से परिपूर्ण थे.

टेबल कैसा हो : वास्तु शास्त्र के अनुसार सिटिंग टेबल पर पीले अथवा सफेद रंग का कागज कांच के नीचे होना चाहिए. यह रंग भी पढ़ाई के लिए सहयोगी होता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण या पूर्व के कक्ष को कुछ कम ऊंचाई पर होना चाहिए. अन्य कमरों की तुलना में यह रूम थोड़े से नीचे होने चाहिए. इसी तरह प्राचीन वास्तु शास्त्र यह बतलाता है कि पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को शयन करते समय पूर्व की ओर सिर को रखकर सोना चाहिए या दक्षिण दिशा में भी सिर रखकर सोया जा सकता है. इससे पृथ्वी की चुंबकीय किरणों का सहयोग मिल पाता है.

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पढ़ाई के नियम :पढ़ाई में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सूर्योदय के पूर्व विद्यार्थी अपने बिस्तर को त्यागने और स्वान की तरह नींद लेनी चाहिए. एक विद्यार्थी को मिताहार भोजन का पालन करना चाहिए. भोजन में सभी संतुलित पदार्थों का सेवन करने से बुद्धि शुद्ध होती है. याददाश्त को तेज करने के लिए प्रतिदिन नियमित रूप से अनुलोम, विलोम, भ्रामरी, प्राणायाम और कपाल भारती का योगाभ्यास करने से एकाग्रता पढ़ने की दक्षता में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिलती है. इसी तरह वास्तु शास्त्र के अनुसार जो विद्यार्थी प्रतिदिन गायत्री मंत्र अथवा गणेश चालीसा, अथर्वशीर्ष का पाठ कर विद्या अध्ययन करते हैं. उन्हें भी परमात्मा का विशेष सहयोग प्राप्त होता है.

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