कोरबा :चैत्र नवरात्रि पर हम आपको छत्तीसगढ़ की एक ऐसी देवी के दर्शन कराएंगे, जिनके विषय में यह मान्यता है कि देवी यहां साक्षात रूप में विराजमान हैं. देवी आसपास के ग्रामीणों की रक्षा करती हैं. यहां हम बात कर रहे हैं कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पहाड़ों की देवी मां मड़वारानी (The glory of Madwarani) की. कोरबा-चांपा मुख्य मार्ग से लगे हुए पहाड़ पर 2200 फीट या 5 किलोमीटर की ऊंचाई पर मां मड़वारानी का मंदिर (Temple of Maa Madwarani) है. मंदिर हाईवे से लगा हुआ है, जहां शायद ही कोई वाहन हो जो यहां रुककर पूजा अर्चना न करता हो. मां मड़वारानी की ख्याति ऐसी है कि ना सिर्फ प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु यहां माथा टेकने पहुंचते हैं. चैत्र नवरात्रि में इस वर्ष भी मड़वारानी में खासी रौनक है.
दूरदराज से पहुंचते हैं श्रद्धालु :मड़वारानी मंदिर कोरबा और चांपा के बीच में स्थापित है जहां जिले के गांव-गांव से लोग माथा टेकने पहुंचते हैं. पड़ोसी जिले, राज्य के साथ दूसरे राज्यों के श्रद्धालु भी यहां बड़ी तादाद में आते हैं. नवरात्रि में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाने के साथ ही भव्य तैयारियां शुरु की जाती है. जिससे मंदिर की रौनक बढ़ जाती है. नवरात्रि के दौरान पड़ोसी राज्य उड़ीसा, झारखंड जैसे राज्यों से भी श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं. जिन्होंने बताया कि मड़वारानी के विषय में उन्होंने अपने रिश्तेदारों से सुना था. जिसके बाद वे यहां पहुंचे हैं. मंदिर में उन्हें सुकून की अनुभूति हुई है. पूर्व में पहाड़ के ऊपर चढ़ने के लिए कच्चा रास्ता था. इसलिए मुख्य मार्ग से लेकर पहाड़ के ऊपर तक की चढ़ाई भक्तजनों को पैदल ही तय करनी पड़ती थी. कुछ साल पहले ही यहां सड़क का निर्माण हुआ. अब सड़क के जरिए वाहन ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं. लेकिन 22 फीट का रास्ता अब भी दुर्गम है. तीखे मोड़ और सकरे रास्तों से होकर पहाड़ के ऊपर पहुंचा जा सकता है.
मंदिर का इतिहास और मान्यताएं :मड़वारानी का इतिहास लगभग 4 पीढ़ी पुराना है. वर्तमान में यहां सुरेंद्र कंवर मुख्य पुजारी हैं. जो बताते हैं कि उनकी चौथी पीढ़ी मां मड़वारानी की सेवा कर रही है. छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है, जहां देवी दुर्गा, पार्वती की तरह ही स्थानीय देवियों को भी उतनी ही श्रद्धा से पूजा जाता है. स्थानीय देवियों का यहां अधिक महत्व है. मां मड़वारानी भी छत्तीसगढ़ की एक स्थानीय देवी के तौर पर वर्षों से पूजी जाती हैं. इस विषय में जो सबसे प्रचलित मान्यता है वह यह है कि जब मां मड़वारानी की शादी तय हुई तब वह शादी नहीं करना चाहती थीं. इसलिए वह मंडप छोड़कर किसी को बिना कुछ बताए चली गईं.
कैसे पड़ा देवी का नाम :छत्तीसगढ़ की स्थानीय भाषा में मंडप को मड़वा कहा जाता है. इसी वजह से देवी का नाम मड़वारानी (Temple of Maa Madwarani) पड़ गया. मंडप छोड़कर वह बरपाली के इसी पहाड़ पर आई. जिसे अब मड़वारानी कहा जाता है. उन्होंने अपने तन पर लगी हल्दी को भी इसी गांव के आसपास धोया था. मान्यता तो यह भी है कि हल्दी के पीलापन के साक्ष्य अब भी गांव में मौजूद हैं. हालांकि वह अब काफी धुंधले पड़ चुके हैं. मंदिर के पुजारी सुरेंद्र कंवर कहते हैं कि एक और मान्यता जो सबसे ज्यादा प्रचलित है. वह जिले के ही कनकेश्वर धाम से जुड़ी हुई है. कंवर कहते हैं कि मां मड़वारानी जब शादी का मंडप छोड़कर पहाड़ पर आ गयीं थीं. तब स्वयं भगवान शिव उन्हें मनाने पहुंचे थे, लेकिन पूरी रात बीत गई मां शादी के लिए नहीं मानी. तब भगवान शिव कनकी में जाकर बस गए, तभी से कनकी में कनकेश्वर धाम बन गया और बरपाली का यह पहाड़ मां मड़वारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ.