अंबिकापुर:अंबिकापुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Medical College Hospital of Ambikapur) में करीब 36 घंटे पूर्व हुए सात नवजातों की मृत्यु (death of seven newborns) के मामले में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (Health Minister TS Singhdew) ने दिल्ली से अचानक वापस सरगुजा पहुंचकर जायजा लिया. उन्होंने SNCU जाकर स्थिति की जानकारी ली. इस दौरान स्वास्थ्य विभाग के तमाम अधिकारी (Health Department Official) उपस्थित रहे.
एसएनसीयू की जानकारी लेने के बाद स्वास्थ्य मंत्री स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की बैठक ले रहे हैं. बाहर निकलकर सिंहदेव ने कहा कि दो दिन में सात बच्चों की मौत हो जाना चिंता जनक है. इसलिए दिल्ली से वापस आना पड़ा. एसएनसीयू (SNCU) की जानकारी लेने के बाद स्वास्थ्य मंत्री स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की बैठक ली. बाहर निकलकर सिंहदेव ने कहा की दो दिन में सात बच्चों की मौत हो जाना चिंता जनक है. इसलिए दिल्ली से तुरंत वापस आना पड़ा. नवजातों में जन्मजात सांस लेने में तकलीफ, अपरिपक्व फेफड़े की बीमारी, वजन कम, मां का दूध पीने में तकलीफ जैसे लक्षण थे.
अंबिकापुर SNCU में 7 बच्चों की मौत पर हड़कंप सात शिशुओं में से एक 28 दिन का था. शेष 2 से 4 दिन के नवजात थे. अभी रायपुर से भी अधिकारी आ रहे हैं. जांच होगी. अगर किसी की गलती सामने आती है तो निश्चित ही कार्रवाई होगी. एसएनसीयू से बाहर निकलकर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (Health Minister TS Singhdeo) मीडिया से मुखातिब हुए. सवालों का जवाब दिया. इस दौरान उन्होंने कहा की एक साथ सात की मौत होना चिंताजनक है. आज भी मौत की बात आई. मौत निरन्तर हो रही है, तो क्या कारण है? आक्सीजन (oxygen) में कोई कमी तो नहीं आ गई. ऐसे स्थिति में बच्चों का वजन कम, प्री मेच्योर (Pre Mature) व अन्य कारण चिंताजनक है. उसमें सामान्य से ज्यादा मौत देखने को मिलती है.
लेकिन एक साथ सात मौत कैसे? ये चौंकाने वाली बात है. कहीं और कोई कारण तो नहीं है. पता चला कि और भी आंकड़े आए हैं. उन्होंने कहा कि कारण अलग-अलग हैं. मुख्य बात बच्चे 9 माह से पहले जन्म ले रहे हैं. साल भर में 6 लाख बच्चों का जन्म हो रहा है. 22 हजार बच्चों को SNCU में भर्ती होना पड़ रहा है. वजन कम होने के कारण उनमें से ज्यादातर मौत हुई हैं. सरगुजा, रायपुर और जगदलपुर में प्रतिशत अधिक दिख रहा है. सिंहदेव ने आगे कहा की गर्भवती माताएं आती हैं. समय से पहले प्रसव से असर पड़ता है. उन्होंने एचबी टेस्ट कराया कि नहीं, देखा जा रहा है.
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शिशु मृत्य दर में सुधार की जरूरत
कुछ जगहों पर पहले तीन माह तक महिलाएं गर्भधारण की जानकारी नहीं दे पाती हैं. बुनियादी चीजों को लेकर पहल करनी होगी. एचबी काउंट कराना जरूरी है. इस पर पहल होनी चाहिए. SNCU चेकअप पर ध्यान देना पड़ेगा. पोस्ट नेटल केयर जन्म के बाद ध्यान देना चाहिए. मोर्टिलिटी रेट एमएमआर (Mortality Rate MMR) भी तीन आंकड़ों में है. इसे कम करना जरूरी है. प्रदेश में यह 100 के ऊपर है. शिशु मृत्य दर (Infant Mortality Rate) 5 साल से ऊपर 46%, 5 वर्ष से नीचे 1 वर्ष तक 41% व उससे नीचे कम है लेकिन इसमें भी सुधार की गुंजाइश है. एक अस्पताल नहीं, बल्कि प्रदेश में मुहिम के रूप में सुधार की आवश्यकता है.
आंकड़ों को कैसे सुधारा जाए? अगर दूसरों से बेहतर है, तो भी इसमें और सुधार किया जाना है. कुछ दिन पहले 16 बिस्तर थे. अब 30 बिस्तर है. ज्यादा लोग आ रहे हैं. दबाव बना हुआ है. लोगों का रुझान यहां आकर बचना है. कहीं लापरवाही ना हुई हो. अगर परिजन कह रहे हैं तो उनसे पूछेंगे. अगर लापरवाही हुई है तो जांच व कार्रवाई होगी. राजमाता देवेंद्र कुमारी सिंहदेव शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल में करीब 36 घंटे पूर्व हुए सात नवजातों की मृत्यु के मामले पर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. आर. मूर्ति ने बताया कि सभी चार शिशुओं का प्रीमैच्योर बर्थ (Premature Birth) से जन्म हुआ था. सभी नवजातों में कई जन्मजात बीमारियों के लक्षण थे. उन्होंने बताया कि अस्पताल में बेहतर ईलाज की सुविधा प्रदान किया गया तथा चिकित्सकों ने ईलाज की पूरी कोशिश की. लापरवाही नहीं बरती गई है.
अम्बिकापुर के एमसीएच अस्पताल की स्थिति बेहतर
प्रदेश भर के एमसीएच के एसएनसीयू (SNCU) में आने वाले बच्चों और उनकी मौत के आंकड़े देखें तो अम्बिकापुर के एमसीएच अस्पताल (MCH Hospital) की स्थिति औसतन बेहतर है. क्योंकी यह प्रदेश का सबसे अधिक लोड वाला एमसीएच (MCH Hospital) है. इस वर्ष अप्रैल महीने से अब तक अम्बिकापुर के एमसीएच में 1624 बच्चे एडमिट किए जा चुके हैं. जिनमें 459 बच्चों की मौत है. मौत का प्रतिशत 28 रहा है, जो बड़े शहरों की तुलना में कम है. जबकी रायपुर के एमसीएच में 960 बच्चे ही इस दौरान एडमिट किये गए. जिनमें 331 बच्चों की मौत हो गई और मौत का औसत 35 प्रतिशत रहा. जगदलपुर के एमसीएच में बने एसएनसीयू (SNCU) की बात करें तो इस दौरान 1165 बच्चे एडमिट किए गए. जिनमें से 342 बच्चों की मौत हुई और मौत का प्रतिशत 29 रहा है. आंकड़े भले ही प्रदर्शन को अच्छा बता रहे हैं लेकिन चिंता की बात यह है के 3 दिन में सात बच्चों की मौत होना गंभीर विषय है.