कोरबा:छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी में दूसरे शहरों की तरह ही इस शहर के स्टूडेंट्स ने भी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेकर इंजीनियर बनने का ख़्वाब पूरा किया, लेकिन दशकों तक प्रतिष्ठित पेशे का पर्याय रहे यही इंजीनियर अब बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. शहर में इंजीनियरिंग कॉलेज बनाया गया. इस कॉलेज में देश की नामी कंपनियों ने निवेश किया. लाखों रुपए खर्च कर पढ़ाई पूरी करने के बाद भी ये इंजीनियर्स हाथ में डिग्री लिए नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं.
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भारत में 6 हजार 214 इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हैं. हर साल लाखों इंजीनियर पढ़ाई पूरी कर रहे हैं, लेकिन सिर्फ 20% लोगों को ही नौकरी मिलती है. ज्यादातर इंजीनियर इतने स्किल्ड ही नहीं होते हैं कि उन्हें नौकरी दी जा सके. ऐसे में युवा निराश हो रहे हैं और इंजीनियरिंग करने से भी कतरा रहे हैं. अकेले कोरबा के आईटी कॉलेज में 2013 में जहां 900 से ज्यादा छात्रों ने कॉलेज में एडमिशन लिया था, तो वहीं पिछले साल सिर्फ 34 छात्रों ने ही एडमिशन लिया है.
सरकार ने टेक्निकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी में आउटकम बेस्ड एजुकेशन (OBE) व्यवस्था बनाने का काम शुरू किया है, लेकिन काम पूरा कब होगा और इसके परिणाम कब सकारात्मक होंगे ये कहा नहीं जा सकता है.
लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी बैठे हैं खाली
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने वाले योगेश श्रीवास कहते हैं कि 2012 में जब 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी, तब इंजीनियरिंग करना उनका सपना था. योगेश कहते हैं कि अपने सपने का पीछा किया और 7 से 8 लाख रुपए खर्च कर डिग्री हासिल की, लेकिन अब तक नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं. प्राइवेट कंपनियां 6 हजार से ज्यादा की सैलरी नहीं दे रही हैं, अब इस स्थिति में सरकारी नौकरी का ही इंतजार है.
इसी तरह युवा बेरोजगार इंजीनियर अमन सिंह कहते हैं कि ऐसा कहा जाता था कि कि मैकेनिकल स्ट्रीम से इंजीनियरिंग करने वाला छात्र कभी खाली नहीं बैठता, लेकिन पास होने के बाद से ही उन्हें स्ट्रगल करना पड़ रहा है. सरकारी नौकरी के लिए कितने ही फॉर्म भर दिए, लेकिन नतीजा अब तक रुका हुआ है. प्राइवेट जॉब भी नहीं मिल रहा है.
इंजीनियरिंग कॉलेज में लग रहा ताला
आईटी कोरबा की स्थापना सन 2008 में हुई थी, जिसके लिए नई बिल्डिंग बनने के बाद 2013 में इसे शिफ्ट किया गया. यह बिल्डिंग 50 एकड़ में फैली हुई है. जिसे IIT गुवाहाटी के तर्ज पर तैयार किया गया था. वर्तमान में 960 सीटों की क्षमता वाले संस्थान में केवल 135 छात्र ही रह गए हैं. पिछले साल कुल उपलब्ध 240 सीटों के लिए केवल 34 छात्रों ने प्रवेश लिया था. अब प्रशासन ने भी इस कॉलेज के बिल्डिंग को मेडिकल कॉलेज को देने की कवायद शुरू कर दी है.
PPP के तहत स्थापना
आईटी की स्थापना पीपीपी( पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत की गई थी. कॉलेज में अधोसंरचनात्मक विकास के लिए उद्योगों के माध्यम से राशि मांगी गई थी. एनटीपीसी, एसईसीएल, सीएसईबी, बालको और लैंको समेत अन्य उद्योग शामिल हैं. प्रत्येक उद्योगों को 10-10 करोड़ रुपये देने थे, जिसमें से एनटीपीसी, सीएसईबी और एसईसीएल ने अपनी पूरी राशि दे दी. जबकि बालको और लैंको ने अब तक अपने हिस्से की राशि जमा नहीं कराई है. बालकों ने 10 करोड़ में से 2 करोड़ 20 लाख ही दिए हैं. इसी तरह लैंको ने 10 में से 7 करोड़ दिए हैं. कॉलेज की माली हालत सुधारने के लिए आईटी प्रबंधन औद्योगिक संस्थानों को से लगातार पत्राचार किया जाता है, लेकिन इनकी ओर से कोई भी सकारात्मक पहल नहीं की जाती.
2015 के बाद घटा रुझान
2015 में आईटी में एडमिशन के लिए मारामारी रहती थी. छात्र कतारबद्ध होकर आईटी में एडमिशन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते थे. पढ़ने के बाद भी जब बड़ी संख्या में छात्र बेरोजगार होने लगे तब आईटी से छात्रों का मोहभंग हो गया. 2015 के बाद से ही यहां एडमिशन लेने गिनती के छात्र ही आ रहे हैं. हर साल आईटी में एडमिशन लेने वाले छात्रों का आंकड़ा तेजी से घट रहा है.