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विरोध का डर : कोरबा की दीपका खदान विस्तार योजना अटकी, टली लोक सुनवाई

कोरबा की दीपका खदान के विस्तारीकरण ( Korba Deepka mine expansion) की प्रक्रिया एक बार फिर अटक गई है. 23 मार्च को प्रशासन ने लोक सुनवाई रखी थी.लेकिन सुरक्षा कारणों से लोक सुनवाई को टाल दिया गया है.

Korba Deepka mine expansion plan stuck
कोरबा के दीपका खदान विस्तार योजना अटकी

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Published : Mar 23, 2022, 1:48 PM IST

कोरबा: एसईसीएल (South eastern coal field) के मेगा प्रोजेक्ट में शामिल देश की तीसरी सबसे बड़ी दीपका कोयला खदान के विस्तार की प्रक्रिया (Korba Deepka mine expansion plan stuck) अटक गई है. 23 मार्च को दीपका खदान का विस्तार करने के लिए लोकसुनवाई का आयोजन प्रस्तावित था. इसके ठीक एक दिन पहले मंगलवार को कोरबा कलेक्टर ने आदेश जारी कर इस लोकसुनवाई पर रोक लगा दी है.

मेगा प्रोजेक्ट में शामिल है दीपका कोयला खदान:दीपका कोयला खदान एसईसीएल के मेगा परियोजनाओं में शामिल (SECL involved in mega projects) है. 23 मार्च को इसकी क्षमता 40 मिलियन टन प्रतिवर्ष करने के लिए लोक सुनवाई का आयोजन किया गया था. इसके लिए कुल 1999 हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता थी. लेकिन कलेक्टर ने लोक सुनवाई से पहले ही आदेश जारी कर इसे निरस्त कर दिया. जिसमे कलेक्टर ने एसपी के पत्र का हवाला दिया है. कलेक्टर के आदेश के मुताबिक पुलिस के लिए लोक सुनवाई के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखना बड़ी चुनौती थी.

भू-विस्थापित हैं आक्रोशित, टली लोक सुनवाई:दीपका, कुसमुंडा, हरदीबाजार क्षेत्र में भू-विस्थापित एसईसीएल प्रबंधन के विरुद्ध आक्रोशित हैं. इसी महीने की 14 मार्च को भू-विस्थापित करीब 5000 की संख्या में त्रिपक्षीय वार्ता में शामिल हुए थे. जिसके बाद एक बड़े आंदोलन को स्थगित किया गया है. इनकी मांगें अभी भी प्रक्रियाधीन है.लेकिन वर्तमान में एसईसीएल की ओर से किसी तरह का आश्वासन नहीं दिया गया है. जिसके कारण 23 मार्च को व्यापक विरोध की संभावना है. एसपी के इसी पत्र के आधार पर कलेक्टर ने लोक सुनवाई को स्थगित किया.


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लोक सुनवाई को लेकर भी आपत्ति:23 मार्च को प्रस्तावित लोक सुनवाई के पहले ऊर्जाधानी भू विस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी. क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षण अधिकारी के समक्ष लिखित आवेदन पेश कर संगठन ने लोकसुनवाई के आयोजन पर रोक लगाने की मांग की थी. पत्र में भू विस्थापित के समस्याओं का पूरी तरह से निराकरण होने के पहले लोक सुनवाई का आयोजन नहीं करने की मांग की गई थी.

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