रायपुर:लगातार जल का संकट (water crisis) बढ़ता जा रहा है. समय के साथ जल के अत्यधिक उपयोग होने के कारण आज भूजल और गर्भ जल स्तर लगातार कम हो रहा है. जल संरक्षण और जल संवर्धन (water enrichment) को लेकर लगातार कई योजनाएं बनाई गई है और कई एनजीओ भी इस पर काम कर रहे हैं. आज हम आपको ऐसी संस्था से मिलवाने जा रहे हैं जो पिछले 26 सालों से जल संरक्षण को लेकर गांव-गांव में कार्य कर रही है. एग्रोकेट्स सोसाइटी फॉर रूरल डेवलपमेंट (Agrocrats Society for Rural Development) 1995 से गांव-गांव में जल के संरक्षण को लेकर कार्य कर रही है. साथ ही जल संवर्धन के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य को बढ़ाने का काम भी यह संस्था कर रही है.
ETV भारत ने एग्रोकेट्स सोसायटी फॉर रूरल डेवलपमेंट के प्रेसिडेंट धीरेंद्र मिश्रा से बातचीत की और जाना कि किस तरह की चुनौतियों के साथ गांव में जल संवर्धन को लेकर कार्य किया जा सकता है.
सवाल -किस तरह आपकी संस्था जल संरक्षण को लेकर कार्य कर रही है?
जवाब -पिछले 26 साल से उनकी संस्था ग्रामीणों के साथ मिलकर उनकी आवश्यकतानुसार योजना तैयार करके काम कर रही है. जल संवर्धन से संबंधित और ग्रामीण विकास से संबंधित तमाम गतिविधियां चल रही है. हम मानते हैं कि कृषि ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी है. इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर उनकी संस्था वसुधैव कुटुंबकम का उद्देश्य लेकर कार्य कर रही है. ग्रामीणों के साथ मिलकर उनकी खेती किसानी को कैसे समृद्धि किया जाए उसके लिए कार्य किया जा रहा है. खेती की निरंतरता के जल आवश्यक है और जल के संवर्धन को लेकर भी ग्रामीणों के साथ मिलकर कार्य किया जा रहा है.
सवाल -जल का संकट बना हुआ है किस तरह से वर्षा के जल का संरक्षण किया जा रहा है?
जवाब -वर्षा जलाधारी जितने भी कार्यक्रम हैं सभी संस्थाएं उसे गंभीरता पूर्वक कर रही. जल का संवर्धन करना हमारे व्यवहार में है और इसे लेकर वैज्ञानिक ढंग से वैज्ञानिक विधि से जल का संवर्धन किया जा रहा है.
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सवाल -अभी किस योजना पर आप लोग काम कर रहे हैं?
जवाब -वर्षा आधारित जल को संरक्षित करने के लिए कार्य किया जा रहा है. गांव-गांव में जो संस्थाएं, मंडली, सक्रियता के साथ कार्य कर रही है, उनके साथ मिलकर योजना बनाई जाती है. 25% वर्षा का जल वाष्पीकृत होकर ऊपर बादल के रूप में चला जाता है. 25 प्रतिशत जल जमीन अवशोषित कर लेता है. बाकी जो जल होता है उसमें वर्षा का जल बह जाता है. इस पानी का कोई उपयोग नहीं हो पाता है. हमारा यह प्रयास है कि गांव का पानी गांव में रहे खेत का पानी खेत में रहे और जल का सिंचाई के लिए उपयोग हो सके.
सवाल -गांव में जल संरक्षण को लेकर लोग जागरूक हैं लेकिन, शहर में नहीं?
जवाब - शहरीकरण के बीच आज रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम होना बेहद जरूरी है. धीरेंद्र ने बताया छत्तीसगढ़ में 1200 एमएम की वर्षा होती है.अगर रूफ वाटर हार्वेस्टिंग किया जाता है तो जल संकट का समाधान हो सकता है. 1000 वर्ग फीट के छत से 900 क्यूबिक मीटर जल, वर्षा जल से संरक्षित कर सकते हैं. इस तरह 500 वर्ग फीट छत से 400 से 500 क्यूबिक मीटर जल को संरक्षित किया जा सकता है.
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संस्था के किए गए काम-
2200 डबरी का कराया निर्माण
2014 में उनकी संस्था को गरियाबंद विकासखण्ड में कार्य करने का अवसर मिला. जिसमें 151 गांव का विलेज डेवलपमेंट प्लान बनाया गया. उस दौरान लक्ष्य था कि वर्षा जल आधारित ऐसे उपयोगी संसाधनों का निर्माण करना, जो सिंचाई के संसाधन के रूप में ग्रामीणों को उनके खेत के लिए और उनकी सिंचाई के लिए उपयोगी हो. ग्रामीणों के सहयोग से जल संवर्धन को लेकर योजना बनाई गई और जो योजना बनाई गई थी उस पर सरकार ने अमल किया. उनके कार्यकाल में 22 सौ इंडिविजुअल डबरी का निर्माण ग्रामीणों ने अपने-अपने खेत में करवाया. इस वजह से गरियाबंद में जल स्तर बढ़ा और सिंचाई का साधन होने से ग्रामीणों की आय में वृद्धि हुई. जिससे मछलीपालन को बढ़ावा मिला.
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वृक्षारोपण को मिला बढ़ावा
जल के एक-एक बूंद का संरक्षण कर भूजल के स्तर को बढ़ाने हेतु लगातार कार्य किया जा रहा है. गुणवत्ता युक्त 1970 डबरी, 53 तालाबों का निर्माण, 281 बॉर्डर चेक और 93 गली प्लग और डबरी के मोड़ों पर सब्जियों और मछली पालन से ग्रामीणों के आय में बढ़ोतरी हुई है.
ग्रामीणों को दिया गया प्रशिक्षण
संस्था के अध्यक्ष ने बताया कि इन सभी कामों के साथ समय-समय पर ग्रामीणों को अन्य गतिविधियों के बारे में भी जानकारी दी जाती है. उनको प्रशिक्षित किया जाता है. आज के समय में ग्रामीण ज्ञान अर्जित कर खेती-किसानी में बड़ा लाभ ले रहे हैं. जल के संरक्षण और संवर्धन को लेकर ग्रामीण लगातार कार्य कर रहे हैं.