महासमुंद : गुरु अपने शिष्य को शिक्षा तो देता है पर इसके एवज में उसको सही गुरु दक्षिणा नहीं मिलती, उसी तरह कुम्हार मिट्टी को आकार तो देता है पर उसे सही मूल्य नहीं मिल पाता. हम बात कर रहे हैं कुम्हार जाति की, जो सालों से अपने पूर्वजों के व्यवसाय को पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं, लेकिन विडंबना है कि आज के अत्याधुनिक जीवन और मशीनी युग में कुम्हारों का व्यवसाय आगे बढ़ने के बजाय और पीछे चला जा रहा है.
दो वक्त की रोटी दिलाता है मिट्टी का मटका
कुम्हार अपने दो वक्त की रोटी की जुगाड़ करने के लिए असहाय हो गए हैं. हाईटेक युग में फ्रिज और अन्य संसाधनों की वजह से लोगों की जिंदगी सुखमय और आरामदायक हो गई है पर जिस तरह कुम्हारों की स्थिति है, उसे देखकर लगता है कि आने वाले कुछ समय में लोग मिट्टी के मटके, सुराही और बर्तन को भूल जाएंगे.
शासन भी नहीं दे रहा है ध्यान
कुम्हारों का कहना है कि हम गर्मियों में लोगों की प्यास तो बुझा देते हैं पर हमारी भूख और प्यास नहीं मिट पाती क्योंकि शासन हमारे तरफ ध्यान नहीं देता है, इस वजह से आर्थिक परेशानी होती है.