कोरबाः किसी बेहद मामूली चीज को कैसे नायाब बनाया जा सकता है, यह जानना है तो आपको कोरबा के एक टपरीनुमा ठेले पर आकर 'उड़द दाल' ('Urad Dal') से बने "गरम बड़ा" (hot big) का स्वाद (Taste) चखना होगा. यह गलत नहीं होगा जब गरम बड़ा को "टेस्ट ऑफ कोरबा" (test of korba) कहा जाए. गरम बड़ा दुकान का संचालन करने वाले छतराम 1991 से यह खास बड़े लोगों को परोस रहे हैं.
तीन दशक में कोरबा का टेस्ट बना "गरम बड़ा", जब व्यवसाय (Business) शुरू किया था तब 50 पैसे में एक 'बड़ा' बेचते थे. अब दो 'बड़ों' कीमत 15 प्रति प्लेट है. खास बात यह है कि छतराम ने कभी भी क्वालिटी से समझौता नहीं किया. वह अपने 'बड़े' कुछ खास तरह से तैयार करते हैं. यही कारण है कि न सिर्फ जिला बल्कि कई राज्यों तक छतराम के 'बड़ों' की महक पहुंचती है. लोग कोरबा मेहमान बन कर (being a guest) आते हैं और कहते हैं कि गरम 'बड़ा' का स्वाद चखना है.
इसलिए खास है "गरम बड़ा"
कोरबा के टीपी नगर में रेल पटरी के किनारे ही एक छोटी सी दुकान संचालित है. इसका नाम ही है "गरम बड़ा" जो कि शहर वासियों के साथ ही है दूर-दूर तक अपने क्वालिटी के लिए प्रख्यात है. छतराम बताते हैं कि वह सामान्य होटल की तरह इसे तैयार नहीं करते. वह हर दिन 'बड़े' को तलने के लिए नए तेल का उपयोग करते हैं. 'बड़ा' सात्विक बने इसलिए उड़द दाल से बनने वाले बड़े में लहसुन और प्याज नहीं मिलाते. ताकि 'बड़ों' की तासीर गर्म ना हो. लाल मिर्च का भी उपयोग नहीं करते.
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मसालों के बगैर भी स्वादिष्ट है 'गरम बड़ाें' का स्वाद
केवल हरी मिर्च का ही उपयोग 'बड़े' की चटनी के लिए होता है. 12 महीने टमाटर की स्वादिष्ट चटनी लोगों को परोस हैं. जितना हो सके क्वालिटी का ध्यान रखते हैं. बिना लहसुन प्याज और गर्म तासीर वाले मसालों के बगैर भी छतराम के बड़े बेहद स्वादिष्ट होते हैं. जो कि हर वर्ग में मशहूर है. छतराम शाम को 4:00 बजे दुकान खोलते हैं, जैसे ही दुकान खुलती है. यहां लोग उमड़ पड़ते हैं. दो-तीन घंटों में ही सारे 'बड़े' बिक जाते हैं और छतराम फिर से अगले दिन की तैयारी में लग जाते हैं.
दूर-दराज से आते हैं लोग
इन 'बड़ों' की खुशबू जिले भर में मशहूर है. लोग दूर-दूर से गरम 'बड़ा' खरीदने आते हैं. ना सिर्फ जिले में बल्कि आसपास के इलाकों से जब लोग मेहमान बनकर कोरबा पहुंचते हैं तब इन बड़ों का स्वाद जरूर चखकर वापस लौटते हैं. छतराम खुद भी बताते हैं कि दूसरे राज्यों से भी कई बार ग्राहक आए और कहा कि हमने अपने लोगों को आपके 'बड़ों' के बारे में बताया, जब भी कोरबा आना होता है. आपके 'बड़ों' का स्वाद चखना (taste) जरूरी हो जाता है.
1991 में शुरू किया था व्यवसाय
छतराम कहते हैं कि तीन दशक पहले 1991 में इस तरह के 'बड़ों' को बनाने की शुरुआत की थी. तीन दशक हो गये, लगातार इसी काम को कर रहे हैं. ज्यादा कमाई तो नहीं होती, महंगाई के साथ 'बड़ों' के दाम बढ़ाने पड़ गए. क्वॉलिटी मेंटेन करने के लिए 15 रुपये प्लेट की रेट से बड़े बेचता हूं. लेकिन लोग फिर भी लगातार आ रहे हैं. डिमांड बढ़ती चली गई दो-तीन घंटे में ही सारा माल बिक जाता है. छतराम ने बड़ों के दुकान के आसपास कुछ स्लोगन भी लिखे हुए हैं. कहते हैं कि ज्यादा कमाई नहीं करनी है.