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छत्तीसगढ़ के लोक संगीत से रूबरू कराएगा 'वाद्य यंत्रों का गढ़', जानिए इस किताब में क्या है खास ? - Chhattisgarhia culture

छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति (Folk Culture of Chhattisgarh) को लोगों तक पहुंचाने के लिए राजधानी के अरविंद मिश्र छत्तीसगढ़ की (Arvind Mishra book on folk musical instruments) लोक कला और संस्कृति (Folk Art and Culture of Chhattisgarh) पर लंबे समय से लेख लिखते आ रहे हैं. हाल ही में उन्होंने वाद्य यंत्रों का 'गढ़' नामक किताब लिखा है. इसमें छत्तीसगढ़ के ऐसे वाद्य यंत्रों के बारे में जानकारी लिखी गई है जो आज के समय में विलुप्त हो रहे हैं. ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की..

musical instrument
वाद्य यंत्रों का गढ़

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Published : Dec 10, 2021, 11:50 PM IST

रायपुरःछत्तीसगढ़ लोक संस्कृति (Chhattisgarh Folk Culture) को लोगों तक पहुंचाने के लिए राजधानी के अरविंद मिश्र (Arvind Mishra book on folk musical instruments) छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति (folk art and culture) पर लंबे समय से लेख लिखते आ रहे हैं. हाल ही में उन्होंने वाद्य यंत्रों का गढ़ नामक किताब लिखी है. इसमें छत्तीसगढ़ के ऐसे वाद्य यंत्रों के बारे में जानकारी लिखी गई है जो आज के समय में विलुप्त हो रही है.

छत्तीसगढ़ के लोक वाद्ययंत्र पर किताब

अरविंद मिश्र लंबे समय से लेखन का कार्य कर रहे हैं और राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं (national level journals) में भी उनके आलेख प्रसारित होते रहे हैं. अरविंद मिश्र छत्तीसगढ़ शासन के राज्य वित्त सेवा में प्रथम श्रेणी के अधिकारी (First Class Officer in the State Financial Service) रहे हैं. रिटायरमेंट के बाद वे वर्तमान में संविदा के पद पर रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (Raipur Smart City Limited) में चीफ फाइनेंस अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं. ईटीवी भारत ने उनके द्वारा लिखी गई किताब और उनके लेखन को लेकर खास बातचीत की.

सवालःअपने किताब लिखी है 'वाद्य यंत्रों का गढ़' (musical instrument) इस किताब में किस तरह की चीजें समाहित हैं?
जवाबः छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक परिवेश में लिखने के लिए बहुत कुछ है. लेकिन मैंने वाद्य यंत्र को इसलिए चुना, क्योंकि वाद्य यंत्र एक ऐसा मोहक वस्तु है जो सभी को आकर्षित करता है. यह देश ही नहीं, विश्व के लोगों को आकर्षित करता है. इसलिए मैंने वाद्य यंत्रों का गढ़ नामक किताब लिखी है.

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सवालःआपके द्वारा लिखी गई किताब को संस्कृति विभाग द्वारा स्कूल और कॉलेजों के विद्यार्थियों को बांटने की तैयारी चल रही, कैसे देखते हैं इसे?
जवाबः छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परिवेश से आज की युवा पीढ़ी वंचित है. खासकर के गीत-संगीत, लोकगीतों को भली-भांति लोग समझते नहीं हैं. इस किताब में ऐसे वाद्य यंत्रों को लिया गया है, जिनमें सरगुजा और मैदानी इलाके के वाद्य यंत्र शामिल किए गए हैं. यह दुर्लभ है. आमतौर पर यह वाद्य यंत्र आसानी से देखने को नहीं मिलेगा और ऐसे दुर्लभ वाद्य यंत्रों को आने वाली पीढ़ी को जानना चाहिए कि वह कितने कर्णप्रिय और कितने लुभावने हैं. इसका उपयोग विश्व स्तर पर किस तरह किया जा सकता है. इस बात को अवगत कराने के लिए यह किताब लिखी है. संस्कृति विभाग ने चाहा है कि इसको स्कूलों, कॉलेजों में और संगीत विद्यालयों में इसका वितरण किया जाए.

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सवालः शासकीय सेवा में रहने के बाद भी आपने लेखन का कार्य कब से शुरू किया?
जवाबः शुरुआत से ही मुझे लिखना पसंद है 19 वर्ष की उम्र में ही मेरी पहली कहानी नागपुर की एक पत्रिका में छपी. 22 वर्ष की उम्र में एक अखबार में सह संपादक हो गया. उसके बाद से ही मेरा लेखन कार्य जारी है. लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में लेखन का कार्य करता रहा हूं लेकिन मुझे ऐसा लगा कि अब राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में लिखना बहुत हो गया.

अब मुझे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परिवेश में लिखना चाहिए. अब मैं छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक परिवेश पर ही लिख रहा हूं. वाद्य यंत्रों का 'गण' किताब लिखने से पहले मैंने छत्तीसगढ़ की बानगी आनी-बानी के छत्तीसगढ़ नामक किताब लिखीं है. इसके अलावा फिल्म संसार और छत्तीसगढ़ नामक किताब लिखी है. छत्तीसगढ़ के ऐसे क्षेत्र जो वंचित हैं और दुर्लभ है, जिन पर कुछ किया जाना चाहिए. इस पर भी मेरा कार्य चल रहा है. राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं से हटकर अब मैं छत्तीसगढ़ को लेकर अपना रचना धर्म निभा रहा हूं.

सवालःवाद्य यंत्रों का गढ़ किताब को अगर कोई पाठक पढ़ता है तो उन्हें किस तरह के नए वाद्य यंत्रों की जानकारी मिलेगी?
जवाबः मैदानी इलाकों में तो सभी तरह के वाद्य यंत्र देखने को मिल जाते हैं. बांसुरी, हारमोनियम, तबला तो विश्व के सभी क्षेत्रों में बजाया जाता है लेकिन जनजातियों में किस तरह के वाद्य यंत्र बजते हैं, उसे इस किताब में शामिल किया गया है. जैसे बॉस बाजा, अलगोजा, सींग बाजा, ठिसकी, धनकुल, जैसे दुर्लभ वाद्य यंत्रों की जानकारी इस किताब में पढ़ने को मिलेगी.

एक बात याद आती है कि फिल्मी दुनिया में RD बर्मन और SD बर्मन ने लोक वाद्य यंत्रों का भरपूर प्रयोग किया है और सबसे ज्यादा संगीत के क्षेत्र में प्रयोगवादी कार्य RD बर्मन ने किया है. इन्होंने अपने संगीत में अधिकतम लोक वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया. ईश्वर ने उन्हें जल्द ही अपनी शरण में ले लिया. अगर वे जिंदा होते और इस किताब को पढ़ते तो वे जरूर छत्तीसगढ़ के जनजातियों के बाद यंत्रों को अपनी फिल्मी गानों में प्रयोग करते.

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सवालः आप शासकीय सेवा में रहे और वर्तमान में रायपुर स्मार्ट सिटी में चीफ फाइनेंस ऑफिसर के तौर पर कार्यरत हैं. लिखने का समय आपने कैसे निकाला?
जवाबः मैं अपने बचत के समय, ऑफिस के बाद और छुट्टियों के दिन भी लिखने का काम लड़ता हूं. मैं रोजाना 2 घंटे नियमित रूप से लिखने का काम करता हूं. यह मेरी प्रवृत्ति में आ गया है. जैसे लोग छुट्टियों के दिनों में क्लब जाते हैं, पार्टी करते हैं लेकिन मैं यह सब छोड़ कर केवल लेखन का कार्य करता हूं. मुझे लिखने में बहुत मजा आता है और यह मेरी हॉबी है.

सवालःछत्तीसगढ़ सरकार भी संस्कृति को बढ़ाने का काम कर रही है. सरकार के कामों को किस तरह से देखते हैं?
जवाब- वर्तमान सरकार छत्तीसगढ़िया और छत्तीसगढ़पन को संवर्धित करने का कार्य कर रही है. इसी कारण मुझे यह मौका मिला है. छत्तीसगढ़ सरकार के कामों को साधुवाद है. मैंने छत्तीसगढ़ की बानगी पर किताब लिखी है. उसमें वही बात है जो वर्तमान सरकार चाहती है. जैसे पौनी पसारी को मैने ही लिखा था. सरकार ने इस बात को देखकर पौनी पसारी योजना की शुरुआत की और पूरे छत्तीसगढ़ में लागू किया है.
इस किताब में मैंने सरकार के ध्यान में लाने के लिए गौठान, खैरी खदान, हरेली, रामकोठी, जैसी चीजें हैं जो छत्तीसगढ़ की कामर्शियल भी हैं और सांस्कृतिक भी, उसे छत्तीसगढ़ के आनी बानी में लिखा है. पर इस किताब में छत्तीसगढ़ के ऐसे 25 बिंदु है, जिनमें रहन-सहन, खान-पान, रोजगार का वर्णन है.

सवालः आने वाले दिनों में आपके और कौन से प्रोजेक्ट आने वाले हैं?
जवाबः आने वाले दिनों में मेरी लेखनी छत्तीसगढ़ पर ही केंद्रित रहेगी. आनी बानी के छत्तीसगढ़ का दूसरा भाग आएगा. इसके अलावा में छत्तीसगढ़ के दुर्लभ महापुरुषों के बारे में लिखूंगा.

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