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आचार्य महाश्रमण का जैनम मानस भवन से हुआ मंगल विहार - Jainam Manas Bhawan

अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्रीमहाश्रमण का जैनम मानस भवन से मंगल विहार हुआ. इस दौरान सावित्री जिंदल, उद्योगपति नवीन जिंदल और उनकी पत्नी शालू जिंदल ने आचार्यप्रवर के दर्शन किए.

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आचार्य महाश्रमण

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Published : Feb 23, 2021, 1:05 PM IST

रायपुर:8 दिवसीय प्रवास सपंन्न कर अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्रीमहाश्रमण का जैनम मानस भवन से मंगल विहार हुआ. जैनम भवन में आचार्य के प्रवास के दौरान आयोजित 157वां मर्यादा महोत्सव और जैन भगवती दीक्षा का भव्य समारोह रायपुर में आयोजित किया गया. सुबह प्रवचन सभा में उद्बोधन कर सोमवार लगभग 9.51 पर आचार्यश्री ने धवल संघ के साथ रायपुर शहर के लिए प्रस्थान किया. लगभग 5.5 किमी विहार कर गुरुदेव वीआईपी रोड के सिल्वर स्क्रिन मैरिज पैलेस पहुंचे.

आचार्य महाश्रमण

शांतिदूत श्रीमहाश्रमण 23 फरवरी को खम्हारडीह, 24 को विवेकानंद नगर, 25 को वेलफोर्ट एनक्लेव, 26 को टाटीबंध मोहन मैरिज पैलेस में प्रवास पर रहेंगे. सावित्री जिंदल, उद्योगपति नवीन जिंदल और उनकी पत्नी शालू जिंदल ने आचार्यप्रवर के दर्शन किए. सावित्री जिंदल जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं. जिंदल परिवार जैन तेरापंथी परिवार है. सावित्री जिंदल प्रतिदिन सामायिक भी करती हैं.

आचार्य के जिंदल परिवार ने किए दर्शन

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श्रीमहाश्रमण का उपदेश

अमृत उपदेश देते हुए गुरुदेव ने कहा 'जैन तत्व दर्शन का यह सिद्धांत है कि प्रत्येक अवसर्पिणी काल में और प्रत्येक उत्सर्पिणी काल में 5 भरत क्षेत्रों में और 5 ऐरावत क्षेत्रों में 24-24 तीर्थंकर होते रहते हैं. हम जिस भरत क्षेत्र में हैं वह जम्बूद्वीप का भरत क्षेत्र है. इसमें वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है. एक काल चक्र चलता है उसका आधा भाग अवसर्पिणी और आधा भाग उत्सर्पिणी होता है. अवसर्पिणी काल में ह्रास होता है और उत्सर्पिणी काल में विकास होता है. वर्तमान में अवसर्पिणी काल का पांचवा आरा चल रहा है. अवसर्पिणी काल में प्रथम अर था. सुषम-सुषमा उस समय जो मनुष्य होते थे यौगलिक कहलाते थे. उनका आयुष्य भी बहुत लंबा तीन पल्योपम का था. हर अर में ह्रास होता गया. वर्तमान में पांचवा अर है तो आयुष्य और कम हो गया. वापस जब उत्सर्पिणी काल आएगा तो विकास का क्रम रहेगा, यह एक चक्र है. वर्तमान अवसर्पिणी काल में 24 तीर्थंकर हो चुके हैं. पहले तीर्थंकर भरत क्षेत्र में भगवान ऋषभदेव हुए फिर अंतिम और चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर हुए.'

जैनम मानस भवन

साधना से ही मिलती है सिद्धि

गुरुदेव ने आगे कहा कि प्रश्न हो सकता है कि तीर्थंकर 23 या 25 क्यों नहीं 24 ही क्यों होते हैं. यह एक नियम है. जैसे दिन रात में 24 घंटे होते हैं, वैसे अवसर्पिणी काल में 24 तीर्थंकर ही होते हैं. तीर्थंकर आध्यत्म जगत के उत्कृष्ट प्रवक्ता हैं. साधक भी होते हैं. जैन दर्शन के अनुसार उनसे बड़ा आध्यत्म क्षेत्र का बड़ा अधिवक्ता होना मुझे असंभव लगता है. तीर्थंकर परम उपकार करने वाले और धर्म का रहस्य बताने वाले मुख्यतया अधिकृत है. सिद्ध भगवान तो परम सिद्धी को प्राप्त हो गए हैं. हमें ज्ञान देने वाली दुनिया को ज्ञान देने वाले तीर्थंकर हैं. 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 बलदेव उत्तम पुरुष होते हैं. तीर्थंकर और अर्हत भगवान के प्रति भक्ति होनी चाहिए. वे वीतरागी ज्ञान देने वाले हैं. सिद्ध होने से पहले साधु होना जरूरी है, क्योंकि साधना से ही सिद्धि मिलती है. तीर्थंकर भक्ति, सिद्ध भक्ति आचार्य जो तीर्थंकर के प्रतिनिधि हैं उनके प्रति भक्ति, साधु साध्वियों के प्रति भक्ति और संघ के प्रति व्यक्ति में भक्ति, श्रद्धा होनी चाहिए.

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